logo-image

Baglamukhi Jayanti 2021: मां बगलामुखी की पूजा करनें से शत्रुओं पर मिलती है जीत, जानें पूजा विधि

इस साल 20 मई को बगलामुखी जयंती मनाई जाएगी.  इस दिन मां बगलामुखी की पूजा अर्चना की जाती है. हर साल वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बगलामुखी जयंती मनाई जाती है.  

Updated on: 16 May 2021, 09:29 AM

नई दिल्ली:

इस साल 20 मई को बगलामुखी जयंती मनाई जाएगी.  इस दिन मां बगलामुखी की पूजा अर्चना की जाती है. हर साल वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बगलामुखी जयंती मनाई जाती है.  पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, माता बगलमुखी की अराधना करने से सभी तरह की बाधा और संकट दूर हो जाता है. इसके साथ ही शुत्रओं पर भी विजय मिलती है. माता बगलामुखी की उपासना शत्रुनाश, वाक-सिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए की जाती है. यही कारण है कि माता बगलामुखी को सत्ता की देवी भी कहा जाता है. शत्रुनाशिनी देवी मां बगलामुखी देवी की साधना-उपासना से सभी तरह की परेशानियां दूर होती हैं.  मां की उपासना करने से मुकदमों में फंसे लोग, जमीनी विवाद, शत्रुनाश आदि संपूर्ण मनोरथों की प्राप्ति होती है. वहीं जीवन से हर प्रकार की बाधा से भी मुक्ति मिल जाती है.

और पढ़ें: Chanakya Niti : सफलता की राह में रोड़ा है ये अवगुण, त्याग देने में ही है भलाई

मां बगलामुखी मंत्र

'ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं नाशय ह्लीं ॐ स्वाहा'

मां बगलामुखी पूजा विधि

बगलामुखी जयंती के दिन प्रात:काल स्नान करें और साफ-सुथरा कपड़ा पहन लें. संभव हो तो इस दिन पीले रंग का वस्त्र धारण करें. अब मां बगलामुखी की पूजा प्रारंभ करें. पूजा करते समय  मुंह पूर्व दिशा की तरफ रखें. मां बगलामुखी की पूजा के लिए चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं और मां को पीले रंग का फूल, फल और मिठाई का भोग लगाएं. इसके माता बगलामुखी की चालीसा पढ़ें और फिर आरती करें.  शाम के समय मां मां बगलामुखी की कथा का पाठ करें. मां बगलामुखी जयंती पर व्रत करने वाले भक्त शाम के समय फल खा सकते हैं.

बगलामुखी चालीसा
 

॥ दोहा ॥
सिर नवाइ बगलामुखी,
लिखूं चालीसा आज ॥
कृपा करहु मोपर सदा,
पूरन हो मम काज ॥

॥ चौपाई ॥
जय जय जय श्री बगला माता ।
आदिशक्ति सब जग की त्राता ॥

बगला सम तब आनन माता ।
एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥

शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी ।
असतुति करहिं देव नर-नारी ॥

पीतवसन तन पर तव राजै ।
हाथहिं मुद्गर गदा विराजै ॥॥

तीन नयन गल चम्पक माला ।
अमित तेज प्रकटत है भाला ॥

रत्न-जटित सिंहासन सोहै ।
शोभा निरखि सकल जन मोहै ॥

आसन पीतवर्ण महारानी ।
भक्तन की तुम हो वरदानी ॥

पीताभूषण पीतहिं चंदन ।
सुर नर नाग करत सब वंदन ॥॥

एहि विधि ध्यान हृदय में राखै ।
वेद पुराण संत अस भाखै ॥

अब पूजा विधि करौं प्रकाशा ।
जाके किये होत दुख-नाशा ॥

प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै ।
पीतवसन देवी पहिरावै ॥

कुंकुम अक्षत मोदक बेसन ।
अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ॥ 12 ॥

माल्य हरिद्रा अरु फल पाना ।
सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना ॥

धूप दीप कर्पूर की बाती ।
प्रेम-सहित तब करै आरती ॥

अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे ।
पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ॥

मातु भगति तब सब सुख खानी ।
करहुं कृपा मोपर जनजानी ॥ 16 ॥

त्रिविध ताप सब दुख नशावहु ।
तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ॥

बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं ।
अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ॥

पूजनांत में हवन करावै ।
सा नर मनवांछित फल पावै ॥

सर्षप होम करै जो कोई ।
ताके वश सचराचर होई ॥ 20 ॥

तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै ।
भक्ति प्रेम से हवन करावै ॥

दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई ।
निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ॥

फूल अशोक हवन जो करई ।
ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई ॥

फल सेमर का होम करीजै ।
निश्चय वाको रिपु सब छीजै ॥ 24 ॥

गुग्गुल घृत होमै जो कोई ।
तेहि के वश में राजा होई ॥

गुग्गुल तिल संग होम करावै ।
ताको सकल बंध कट जावै ॥

बीलाक्षर का पाठ जो करहीं ।
बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ॥

एक मास निशि जो कर जापा ।
तेहि कर मिटत सकल संतापा ॥ 28 ॥

घर की शुद्ध भूमि जहं होई ।
साध्का जाप करै तहं सोई ॥

सेइ इच्छित फल निश्चय पावै ।
यामै नहिं कदु संशय लावै ॥

अथवा तीर नदी के जाई ।
साधक जाप करै मन लाई ॥

दस सहस्र जप करै जो कोई ।
सक काज तेहि कर सिधि होई ॥ 32 ॥

जाप करै जो लक्षहिं बारा ।
ताकर होय सुयशविस्तारा ॥

जो तव नाम जपै मन लाई ।
अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ॥

सप्तरात्रि जो पापहिं नामा ।
वाको पूरन हो सब कामा ॥

नव दिन जाप करे जो कोई ।
व्याधि रहित ताकर तन होई ॥ 36 ॥

ध्यान करै जो बन्ध्या नारी ।
पावै पुत्रादिक फल चारी ॥

प्रातः सायं अरु मध्याना ।
धरे ध्यान होवैकल्याना ॥

कहं लगि महिमा कहौं तिहारी ।
नाम सदा शुभ मंगलकारी ॥

पाठ करै जो नित्या चालीसा ।
तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥  ॥

॥ दोहा ॥
सन्तशरण को तनय हूं,
कुलपति मिश्र सुनाम ।
हरिद्वार मण्डल बसूं ,
धाम हरिपुर ग्राम ॥

उन्नीस सौ पिचानबे सन् की,
श्रावण शुक्ला मास ।
चालीसा रचना कियौ,
तव चरणन को दास ॥

माँ बगलामुखी आरती 

जय जय श्री बगलामुखी माता,
आरती करहूँ तुम्हारी |
जय जय श्री बगलामुखी माता,
आरती करहूँ तुम्हारी |

पीत वसन तन पर तव सोहै,
कुण्डल की छबि न्यारी |
कर कमलों में मुद्गर धारै,
अस्तुति करहिं सकल नर नारी |

जय जय श्री बगलामुखी माता …………

चम्पक माल गले लहरावे,
सुर नर मुनि जय जयति उचारी |

जय जय श्री बगलामुखी माता ……………

त्रिविध ताप मिटि जात सकल सब,
भक्ति सदा तव है सुखकारी |

जय जय श्री बगलामुखी माता …………….

पालन हरत सृजत तुम जग को,
सब जीवन की हो रखवारी ||

जय जय श्री बगलामुखी माता ………..

मोह निशा में भ्रमत सकल जन,
करहु ह्रदय महँ, तुम उजियारी ||

जय जय श्री बगलामुखी माता ………..

तिमिर नशावहू ज्ञान बढ़ावहु,
अम्बे तुमही हो असुरारी |

जय जय श्री बगलामुखी माता ………..

सन्तन को सुख देत सदा ही,
सब जन की तुम प्राण प्यारी ||

जय जय श्री बगलामुखी माता ……….

तव चरणन जो ध्यान लगावै,
ताको हो सब भव – भयहारी |

जय जय श्री बगलामुखी माता ………..

प्रेम सहित जो करहिं आरती,
ते नर मोक्षधाम अधिकारी ||

जय जय श्री बगलामुखी माता ………….

|| दोहा ||

बगलामुखी की आरती, पढ़ै सुनै जो कोय |
विनती कुलपति मिश्र की, सुख सम्पति सब होय ||