Navratri 2021: नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की करें पूजा, जानिए क्या है कथा और विधि

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के स्वरूप की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि माता रानी का चंद्रघंटा स्वरूप भक्तों पर कृपा बरसाता है. इसके साथ उन्हें निर्भय और सौम्य बनाता है.

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के स्वरूप की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि माता रानी का चंद्रघंटा स्वरूप भक्तों पर कृपा बरसाता है. इसके साथ उन्हें निर्भय और सौम्य बनाता है.

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Mohit Saxena
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नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की करें आराधना.( Photo Credit : न्यूज़ नेशन)

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के स्वरूप की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि माता रानी का चंद्रघंटा स्वरूप भक्तों पर कृपा बरसाता है। इसके साथ उन्हें निर्भय और सौम्य बनाता है। कहते हैं कि मां चंद्रघंटा की पूजा करते समय कथा और आरती अवश्य करनी चाहिए.  मां चंद्रघंटा को दूध से बने भोग और चमेली के फूल अर्पित करें। सात अक्टूबर से नवरात्रि आरंभ हुई थी और वहीं इसका समापन 14 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार को होगा.आइए जानते हैं कि मां के नौ रूपों में मां चंद्रघंटा की पूजन-विधि क्या है।

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माता के लिए भोग

मां चंद्रघंटा को दूध से बनी चीजों का भोग लगाना होता है. मां को केसर की खीर और दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाया जाता है. पंचामृत, चीनी व मिश्री भी मां को अर्पित करनी होती है. मां के इस रूप की आराधना सुख और स्मृधी का प्र​तीक है. 

ये है मंत्र

पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।

या देवी सर्वभू‍तेषु मां चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ध्यान मंत्र:

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्। सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥

मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्। खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्। मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥

प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्। कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब महिषासुर ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था, तब देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश से मदद मांगी। देवताओं की व्यथा सुनने के बाद तीनों को बहुत अधिक क्रोध आया। इस क्रोध के कारण तीनों के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई। उससे एक देवी का प्रादुर्भाव हुआ। सभी देवताओं को मां को अपने खास शस्त्र दिए। भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया। देवराज इंद्र ने देवी को एक घंटा दिया। इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर का वध करने पहुंची। महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने मां का आभार व्यक्त किया। 

कैसे होता मां चंद्रघंटा का रूप

माता का तीसरा रूप मां चंद्रघंटा शेर पर सवार है। दसों हाथों में कमल और कमंडल के अलावा अस्त-शस्त्र हैं। माथे पर बना आधा चांद इनकी पहचान होती है। इस अर्ध चांद के कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।

इस रंग के कपड़ों को पहने 

मां चंद्रघंटा की पूजा में उपासक को सुनहरे और पीले रंग के वस्त्र गृहण करने चाहिए। आप मां को खुश करने के लिए सफेद कमल और पीले गुलाब की माला भी अर्पण करें। शास्त्रों के अनुसार मां चंद्रघंटा पापों का नाश और राक्षसों का वध करती हैं। मां चंद्रघंटा के हाथों में तलवार, त्रिशूल, धनुष और गदा होती है। उनके सिर पर अर्धचंद्र घंटे के आकार में विराजमान होता है। इसलिए मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप को चंद्रघंटा का नाम दिया गया है। 

Source : News Nation Bureau

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