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Nirjala Ekadashi 2021: इस दिन है निर्जला एकादशी का व्रत, जानें शुभ मुुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

21 जून को निर्जला एकादशी पड़ रहा है. हिंदू धर्म में एकदाशी व्रत का खास महत्व है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है.  मान्यता है कि एकादशी का व्रत करने घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है.

Updated on: 21 Jun 2021, 10:20 AM

नई दिल्ली:

21 जून को निर्जला एकादशी पड़ रहा है. हिंदू धर्म में एकदाशी व्रत का खास महत्व है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है.  मान्यता है कि एकादशी का व्रत करने घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है. इसके साथ ही भक्तों पर लक्ष्मीपति नारायाण की विशेष कृपा रहती हैं. निर्जला एकादशी को भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.  निर्जला एकादशी में दान का बहुत महत्व होता है. ये व्रत गर्मी में पड़ता है. इसलिए गर्मी से बचाने वाले चीजों का दान करना चाहिए. जैसे जल, वस्त्र, आसन, पंखा, छतरी, मौसमी फल और अन्न. जल कलश जान करने से उपासकों को साल भर के एकादशियों का फल मिल जाता है.

निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी भी कहते हैं

निर्जला एकादशी को लेकर कहानी है कि महाभारत काल में पांडु पुत्र भीम को महर्षि वेद व्यास ने निर्जला एकादशी व्रत रखने को कहा था. महर्षि ने कहा कि इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है. जो भी मनुष्य एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पीए रहता है और सच्ची श्रद्धा से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसे साल में जितनी एकादशी आती हैं, उन सबका फल मिल जाता है. इसके बाद भीमसेन निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने लगे और पाप मुक्त हो गए, इसलिए इस एकादशी को भीमसेन एकादशी भी कहते हैं.

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निर्जला एकादशी शुभ मुहूर्त

निर्जला एकादशी तिथि- 21 जून 2021

एकादशी तिथि प्रारंभ- 20 जून, रविवार को शाम 4 बजकर 21 मिनट 

एकादशी तिथि समापन- 21 जून, सोमवार को दोपहर 1 बजकर 31 मिनट तक

एकादशी व्रत पूजा विधि

निर्जला एकादशी व्रत से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद खाना न खाएं. इसके बाद एकादशी के दिन प्रात:काल सुबह स्नान कर के साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें. अगर संभव हो तो पीला रंग का कपड़ा पहनें, ये विष्णु जी का प्रिय रंग है. व्रत का संकल्प लेने के बाद अब मंदिर को साफ कर के गंगा जल से शुद्ध कर लें. इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर के उनके सामने घी का दीपक जलाएं. अब विष्णु जी को धूप, फल , अक्षत, दूर्वा, तुलसी, चंदन और पीला फूल अर्पित करें. 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें. विष्णु जी की आरती के साथ पूजा का समापन करें. दिनभर निर्दला व्रत रखें और रात में भजन कीर्तन करें. द्वादशी तिथि को प्रातः जल्दी घर की साफ-सफाई करें और स्नानादि करके भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें भोग लगाएं। इसके बाद किसी जरुरतमंद या ब्राह्मण को भोजन कराएं एवं शुभ मुहूर्त में स्वयं भी व्रत का पारण करें.

निर्जला एकादशी व्रत कथा

एक बार भीमसेन व्यासजी से कहने लगे कि हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सभी एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, लेकिन महाराज मैं भगवान की भक्ति, पूजा आदि तो कर सकता हूं, दान भी दे सकता हूं किंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता. इस पर व्यासजी ने कहा, हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रत्येकमास की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो. इस पर भीम बोले हे पितामह! मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता. यदि वर्षभर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूं, क्योंकि मेरे पेट में वृक नामक अग्नि है जिसके कारण मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता. भोजन करने से वह शांत रहती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या मेरे लिए एक समय भी बिना भोजन के रहना कठिन है.

ऐसे में आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए. इस पर श्री व्यासजी विचार कर कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है. इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एका‍दशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है.

ऐसा सुनकर भीमसेन घबराकर कांपने लगे और व्यासजी से कोई दूसरा उपाय बताने की विनती करने लगे. ऐसा सुनकर व्यासजी कहने लगे कि वृषभ और मिथुन की संक्रां‍‍ति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है. इस एकादशी में अन्न तो दूर जल भी ग्रहण नहीं किया जाता. तुम उस एकादशी का व्रत करो. इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल का प्रयोग वर्जित है. इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए और न ही जल ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत टूट जाता है. इस एकादशी में सूर्योदय से शुरू होकर द्वादशी के सूर्योदय तक व्रत रखा जाता है. यानी व्रत के अगले दिन पूजा करने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए. व्याजजी ने भीम को बताया कि इस व्रत के बारे में स्वयं भगवान ने बताया था.यह व्रत सभी पुण्य कर्मों और दान से बढ़कर है. इस व्रत से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता हैं.