Janki Jayanti 2025: जानकी जयंती पर जानें माता सीता के दिए वो श्राप जो आज भी कलयुग में सत्य साबित हो रहे हैं

Mata Sita Shrap: जानकी जयंती के अवसर पर, भक्तजन व्रत रखते हैं, पूजा करते हैं, और माता सीता के गुणों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेते हैं। क्या आप जानते हैं कि माता सीता के वो श्राप कौन से हैं जिसे कलयुग में भी भोगा जा रहा है. 

Mata Sita Shrap: जानकी जयंती के अवसर पर, भक्तजन व्रत रखते हैं, पूजा करते हैं, और माता सीता के गुणों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेते हैं। क्या आप जानते हैं कि माता सीता के वो श्राप कौन से हैं जिसे कलयुग में भी भोगा जा रहा है. 

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Inna Khosla
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Mata Sita Ke Shraap Ki Katha

Mata Sita Shrap Photograph: (News Nation)

Janki Jayanti 2025: फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष अष्टमी को जानकी जयन्ती मनायी जाती है, जिसे सीता अष्टमी भी कहा जाता है. इसे माता सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस साल ये पर्व शुक्रवार, 21 फरवरी को मनाया जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार अष्टमी तिथि का आरंभ 20 फरवरी 2025 को सुबह 9:58 बजे हुआ और इसका समापन आज 21 फरवरी 2025 को सुबह 11:57 बजे होगा. माता सीता को त्याग और सहनशीलता की प्रतिमूर्ति माना जाता है, लेकिन कुछ अवसरों पर उन्होंने उन प्राणियों और स्थानों को श्राप भी दिया जिन्होंने उनके साथ अन्याय या छल किया. शास्त्रों में ऐसे चार प्रमुख श्रापों के बारे में पढ़ने को मिलता है. 

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कौवे को दिया गया श्राप

रामायण के अनुसार, जब भगवान राम और माता सीता वनवास के दौरान चित्रकूट में थे, तब जयंत (इंद्र का पुत्र) कौवे का रूप धारण करके आया और माता सीता के चरण में चोंच मार दी. यह देख भगवान राम को क्रोध आ गया और उन्होंने एक ब्रह्मास्त्र का संधान किया. माता सीता ने क्रोधित होकर कौवे को श्राप दिया कि वह कभी भी सीधे मुंह से भोजन नहीं कर पाएगा और उसे हमेशा टेढ़े मुंह से खाना पड़ेगा.

गाय को दिया गया श्राप

एक कथा के अनुसार, माता सीता ने गाय से सत्य की गवाही देने का अनुरोध किया, लेकिन गाय मौन रही और गवाही नहीं दी. माता सीता ने गाय को श्राप दिया कि वह अपने मुंह से पानी पीने के बजाय जीभ से चाटकर पानी पिएगी. इसलिए आज भी गाय पानी को जीभ से चाटकर ही पीती है.

फल्गु नदी को दिया गया श्राप

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान राम पिंडदान के लिए कहीं गए हुए थे, तब माता सीता ने फल्गु नदी के तट पर अकेले ही पिंडदान किया. उन्होंने गवाह के रूप में फल्गु नदी, गऊ माता, केतकी के फूल और वट वृक्ष को साक्षी रखा. जब श्रीराम लौटे, तो माता सीता ने उन्हें पिंडदान की बात बताई, लेकिन फल्गु नदी ने झूठ बोल दिया कि ऐसा कुछ नहीं हुआ. माता सीता ने क्रोधित होकर फल्गु नदी को श्राप दिया कि वह सदैव रेत से ढकी रहेगी और उसकी धारा केवल नीचे ही बहेगी. इसलिए आज भी फल्गु नदी में पानी की जगह अधिकांश समय रेत ही दिखाई देती है.

केतकी फूल को दिया गया श्राप

उसी प्रसंग में, केतकी के फूल ने भी माता सीता के पिंडदान की गवाही देने से इनकार कर दिया. माता सीता ने क्रोधित होकर श्राप दिया कि केतकी का फूल कभी भी भगवान शिव की पूजा में स्वीकार नहीं किया जाएगा. माता सीता के ये श्राप हमें यह सिखाते हैं कि सत्य और न्याय के मार्ग पर चलना अत्यंत आवश्यक है. जो भी छल और असत्य का सहारा लेता है, उसे उसका दंड अवश्य मिलता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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