Mahashivratri 2025: भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की कथा न केवल उनके दिव्य प्रेम, बल्कि उनकी सच्ची भक्ति और तपस्या की कहानी भी है. जिसे पढ़कर ये कहा जा सकता है कि किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है. माता पार्वती, जिन्हें उमा के नाम से भी जाना जाता है, हिमालय राज की पुत्री थीं. उन्होंने अपने पूर्व जन्म में भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने का संकल्प लिया था.
इस जन्म में भी उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की. उनकी तपस्या इतनी कठिन थी कि देवताओं को भी आश्चर्य हुआ.
भगवान शिव की परीक्षा
भगवान शिव, जो अपनी तपस्या में लीन रहते थे, माता पार्वती की भक्ति और दृढ़ संकल्प को देखकर प्रसन्न हुए. उन्होंने एक ब्राह्मण का रूप धारण करके माता पार्वती की परीक्षा लेने का निर्णय लिया. ब्राह्मण ने माता पार्वती से कहा कि भगवान शिव एक जोगी हैं, उनके पास कुछ नहीं है, और उनसे विवाह करना उचित नहीं है.
माता पार्वती ने ब्राह्मण की बातों को सुना, लेकिन उनका निश्चय नहीं बदला. उन्होंने कहा कि वह भगवान शिव से ही विवाह करेंगी. उनकी दृढ़ता देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और अपने असली रूप में प्रकट हुए.
विवाह की तैयारी
भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की तैयारी शुरू हुई. देवताओं ने मिलकर विवाह की सारी व्यवस्था की. हिमालय राज ने अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव के साथ करने का प्रस्ताव रखा, जिसे भगवान शिव ने स्वीकार कर लिया. पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह समारोह आयोजित किया गया. जो दिव्य और भव्य समारोह था, जिसमें सभी देवता, गंधर्व, किन्नर और ऋषि-मुनि उपस्थित थे. भगवान शिव ने बैल पर सवार होकर बारात निकाली, जिसमें भूत-प्रेत और गण भी शामिल थे.
विवाह के बाद भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर रहने लगे. उनका दाम्पत्य जीवन प्रेम और आनंद से परिपूर्ण था. उन्होंने मिलकर संसार का कल्याण किया और अपनी लीलाओं से भक्तों को प्रेरित किया.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)