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मित्र सप्तमी 2020: आज करें भगवान सूर्य देव की अराधना, हर रोग होगा दूर, मिलेगी विशेष कृपा

आज यानि कि सोमवार को मित्र सप्तमी मनाई जा रही है. मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मित्र सप्तमी कहा जाता है. इस दिन भगवान सूर्य की अराधना की जाती है. मान्यता है कि जो भी लोग मित्र सप्तमी के दिन सूर्य देवता की विधि-विधान से पूजा करता है,

Updated on: 21 Dec 2020, 08:39 AM

नई दिल्ली:

आज यानि कि सोमवार को मित्र सप्तमी मनाई जा रही है. मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मित्र सप्तमी कहा जाता है. इस दिन भगवान सूर्य की अराधना की जाती है. मान्यता है कि जो भी लोग मित्र सप्तमी के दिन सूर्य देवता की विधि-विधान से पूजा करता है, उसे हर तरह के रोग से मिलती है. इसके साथ ही हर मनोकामना पूर्ण होती है. वहीं इस दिन किसी भी नदी के किनारे सूर्य देव को जल चढ़ाने का भी खास महत्व है. बता दें कि भगवान भास्कर को अनेक नामों से जाना जाता है, जिनमें मित्र नाम भी शामिल है. 

 मित्र सप्तमी का व्रत करने से भगवान सूर्य नेत्र ज्योति प्रदान करते हैं. इस व्रत को करने से चर्म और नेत्र रोग से छुटकारा मिलता है.  व्रतियों को आरोग्य और लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है. इस व्रत को करने से घर में सुख समृद्धि भी बनी रहती है.

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ऐसे करें मित्र सप्तमी की पूजा-

आज के दिन सबसे पहले नहा धोकर साफ-सुथरे कपड़े पहन लें. इसके बाद किसी पवित्र नदीं, तालाब के किनारे जाकर भगवान सूर्य को अर्घ्य यानि जल चढ़ा दें. अगर आपके आसपास कोई नदी नहीं है तो घर के आंगन में या किसी खुले जगह पर एक पैर को उठाकर लाल रंग का चंदन, लाल फूल और चावल को किसी तांबे के बर्तन में रखकर सूर्य देव को अंजलि से 3 बार अर्घ्य देना चाहिए. ख्याल रखें कि अर्घ्य का जल किसी के पैर से न लगे.  वहीं दोपहल में दोपहर के समय सूर्य देव को केवल एक बार अंजलि से अर्घ्य दें और शाम को भूमि पर आसन लगाकर बैठ जाएं और इसके बाद अंजलि से सूर्य देव को तीन बार अर्घ्य दें. इस दिन तेल और नमक का त्याग करना चाहिए. सप्तमी को फलाहार कर अष्टमी को मिष्ठान ग्रहण करते हुए व्रत पारण करें. 

सूर्य स्तुति-

विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः।
लोक प्रकाशकः श्री माँल्लोक चक्षुर्मुहेश्वरः॥
लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा।
तपनस्तापनश्चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः॥
गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः।
एकविंशतिरित्येष स्तव इष्टः सदा रवेः॥
'विकर्तन, विवस्वान, मार्तण्ड, भास्कर, रवि, लोकप्रकाशक, श्रीमान, लोकचक्षु, महेश्वर, लोकसाक्षी, त्रिलोकेश, कर्ता, हर्त्ता, तमिस्राहा, तपन, तापन, शुचि, सप्ताश्ववाहन, गभस्तिहस्त, ब्रह्मा और सर्वदेव नमस्कृत-