Kullu Dussehra 2023: भारतवर्ष में जहां नवरात्रि से दशहरे तक का त्योहार लोग धूमधाम से मनाते हैं वहीं हिमाचल के कुल्लू में रावण दहन के बाद दशहरे मेले की शुरुआत होती है. अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरे मेले का आयोजन भव्य तरीके से किया जाता है. ढोल नगड़ों के साथ पारंपरिक नाच गाना, ट्रेडिशिनल परिधानों में लोग धूमधाम से दशहरे मेले में मौज करते हैं. जहां देशभर में रावण का पुतला फूंक कर दशहरे का महापर्व मनाया जाता है वहीं इस दशहरे मेले में ना तो रावण का पुतला जलाते हैं और ना ही इस बारे में कोई चर्चा करता है. बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाने वाला दशहरे का त्योहार यहां देशभर के रावण दहन के बाद शुरु होता है जो अगले 7 दिनों तक चलता है. इस बार अश्विन माह की दशमी तिथि यानि 24 अक्टूबर को दशहरे के दिन इस मेले की शुरुआत होगी जो महीने के अंत तक चलेगा.
कुल्लू दशहरा की शुरुआत किसने की थी?
माना जाता है कि इस दशहरे मेले की शुरुआत 16वीं शताब्दी से हुई. सबसे पहले 1662 में कुल्लू में दशहरा मेला मनाया गया था. स्थानीय लोगों के अनुसार कहा जाता है कि कुल्लू के राजा जगत सिंह को 1650 के दौरान ऐसी भयंकर बीमारी हुई कि उसके निवारण के लिए उन्हें रघुनाथ जी की शरण लेनी पड़ी. उनकी बीमारी दूर करने के लिए एक बाबा पयहारी ने उन्हें बताया कि अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान रघुनाथ की मूर्ति लाकर उसके चरणामृत से ही उनकी बीमारी का इलाज होगा.
कई संघर्षों के बाद रघुनाथ जी की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित किया गया और राजा जगत सिंह ने यहां के सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, जिन्होंने भगवान रघुनाथजी को सबसे बड़ा देवता मान लिया. तभी से देव मिलन का प्रतीक दशहरा उत्सव आरंभ हुआ और यह आयोजन तब से हर साल यहां होता है. रघुनाथ जी के आशीर्वाद से कुल्लू के सभी निवासियों पर उनकी कृपा बनीं रहती है और उनका आशीर्वाद लेने वाले को कभी कोई कष्ट नहीं होता.
कैसे मनाया जाता है कुल्लू दशहरा
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हर साल कुल्लू दशहरे मेले के पहले दिन भगवान रघुनाथजी की रथ यात्रा से होती है. इस उत्सव के लिए रथ को सुंदर ढंग से सजाया जाता है उस रथ पर देवता की मूर्ति को काठी में बिठाते हैं. जश्न की शुरुआत ढालपुर मैदान से होती है. यहां के स्थानीय लोग रथ को रस्सियों से खींचते हैं. मान्यता है कि दशहरे के पहले दिन दशहरे के देवी और मनाली की हिडिंबा कुल्लू आती हैं. दशहरा बड़े ही अनोखे अंदाज में मनाया जाता है. यहां का दशहरा वर्ल्ड फेमस है. कुल्लू दशहरा मेले को हिमाचल की धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक माना जाता है. इस त्योहार को 'दशमी' भी कहा जाता है. कुल्लू की घाटी में इस उत्सव का रंग इतना जबरदस्त होता है कि विश्वभर से लोग ये मेला देखने हिमाचल आते हैं.
ढोल-नगाड़ों की धुनों पर लोग नाचते हैं. मेले में पारंपरिक खाने का लुत्फ उठाते हैं और 7 दिनों तक सिर्फ मेले को इन्जॉय करते हैं. मान्यता है कि इस मेले के लिए देवलोग से साक्षात देवी-देवता धरती लोग पर आते हैं. इस मेले में सभी कुलों के देवताओं का मिलन भी होता है.
इस बार कुल्लू दशहरा मेले 2023 में क्या होगा खास
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कुल्लू के दशहरे का भव्य आयोजन धौलपुर मैदान में होता है लेकिन इस उत्सव की शुरुआत रॉयल पैलेस से होती है. राजघराने के सभी सदस्य देवी-देवताओं के आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं.
कुल्लू में इस शानदार त्योहार को मनाने के लिए बाजार, मेले, प्रदर्शन, नृत्य और संगीत जैसे कई और आकर्षण शामिल हैं. और यह नवरात्रि के बाद सात दिनों तक चलता है और सबसे लोकप्रिय उत्सवों में से एक है.
कुल्लू दशहरा का प्रमुख आकर्षण ललहड़ी नाटी, रथ और मुहल्ला होता है. ललहड़ी नाटी ढालपुर मैदान पर आयोजित किया जाता है जिसे थारा कार्डू के सोह के रूप में भी जाना जाता है.
फूल और तंबुओं से इस जगह को खूबसूरती से सजाया जाता है. यहां लोग रंग-बिरंगे परिधान, सोने-चांदी के मोहरे और आभूषण पहनकर इकट्ठा होते हैं.
दशहरे के दूसरे दिन मुहल्ला भव्य मेजबानी की जाती है जिसमें कई तरह के कार्यक्रम शामिल होते हैं.
रथ यात्रा इस मेले का मुख्य आकर्षण माना जाता है.
25 अक्तूबर को सांस्कृतिक परेड और 30 अक्तूबर को कुल्लू कार्निवल का आयोजन किया जाएगा.
इस मेले में इस बार रूस, इस्राइल, रोमानिया, कजाकिस्तान, क्रोएशिया, वियतनाम, ताइवान, थाईलैंड, पनामा, ईरान, मालदीव, मलेशिया, कीनिया, दक्षिण सूडान, जाम्बिया, घाना और इथियोपिया सहित 19 देशों के कलाकर आएंगे और प्रदर्शन करेंगे.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)
Source : News Nation Bureau