दीपावली की रात वाराणसी में जलती चिताओं के बीच हुई पूजा, जानिए क्या है वजह
साधक जहा पहले नरमुंडों को रक्त स्नान कराते है फिर घंटों इन्ही नरमुंडों को चिताओ के सामने लेकर करते है शव साधना. आखिर क्यों दीपावली के समय रात को होती है साधकों की साधना.
नई दिल्ली:
दीपावली के दिन जब सभी लोग जब दीपोत्सव मानाने में लगे रहते है तब वाराणसी के महाशमशान में एक ऐसी साधना ,तंत्र क्रिय होती है जिसे आपने हकीकत में न देखा होगा और नहीं सुना होगा. शव साधना यानि मुर्दों की साधना, जलती चिताओं के बीच जहा साधक उन दुष्ट आत्माओ को देते है मुक्ति जो जाने अनजाने करती है लोगों को परेशान ।इस वर्ष दीपावली की रात कोरोना महामारी से मुक्ति की कामना को की गई जलती चिताओ के बीच तंत्र साधना.
भगवान शिव के चाहे बिना कुछ भी नहीं हो सकता ये दुनिया का एक मात्र ऐसा पवित्र स्थल है जहा की चिताए अनवरत जलती है और महाकाल रात्रि के दिन यहाँ तांत्रिक अपनी तंत्र सिद्धि के लिए आते है और ये तंत्र सिद्धी रात भर चलती रहती है जलती चिताओं के बीच कापालिक करते है शिव साधना और इस शिव साधना के बीच पहुंची महाश्मशान पर पहुंची न्यूज़ नेशन की टीम और शव साधन और तंत्र सिद्धि' के बारे में जानने की कोशिश की न्यूज़ नेशन संवादाता ने.
साधक जहा पहले नरमुंडों को रक्त स्नान कराते है फिर घंटों इन्ही नरमुंडों को चिताओ के सामने लेकर करते है शव साधना. आखिर क्यों दीपावली के समय रात को होती है साधकों की साधना. काशी के महाशमशान पर जलती चिताओं के बिच इस तंत्र साधन के बारे में सुनकर आपकी भी दंग रह जायेंगे दंग. दीपावली के दिन पहले तंत्र की साधना करने वाले महाश्मशान पर वर्ष की इस काली निशा पर देवी काली और भैरव की उपासना के साथ ही बाबा मशाननाथ के सामने बैठकर सिद्धियों की प्रप्ति के लिए पूरी रात आराधना और तंत्र क्रिया करते है.
महाश्मशान पर किये जाने वाले इस अनुष्ठान में मशाननाथ के मंदिर से लेकर उस स्थान पर तन्त्र क्रिया की जाती है जहां लगातार चिताएं जलती रहती है. अघोरी कहते है की इस पूजा में वैसे तो बली देने का भी विधान है और दीपावली को रात्रि को महानिशा काल कहा जाता है इसीलिए तामसिक साधना करने वालो को चमत्कारिक सिद्धियाँ मिलती है, तामसिक क्रिया करने के लिए है शराब और मांस के साथ है नर मुंड और चिताओं के बीच बैठ कर बली की जाती है और इस बार ये तंत्र साधना हो रही है कोरोना की मुक्ति की कामना को लेकर की जा रही है.
इस शव साधना में श्मशान पर बैठ कर महाकाली की उपासना और शक्ति का आवाहन किया जा रहा है. इस क्रिया को तामसी क्रिया कहा जाता है यहा भी बलि दी जा रही है लेकिन मुर्गे या बकरे की जगह नीबू की. इस तांत्रिक क्रिया को करने वाले बाबा माने तो इस महा श्मशान पर वैसे तो भगवान शंकर रहते है,पर दीपावली के दिन काली निशा में महाकाली भी मौजूद रहती है. तांत्रिकों की सिद्धि को सिद्ध करने के लिए आज की गयी साधना से भगवान तुरंत प्रसन्न हो जाते है. यहाँ शव साधना में ऐसे आत्माओं को शक्तियों दवारा बुलाया जाता है जिन्हें मुक्ति नहीं मिली रहती है जो मानव को नुकसान पहुंचाते है इस तीर्थ पर आराधन के जरिये उन्हें मुक्ति दी जाती है. शव की साधना इस लिए की जाती है क्योकि काशी में शव ही शिव है. तंत्र साधना करने वाले तंत्र साधक कहते है की ये साधना हम लोक कल्याण के लिए कर रहे है.
श्मशान पर तंत्र साधना करने वाले बाबा मणि की माने तो आज महानिशाकाल की रात्रि है और आज की गयी महाशमशान में साधना अवश्य सफल होगी जो मांगे वोही मिलेगा इसलिए वो वाममार्गी साधना से प्रसन्न कर रहे है. शव साधना जलती चिता की लकड़ियों से कर रहे है विशिष्ट साधना बाबा मणि राम के अनुसार वो कोरोना महामारी से मुक्ति और विश्व कल्याण के लिए कर रहे है साधना जब पूर्ण अन्धकार छाजाता है तभी मां काली की साधना की जाती है और मां प्रसन्न होती है महाशमशान में की गयी साधना से बाबा की मने तो शव का कफ़न ही उनका वस्त्र है और आज महानिशाकाल में हम बाबा का आवाहन कटे है और उनकी पूजा रात बारह बजे के बाद करते है
ये साधना हम आम आदमी के लिए करते है मंत्रों की सिद्धि करते है जिससे लोगो को दुखो से मुक्ति मिलें रात जैसे जैसे काली निशा की ओर बढती है वैसे वैसे साधना कठिन होते जाती है क्योंकि कुछ ऐसे आत्माए होती है जो मुक्ति नहीं बल्कि शैतान की शक्ल में इंसानी रूप धारण करना चाहती है हरिश्चंद्र घाट के महाश्मशान पर जहा शिव का स्वयं वास है और निशा काल में तामसी पूजन का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. इस रात को साधक अपने मन्त्रों को साधन के द्वारा साधते है जिसमे अलौकिक शक्तियां होती हैं जिसको नकारा नहीं जा सकता हैं.
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