Mahabharata Vatika: महाभारत वाटिका, उत्तराखंड वन विभाग की नई पहल है. ये धर्म, संस्कृति और पर्यावरण के अनोखे मेल भी कहा जा सकता है. इस वाटिका में उन पौधों का संग्रह किया गया है जिनके बारे में प्राचीन धार्मिक ग्रंथों जैसे वेद, महाभारत, और रामायण में पढ़ने को मिलता है. ये वाटिका न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देती है बल्कि लोगों को भारतीय पौराणिक धरोहर से भी जोड़ती है. आपको ये भी बता दें कि पिछले वर्ष राज्य वन विभाग ने वाल्मीकि रामायण में वर्णित पौधों की प्रजातियों की एक रामायण वाटिका भी स्थापित की थी.
महाभारत वाटिका की विशेषताएं
उत्तराखंड वन विभाग ने महाभारत के 18 खंडों में वर्णित 37 प्रकार के पवित्र पेड़-पौधों को संरक्षित और प्रदर्शित करने के लिए महाभारत वाटिका स्थापित की है. इस वाटिका में ऐसे पौधों का संग्रह है जिनका धार्मिक और औषधीय महत्व है. जैसे तुलसी, पीपल, बरगद, आंवला, और शमी. हर पौधे के साथ उससे जुड़ी पौराणिक कथा और उसका महत्व भी बताया गया है. जैसे तुलसी का पौधा विष्णु पूजा का अभिन्न हिस्सा है. पीपल को भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है. शमी वे पौधा है जहां महाभारत काल में पांडवों ने अपने हथियार छुपाए थे. यह वाटिका नई पीढ़ी को प्राचीन धर्म और संस्कृति के साथ जोड़ने का माध्यम बनेगी. साथ ही, यह पर्यावरण संरक्षण की अहमियत को भी समझाएगी.
महाभारत वाटिका उत्तराखंड में पर्यावरण और धर्म के अद्भुत संगम का प्रतीक है. वन विभाग की ये पहल संदेश देती है कि भारतीय धर्म और संस्कृति में पर्यावरण का हमेशा विशेष स्थान रहा है. पौधों और वृक्षों की पूजा और उनका संरक्षण न केवल धार्मिक कर्मकांडों का हिस्सा है बल्कि हमारे जीवन और स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है. महाभारत वाटिका उत्तराखंड के पर्यटन में एक नया आकर्षण जोड़ रही है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)