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Navratri 2018: नवरात्रि के हर दूसरे दिन होती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें पूजन विधि

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और व्रत त्योहारों में नवरात्र को सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है और हमारे देश में हिन्दू समुदाय के लोग इसे लगभग पूरे देश बड़े धूमधाम से मनाते हैं.

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ruchika sharma
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Navratri 2018: नवरात्रि के हर दूसरे दिन होती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें पूजन विधि

मां ब्रह्मचारिणी

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हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और व्रत त्योहारों में नवरात्र को सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है और हमारे देश में हिन्दू समुदाय के लोग इसे लगभग पूरे देश बड़े धूमधाम से मनाते हैं.

नव दुर्गा के दूसरे रूप का नाम है मां ब्रह्मचारिणी।

 ब्रह्म का क्या अर्थ है?

वह जिसका कोई आदि या अंत न हो; वह जो सर्वव्याप्त, सर्वश्रेष्ठ है और जिसके पार कुछ भी नहीं। जब आप आंखे बंद करके ध्यानमग्न होते हैं, तब आप अनुभव करते हैं कि ऊर्जा अपनी चर्म सीमा, शिखर पर पहुँच जाती है, वह देवी माँ के साथ एक हो गयी है और उसी में ही लिप्त हो गयी है. दिव्यता, ईश्वर आपके भीतर ही है, कहीं बाहर नहीं.

आप यह नहीं कह सकते कि, 'मैं इसे जानता हूँ', क्योंकि यह असीम है; जिस क्षण 'आप जान जाते हैं', यह सीमित बन जाता है और अब आप यह नहीं कह सकते कि, “मैं इसे नहीं जानता”, क्योंकि यह वहां है – तो आप कैसे नहीं जानते? क्या आप कह सकते हैं कि 'मैं अपने हाथ को नहीं जानता।' आपका हाथ तो वहां है, है न? इसलिये, आप इसे जानते हैं। और साथ ही में यह अनंत है अतः आप इसे नहीं जानते. यह दोनों अभिव्यक्ति एक साथ चलती हैं। क्या आप एकदम हैरान, चकित या द्वन्द में फँस गए!

अगर कोई आपसे पूछे कि 'क्या आप देवी माँ को जानते हैं ?' तब आपको चुप रहना होगा क्योंकि अगर आपका उत्तर है कि 'मैं नहीं जानता' तब यह असत्य होगा और अगर आपका उत्तर है कि 'हाँ मैं जानता हूँ' तो तब आप अपनी सीमित बुद्धि से, ज्ञान से उस जानने को सीमा में बाँध रहे हैं। यह ( देवी माँ ) असीमित, अनन्त हैं जिसे न तो समझा जा सकता है न ही किसी सीमा में बाँध कर रखा जा सकता है।

और पढ़ें: नवरात्रि 2018 : यहां पढ़ें देवी दुर्गा के नौ रूपों की 

'जानने' का अर्थ है कि आप उसको सीमा में बाँध रहे हैं। क्या आप अनन्त को किसी सीमा में बांध कर रख सकते हैं? अगर आप ऐसा सकते हैं तो फिर वह अनन्त नहीं।

ब्रह्मचारिणी का अर्थ है वह जो असीम, अनन्त में विद्यमान, गतिमान है। एक ऊर्जा जो न तो जड़ न ही निष्क्रिय है, किन्तु वह जो अनन्त में विचरण करती है। यह बात समझना अति महत्वपूर्ण है – एक गतिमान होना, दूसरा विद्यमान होना। यही ब्रह्मचर्य का अर्थ है।इसका अर्थ यह भी है की तुच्छता, निम्नता में न रहना अपितु पूर्णता से रहना। कौमार्यावस्था ब्रह्मचर्य का पर्यायवाची है क्योंकि उसमें आप एक सम्पूर्णता के समक्ष हैं न कि कुछ सीमित के समक्ष। वासना हमेशा सीमित बंटी हुई होती है, चेतना का मात्र सीमित क्षेत्र में संचार। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी सर्व-व्यापक चेतना है।

Source : News Nation Bureau

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