logo-image

Kumbh Mela 2021: भर्तृहरि की पौड़ी कैसे बन गई हरि की पौड़ी, जानें उस रहस्‍य के बारे में

Haridwar Kumbh Mela 2021: देवभूमि हरिद्वार में इस साल 2021 का पूर्ण कुंभ मेला (Haridwar Kumbh Mela 2021) लगने जा रहा है. इसकी तैयारियां जोरों पर है.

Updated on: 08 Feb 2021, 10:05 AM

नई दिल्ली:

Haridwar Kumbh Mela 2021: देवभूमि हरिद्वार में इस साल 2021 का पूर्ण कुंभ मेला (Haridwar Kumbh Mela 2021) लगने जा रहा है. इसकी तैयारियां जोरों पर है. हरिद्वार पूर्ण कुंभ मेले का पहला शाही स्नान (Shahi Snan) 11 मार्च 2021 को महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के दिन होगा. कुंभ मेले (Kumbh Mela) में स्‍नान के लिए देश के कोने-कोने से करोड़ों श्रद्धालु हरिद्वार के ‘हर की पौड़ी (Hari Ki Paudi)’ पर आएंगे और पवित्र गंगा नदी (Ganga River) में स्नान कर मोक्ष प्राप्त करेंगे. आज हम आपको बताएंगे कि हरिद्वार की 'हर की पौड़ी' का पहले क्‍या नाम था और हरि की पौड़ी या हर की पौड़ी नाम क्‍यों पड़ा. श्रद्धालु हरिद्वार के जिस ‘हर की पौड़ी’ पर कुंभ का स्नान करेंगे, पहले उसका नाम ‘भर्तृहरि की पैड़ी’ था जो अब ‘हरि की पैड़ी’ या ‘हर की पौड़ी’ कहलाता है. 

माना जाता है कि उज्जैन के राजा भर्तृहरि (Raja Bhartrihari) ने राज-पाठ का त्याग करने और राजा विक्रमादित्य (Raja Vikramaditya) को गद्दी सौंपने के बाद इसी जगह के ऊपर स्थित एक पहाड़ी पर वर्षों तक तपस्या की थी. आज भी इस पहाड़ी के नीचे भर्तृहरि के नाम से एक गुफा है. यह भी कहा जाता है कि तपस्या के दौरान राजा भर्तृहरि जिस रास्ते से उतरकर गंगा नदी में स्नान के लिए आते थे, उन्हीं रास्तों पर भर्तृहरि के भाई राजा विक्रमादित्य ने सीढियां बनवाई थीं.

इन सीढ़ियों को राजा भर्तृहरि ने ‘पैड़ी’ का नाम दिया था. बाद में इस पैड़ी को हरि की पौड़ी या हरि की पैड़ी कहा जाने लगा, क्‍योंकि भर्तृहरि के नाम के अंत में हरि शब्‍द जुड़ा है. आज भी इस जगह को ‘हरि की पैड़ी’ या ‘हरि की पौड़ी’ कहा जाता है. दूसरी ओर, हरि का मतलब नारायण यानी भगवान विष्‍णु (Lord Vishnu) भी होता है. 

एक मान्‍यता यह भी है कि ‘हरि की पौड़ी’ ही वह जगह है, जहां समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें गिरी थीं. ‘हरि की पौड़ी’ हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट है. एक अन्‍य मान्‍यता के अनुसार, वैदिक काल में इसी ‘हरि की पौड़ी’ पर श्रीहरि विष्णु और शिवजी प्रकट हुए थे और ब्रह्माजी ने यहां एक यज्ञ भी किया था.