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नवरात्र की पूजा-विधि और आरती जानें पारस भाई की जुबानी

नवरात्र का मतलब है नौ रातें. यह नौ रातों का सम्बद्ध मां दुर्गा के नौ रूपों से है. मां दुर्गा को पूरी दुनिया में किसी न किसी रूप में पूजा जाता है. हिन्दू व सिख धर्म में भगवती का विशेष महत्व है.

Updated on: 14 Oct 2020, 07:08 PM

नई दिल्‍ली:

नवरात्र का मतलब है नौ रातें. यह नौ रातों का सम्बद्ध मां दुर्गा के नौ रूपों से है. मां दुर्गा को पूरी दुनिया में किसी न किसी रूप में पूजा जाता है. हिन्दू व सिख धर्म में भगवती का विशेष महत्व है. दुर्गा मां को मानने वाले की कभी दुर्गति नहीं होती और वो दुनिया के सर्वसुखों को पाता है. नवरात्र मां दुर्गा के नवरूप की पूजा एवं आराधना का दिन होता है, क्योंकि मां भगवती के नौ रूप मां दुर्गा से ही तो संबंध रखते हैं.

नवरात्र साधना करने वालों के लिए विशेष महत्व रखते हैं, क्योंकि साधकों को सिद्धि देने वाली यही नौ देवियां हैं और आज हम जानेंगे मां भगवती के साधक, पवित्र सूर्य कुंडली (Pavitra Surya Kundali) रचईता, महिषासुर मर्दिनी एवं दुर्गा सप्तशती को आसान हिंदी कविता में रचना करने वाले, महिषासुर को मारने वाली सदा तेरी जय जय होवे (Mahishasur Mardini Stotram Hindi Version) को लिखने वाले पारस परिवार (Paras Parivaar) के मुखिया विश्व प्रसिद्ध गुरु पारस भाई जी से मां भगवती के पहले रूप का वर्णन, पूजा विधि और आरती. यकीन करें यह एक्सक्लूसिव बातें आपको कही और शायद ही मिले. तो जानते हैं पहले नवरात्र की देवी का सम्पूर्ण वर्णन आरती सहित... 

पारस भाई जी बताते हैं... 

नवरात्र की प्रथम देवी का नाम है मां शैलपुत्री. मां भगवती को शैलपुत्री इसीलिए कहा जाता है, क्योंकि मां ने हिमालय के घर में जन्म लिया. हिमालय को शैल कहा जाता है और शैल के घर में अवतरित होने के कारण मां भगवती के इस रूप को शैलपुत्री कहा जाता है.

मां शैलपुत्री का स्वरूप 

मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत सौम्य और मनोहारी है. मां का यह रूप सुंदर है और मां भगवती वृषभ की सवारी करती हैं. ध्यान रहे भगवान शिव भी वृषभ की सवारी करते हैं और मां भगवती का स्वयं भी बैल पर सवारी करना उन्हें शिव समान बना देता है. यह रूप इसी कारण पूर्ण समाज के लिए कल्याणकारी हो जाता है. मां शैलपुत्री के दो हाथ हैं और मां ने बाएं हाथ में कमल को थामा हुआ है, जो प्रेम का प्रतीक है पर साथ ही मां ने इस रूप में अपने दाएं हाथ में त्रिशूल भी उठा रखा है जो यह दर्शाता है कि पापियों को मां दंड भी देती हैं चाहे वह कितनी ही सौम्य हो.
  
मां शैलपुत्री की कथा 

मां शैलपुत्री ही प्रथम दुर्गा हैं. ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं, क्योंकि सती मां का पूर्व जन्म था और अपने पूर्व जन्म में भी वो भगवन शिव की ही भार्या थी. कहा जाता है कि मां सती ने प्रजापति दक्ष की ख़ुशी न होने के बाद भी भगवान शिव से विवाह किया और ऐसे में अपनी नाराज़गी जाहिर करने के लिए प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, पर उसमें भगवान शंकर को नहीं निमंत्रण दिया गया. जिस कारण सती अपने पति की बेइज्जती को सहन न कर सकी और सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं. 

इस बात पर भगवान शंकर सती माता को समझाते रहे कि वो फिजूल चिंता न करें और उस यज्ञ में न जाएं पर सती बिलकुल नहीं मानीं. तब सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी. उधर, सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष के यहां पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया. बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे. साथ ही भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है. ऊपर से पिता दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहा. इससे सती को इतना दुःख पहुंचा कि उन्होंने अपनी योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया. पर अपने भगवान शिव को पाने के लिए उन्होंने दोबारा जन्म लिया और वही सती मां अपने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं.

जयकारा हे शैलपुत्री महारानी दा
बोल सच्चे दरबार की जय

किन विशेष लोगों को मां शैलपुत्री की पूजा करनी चाहिए, जिनका आत्मविश्वास कमजोर हो, जो अपने निर्णय नहीं ले पा रहे हो. कुंडली में जिसका सूर्य कमजोर हो. काम-धंधा नहीं चल रहा हो. आदमी कर्ज़ में डूबा हो. ऐसे लोगों को अवश्य मां के इस रूप की पूजा करनी चाहिए. 
 
मां शैलपुत्री की पूजन विधि

नवरात्र के पहले दिन घर में कलश यानी घट स्थापना के बाद मां दुर्गा की पूजा का संकल्प लें. इसके बाद माता दुर्गा के प्रथम रूप मां शैलपुत्री स्वरूप की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें. माता को सिंदूर, धूप, गंध और सूरजमुखी के फूल अर्पित करें. इसके बाद माता के मंत्र का उच्चारण करें. 

आज का मंत्र है 

या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

किस रंग के कपड़े पहने 

आज का दिन आप लाइट ग्रे, सफ़ेद या लेमन रंग के कपड़े पहने तो शुभ होगा 

प्रसाद क्या चढ़ाएं  

आज मां शैलपुत्री को गुड़ से बना प्रसाद चढ़ाना आपके लिए शुभ होगा.

पारस भाई जी के साथ मां शैलपुत्री की आरती 

जय मां तेरी शैलपुत्री, जय मां तेरी शैलपुत्री 
जय मां तेरी शैलपुत्री, जय मां तेरी शैलपुत्री 
शैलपुत्री मैया सुखकरनी, दया करो माता दुखहरणी 
शुभ फल है तेरी भक्ति का, तू ही रूप है मां सती का 
जय मां तेरी शैलपुत्री, जय मां तेरी शैलपुत्री 

लगते तेरे जय जयकारे, तू भरती सबके भंडारे 
बैल की करती मां सवारी, महिमा तेरी अपरम्पारी 
जय मां तेरी शैलपुत्री, जय मां तेरी शैलपुत्री 

नवदुर्गा का पहला रूप, सारे जग का तू स्वरूप 
दाये हाथ त्रिशूल है पकड़ा, बाये हाथ में कमल है सजता 
जय मां तेरी शैलपुत्री, जय मां तेरी शैलपुत्री 

वृषरूढा तुझको सब बोले, वो जीते जो तेरा हो ले 
पार्वती तू उमा रानी, तू ही शारदा तू ही भवानी
जय मां तेरी शैलपुत्री, जय मां तेरी शैलपुत्री 

जो तेरा मां सिमरन करता, दिल से तेरी आरती करता 
शैलपुत्री भंडार है भरती, हर इच्छा मां पूर्ण करती 
जय मां तेरी शैलपुत्री, जय मां तेरी शैलपुत्री