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Mahila Naga Sadhu: ये थी पहली और आखिरी निर्वस्त्र महिला नागा साधु, इसके बाद किसी को नहीं मिली नग्न रहने की इजाजत, जानें क्यों

Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 का शुभारंभ होने जा रहा है. कई अखाड़ों के साधु संत पहले से ही प्रयागराज पहुंच चुके हैं और कई अखाड़े अभी भी आ रहे हैं. नागा साधुओं की परंपरा का हिंदू धर्म में विशेष स्थान रहा है.

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Inna Khosla
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Mahila Naga Sadhu

Mahila Naga Sadhu Photograph: (News Nation)

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Mahila Naga Sadhu: नागा साधु वे होते हैं जो शरीर को नग्न रखते हैं और अपने जीवन को तप, साधना, और भक्ति में समर्पित कर देते हैं. यह परंपरा विशेष रूप से भगवान शिव के भक्तों में पाई जाती है. नागा साधु की परंपरा में महिलाएं बहुत कम शामिल होती हैं, और ज्यादातर यह पुरुषों तक ही सीमित रही है. महिलाओं का निर्वस्त्र रहना और साधु जीवन अपनाना, समाज के पारंपरिक दृष्टिकोण से काफी भिन्न था. साध्वी ब्रह्मा गिरी ने 2016 में महाकुंभ के दौरान नागा साधु बनने का निर्णय लिया. वह पहली महिला थीं जिन्हें इस परंपरा में भाग लेने की अनुमति मिली. उन्होंने निर्वस्त्र रहकर साधु जीवन अपनाया और ये दिखाया कि महिलाएं भी पुरुषों की तरह तप, साधना और भक्ति कर सकती हैं. इससे उन्हें ऐतिहासिक पहचान भी मिली, क्योंकि वे पहली और आखिरी महिला नागा साधु थीं, जिन्हें निर्वस्त्र रहने की अनुमति दी गई. उनके इस निर्णय और यात्रा ने भारतीय साधु समाज में कई सवाल और विवाद पैदा किए.

निर्वस्त्र महिला नागा साधु बनने का इतिहास

साध्वी ब्रह्मा गिरी ने 2016 में नागा साधु बनने का निर्णय लिया था. वे महाकुंभ 2016 में शामिल हुईं और निर्वस्त्र (Naked Female Naga Sadhu) होकर साधु जीवन की शुरुआत की. उनका उद्देश्य था महिलाओं के लिए समानता और अधिकार की बात करना और यह साबित करना कि महिला भी पुरुषों की तरह साधना और तपस्या में सक्षम है. नागा साधु पुरुषों की एक विशेष श्रेणी होती है जो शरीर को नग्न रखते हैं, तपस्या और साधना के दौरान किसी भी भौतिकता से परे रहते हैं. ये साधु शिव भक्त होते हैं और अपने साधना जीवन में कोई भी सांसारिक वस्तु नहीं रखते.

ब्रह्मा गिरी ने निर्वस्त्र रहने का निर्णय लिया ताकि वह अपने तप और साधना को पूरी तरह से समर्पित कर सकें और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा कर सकें. उन्होंने इस परंपरा में अपनी जगह बनाई, जो पहले सिर्फ पुरुषों तक सीमित थी. साध्वी ब्रह्मा गिरी का मानना था कि अगर महिलाएं आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनना चाहती हैं तो उन्हें पुरुषों के समान अधिकार और स्थान मिलना चाहिए चाहे वह धार्मिक क्षेत्र हो या साधना के मामले में. इस निर्णय को कई साधु और समाज के अन्य वर्गों ने विरोध किया. उन्हें लगता था कि महिला को नागा साधु (Naga Sadhu) के रूप में स्वीकार करना धार्मिक परंपराओं के खिलाफ है. साध्वी ब्रह्मा गिरी के बाद, किसी भी महिला को निर्वस्त्र नागा साधु बनने की अनुमति नहीं दी गई. इसका कारण यह माना जाता है कि यह एक बहुत ही कठिन और विशिष्ट परंपरा है जिसमें बहुत सारे आध्यात्मिक और शारीरिक नियम होते हैं.

क्यों नहीं मिली इजाजत किसी अन्य महिला को?

नागा साधु बनने की परंपरा में कई शारीरिक और मानसिक कठिनाइयां होती हैं और ये एक पुरुष प्रधान परंपरा मानी जाती है. समाज में महिलाएं और उनके अधिकारों को लेकर कई प्रकार की धारणाएं और प्रतिबंध होते हैं जिनके कारण महिलाओं को इस परंपरा में स्थान नहीं दिया जाता. महिलाओं का निर्वस्त्र नागा साधु बनने का विचार धार्मिक और सामाजिक अस्थिरता का कारण बन सकता है और इसीलिए महिलाओं के लिए इसे सीमित किया गया.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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