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Paap Ka Chakra: गंगा, समुद्र, बादल और पाप का चक्र क्या है, जानें ये पौराणिक कथा 

Paap Ka Chakra: क्या आपको भी ऐसा लगता है कि आप गंगा जी जाकर अपने सारे पाप धो आए. अगर हां, तो आपको पाप का चक्र जरूर जान लेना चाहिए.

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Inna Khosla
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Paap Ka Chakra

Paap Ka Chakra( Photo Credit : News Nation)

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Paap Ka Chakra: धार्मिक दृष्टिकोण से पाप को ईश्वर या देवताओं के खिलाफ किए गए अपराध के रूप में देखा जाता है. यह माना जाता है कि पाप करने से नकारात्मक कर्म फल प्राप्त होते हैं और भविष्य में दुख और पीड़ा भोगनी पड़ती है. हर धर्म में पापों की अलग-अलग श्रेणियां होती हैं और इनके प्रायश्चित के लिए भी अलग-अलग विधियां उस धर्म में बतायी जाती हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पाप का क्या चक्र है.  हिंदू धर्म में, पाप को अधर्म या अकुशल कर्म के रूप में परिभाषित किया जाता है. शास्त्रों में पापों के मुख्य रूप से दस प्रकार बताए गए हैं- हिंसा, चोरी, झूठ बोलना, कामुकता, नशा, ईर्ष्या, क्रोध, अभिमान, निंदा और मोह. पाप करने के परिणाम कर्म के नियम के अनुसार होते हैं. इसका मतलब है कि हर कर्म की एक प्रतिक्रिया होती है, और पाप करने वाले व्यक्ति को नकारात्मक परिणाम भुगतने होंगे.

अगर आप ये सोचते हैं कि आपने पाप किए हैं और आप गंगा जी में जाकर स्नान कर आएंगे और आपके सारे पाप धुल जाएंगे तो ऐसा नहीं होता. पाप का चक्र है, जो पाप आपने किए हैं वो कैसे और किस रूप में लौटते हैं इसकी पौराणक कथा भी बेहद रोचक है. 

पाप चक्र की पौराणिक कथा 

एक बार देवताओं के मन में एक विडंबना उत्पन्न हुई. उस विडंबना को लेकर वह मां गंगा के पास गए और मां गंगा से पूछने लगे कि हैं माता लोग आपके पास अपने पापों को धोने आते हैं तो क्या आप भी पापी हुई तो मां गंगा ने कहा कि मैं कैसे पापी हुई, मैं तो सभी पाप लेकर समुद्र को अर्पित कर देती हूं. 

फिर सभी देवता और ऋषि समुद्र के पास गए और कहने लगे कि मां गंगा द्वारा अर्पित किए गए पाप आपके पास हैं तो क्या आप पापी हुए, तब समुद्र देव बोले- मैं कैसे पापी हुआ? मैं तो पाप रूपी जल को भांप बनाकर बादल बना देता हूं.

फिर वे सब बादलों के पास गए और पूछा की क्या आप पापी हो, तो बादलों ने कहा कि हम कैसे पापी हुए. हम तो वह पाप वापस धरती पर जल के रूप में बरसा देते हैं.

उस वर्षा से ही अन्न उगता है जिसे मनुष्य खाता है. इस अन्न को जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है, जिस व्यक्ति से प्राप्त किया जाता है या जिस मानसिकता से खिलाया जाता है. उसी के आधार पर मानव की मानसिकता बनती है. यही कारण है कि जैसा खाये अन्न वैसा बने मन. तो आप अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए अच्छे कर्म तो करें लेकिन जहां खाना खाएं या खिलाएं तो अपनी भावनाओं को भी पवित्र रखें. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.) 

Source : News Nation Bureau

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