logo-image

Magh Masik Shivratri 2023: जानिए कब है साल की पहली महाशिवरात्रि, यहां है पूरी जानकारी

हिंदू धर्म में शिवरात्रि के दिन व्रत रखने का विशेष महत्व है.

Updated on: 16 Jan 2023, 03:53 PM

नई दिल्ली :

Magh Masik Shivratri 2023: हिंदू धर्म में शिवरात्रि के दिन व्रत रखने का विशेष महत्व है. मासिक शिवरात्रि हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मासिक शिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से अख्ंड सौभाग्य और सुयोग्य वर और धन-धान्य की बढ़ोतरी होती है. तो आइए आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे कि मासिक शिवरात्रि का शुभ मुहूर्त क्या है, पूजा विधि क्या है. 

ये भी पढ़ें- Shani Gochar 2023: कल शनि करने वाले हैं कुंभ राशि में गोचर, इन राशियों को होगा लाभ

मासिक शिवरात्रि कब है ?
माघ मास की मासिक शिवरात्रि दिनांक 20 जनवरी 2023 को है. इस दिन शवि की उपासना करने के साथ-साथ कठिन और असंभव कार्यों को संभव का विशेष आशीर्वाद मिलता है. ऐसी मान्यता है कि मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में इस चतुर्दशी तिथि पर पाया था. इस दिन कुंवारी कन्याओं को व्रत रखने से मनचाहा वर की प्राप्ति होती है. 

माघ मासिक शिवरात्रि का पूजा मुहूर्त क्या है?
माघ मास की मासिक शिवरात्रि दिनांक 20 जनवरी 2023 को सुबह 09:59 से लेकर अगले दिन दिनांक 21 जनवरी 2023 को सुबह 06:17 मिनट तक रहेगा. वहीं शिव पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से लेकर अगले दिन यानी कि दिनांक 21 जनवरी 2023 को सुबह 01 बजकर 04 मिनट तक रहेगा. 

इस विधि से करें भगवान शिव की पूजा 
माघ मास की मासिक शिवरात्रि के दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान शिव का अभिषेक करें. उसके बाद अर्धरात्रि में भगवान शिव और मां पार्वती की तस्वीर की पूजा करें. पार्वती जी को सुहाग की सामग्री अर्पित करें. वहीं मां गौरी और भगवान शिव की तस्वीर पर लाल रंग के कलावे से तस्वीर को 7 बार लपेटें. गठबंधन करने के बाद शिव चालिसा का पाठ जरूर करें. ध्यान रहे, कि इस पाठ को आप अपने मन में बोले. 

शिव चालिसा का करें पाठ

॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥

॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥

अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ 

मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥ 

देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ 

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥

मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥ 

धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥ 

नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥

पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ 

पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ 

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥

॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण ॥