नवरात्रि का पांचवां दिन: स्कंदमाता का आशीर्वाद पाने के लिए केले का लगाएं भोग, ये मिलेगा फल

चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता (Skandmata) की पूजा होती है. आइए जानते हैं कि नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा कैसे करें.

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Sunil Mishra
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नवरात्रि का पांचवां दिन: स्कंदमाता का आशीर्वाद पाने के लिए केले का लगाएं भोग, ये मिलेगा फल

स्कंदमाता

चैत्र नवरात्रि 2019 (Chaitra Navratri 2019) के पांचवे दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता (Skandmata) की पूजा होती है. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता  (Skandmata) के नाम से जाना जाता है. भगवान स्कंद बाल रूप में इनकी गोद में विराजमान हैं. आइए जानते हैं कि नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा कैसे करें.

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स्कंदमाता का स्वरूप

स्कंदमाता का स्वरूप बेहद निराला है. उनकी चार भुजाएं हैं, स्कंदमाता ने अपने दो हाथो में कमल का फूल पकड़ रखा है. उनकी एक भुजा ऊपर की ओर उठी हुई है जिससे वह भक्तों को आशीर्वाद देती हैं. एक हाथ से उन्होंने अपनी गोद में बैठे पुत्र स्कंद को पकड़ रखा है. माता कमल के आसन पर विराजमान हैं. जिसके कारण स्कंदमाता को पद्मासना भी कहा जाता है. इनका आसन सिंह है.

हर कठिनाई को दूर करती हैं स्कंदमाता

शास्त्रों में मां स्कंदमाता की आराधना का काफी महत्व बताया जाता है. इनकी उपासना से भक्तों की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं. भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है. सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक तेज और कांतिमय हो जाता है. अगर मन को एकाग्र करके स्कंदमाता की पूजा की जाए तो भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं होती है.

स्नेह की देवी स्कंदमाता

कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति कहा जाता है. स्कंदमाता को अपने पुत्र स्कंद से बेहद प्रेम है. जब धरती पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ा तब स्कंदमाता ने सिंह पर सवार होकर दुष्टों का नाश किया. स्कंदमाता को अपना नाम अपने पुत्र का साथ जोड़ना बेहद पसंद है. इसके कारण इन्हें स्नेह और ममता की देवी भी कहा जाता है.

स्कंदमाता का भोग

नवरात्रि की पंचमी तिथि को मां भगवती को केले का भोग लगाना चाहिए. यह प्रसाद ब्राह्मण या किसी भूखे को देना चाहिए. ऐसा करने से बुद्धि का विकास होता है.

स्कंदमाता का मंत्र

मां स्कंदमाता का वाहन शेर है. स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए इन मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए.

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

Source : News State Beuro

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