logo-image

Mokshada Ekadashi 2020: 25 दिसंबर को मनाई जाएगी मोक्षदा एकादशी, जान लें पूजा विधि और महत्व

25 दिसंबर को मोक्षदा एकदाशी मनाई जाएगी. हिंदू धर्म में इस एकादशी का विशेष महत्व है. मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को आती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है

Updated on: 22 Dec 2020, 01:46 PM

नई दिल्ली:

25 दिसंबर को मोक्षदा एकदाशी मनाई जाएगी. हिंदू धर्म में इस एकादशी का विशेष महत्व है. मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को आती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. मान्यता है कि जो भी भक्त मोक्षदा एकादशी की पूजा करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. मोक्षदा एकादशी व्रत करने से इसका लाभ पूर्वजों को भी मिलता है. इस व्रत के प्रभाव से पितरों को मुक्ति प्राप्त होती है. एकादशी का व्रत निर्जला रखा जाता है लेकिन अगर आपके लिए ये संभवन नहीं है तो फलाहार कर के भी किया जा सकता है. 

और पढ़ें: सोमवार के दिन पढ़ें शिव चालीसा, भगवान भोलेनाथ की मिलेगी विशेष कृपा

बताया जाता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया था, इसलिए इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है. मालूम हो कि हिंदी धर्म में गीता को बहुत ही पवित्र ग्रंथ माना जाता है.  श्रीमदभगवद् गीता हिंदूओं के लिए पूज्यनीय भी है. 

मोक्षदा एकादशी पूजा विधि

सबसे पहले प्रातकाल उठकर स्नान कर लें. इसके बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनकर भगवान सूर्यदेव को चल चढ़ाएं. अगर मुमकिन हो तो मोक्षदा एकादशी के मौके पर पीला कपड़ा धारण करें. इसके बाद भगवान कृष्ण की पूजा करें. अब कृष्ण जी की मूर्ति पर फूल, तुलसी, रोली, अक्षत और पंचामृत चढ़ाएं. कृष्ण के मंत्रों का जाप करें या भगवदगीता का पाठ करें. इस दिन किसी गरीब व्यक्ति को वस्त्र या अन्न का दान करें. एकादशी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद खोलें.

मोक्षदा एकादशी शुभ मुहूर्त

  • एकादशी तिथि प्रारंभ- 24 दिसंबर की रात 11 बजकर 17 मिनट
  • एकादशी तिथि समाप्त- 25 दिसंबर को देर रात 1 बजकर 54 मिनट 

मोक्षदा एकादशी की कथा-

एक समय गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था. एक दिन राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके पिता नरक में दुख भोग रहे हैं और अपने पुत्र से उद्धार की याचना कर रहे हैं. अपने पिता की यह दशा देखकर राजा व्याकुल हो उठा. प्रात: उठकर राजा ने ब्राह्मणों को बुलाकर अपने स्वप्न के बारे पूछा. तब ब्राह्मणों ने कहा कि, हे राजन्! यहां से कुछ ही दूरी में वर्तमान, भूत, भविष्य के ज्ञाता पर्वत नाम के एक ऋषि का आश्रम है. आप वहां जाकर अपने पिता के उद्धार का उपाय पूछा लिजिए. राजा ने ऐसा ही किया.

जब पर्वत मुनि ने राजा की बात सुनी तो वे एक मुहूर्त के लिए नेत्र बन्द किए. उन्होंने कहा कि- हे राजन! पूर्वजन्मों के कर्मों की वजह से आपके पिता को नर्कवास प्राप्त हुआ है. अब तुम मोक्षदा एकादशी का व्रत करो और उसका फल अपने पिता को अर्पण कर दो, तो उनकी मुक्ति हो सकती है. राजा ने मुनि के कथनानुसार ही मोक्षदा एकादशी का व्रत किया. ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा और वस्त्र आदि अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया. इसके बाद व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई.