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Ramayan Story: जब लक्ष्मण जी ने ज्ञान, वैराग्य और माया के बारे में पूछा सवाल, श्री राम ने दिया हैरानी भरा जवाब

प्रभु श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ वनवास में जाते हुए अगस्त्य मुनि (muni agastya) के आश्रम में पहुंचे. वहीं उन्हें देखते ही मुनि की आंखों से प्रेम और आनंद (ramayan story) के आंसू बहने लगे.

Updated on: 19 Jul 2022, 01:58 PM

नई दिल्ली:

प्रभु श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ वनवास में जाते हुए अगस्त्य मुनि (muni agastya) के आश्रम में पहुंचे. वहीं उन्हें देखते ही मुनि की आंखों से प्रेम और आनंद के आंसू बहने लगे. दोनों भाइयों ने मुनि के चरणों में गिरकर प्रणाम किया तो, उन्होंने दोनों को गले से लगा लिया और कुशलक्षेम पूछते हुए आसन ग्रहण करने का आग्रह किया. इसी प्रक्रिया में श्री राम (ramayan story) ने कहा कि गुरुदेव आप मुझे वही सलाह दें जिससे मैं मुनियों के द्रोही राक्षसों का संहार कर सकूं.  

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उनके वचन सुनकर मुनि ने मुस्कुराते हुए उलटा प्रश्न किया कि आपने क्या सोचकर मुझसे ये प्रश्न (ramayan story lesson) किया है. आप तो स्वयं ही लोगों के पापों का नाश करने वाले रघुनाथ जी हैं. उन्होंने यह तक कहा कि मैं आपके उस रूप को जानता हूं और उसका वर्णन भी करता हूं तो भी लौट-लौट कर मैं सगुण ब्रह्म (shri ram) में ही प्रेम मानता हूं. 

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लक्ष्मण जी ने श्री राम से पूछा, ज्ञान वैराग्य और माया क्या है -

एक बार प्रभु श्री राम सुख से बैठे हुए थे. उनके सामने बैठे हुए लक्ष्मण जी (laxman ji) ने प्रश्न किया कि हे प्रभु, मेरे मन में एक प्रश्न है जिसका उत्तर आप ही दे सकते हैं. उन्होंने पूछा ज्ञान, वैराग्य और माया क्या है, और वह भक्ति भी बताइए जिसके कारण आप लोगों पर दया करते हैं. उन्होंने आगे कहा, ईश्वर और जीव का भेद भी समझाकर बताइए जिससे आपके चरणों में मेरी प्रीति हो और शोक, मोह तथा भ्रम नष्ट हो जाए. लक्ष्मण जी की बात सुनकर श्री राम ने उत्तर दिया कि मैं संक्षेप में इसका अर्थ बताता हूं, मैं और मेरा, तू और तेरा ही माया है जिसने समस्त जीवों को वश में कर रखा है.  

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अगस्त्य मुनि ने पंचवटी में कुटिया बना निवास की दी सलाह -

अगस्त्य मुनि ने कहा कि यूं तो आप सर्वज्ञ हैं. किंतु, आपने मुझसे पूछा है तो बताना ही पड़ेगा. उन्होंने सुझाव दिया कि आप दंडक वन में पंचवटी के स्थान को पवित्र कीजिए. श्रेष्ठ मुनि गौतम जी के कठोर शाप को हर लीजिए. उन्होंने कहा कि 'हे रघुकुल के स्वामी आप यहीं पर निवास कीजिए. मुनि की आज्ञा पाकर श्री राम वहां से चल दिए और शीघ्र ही पंचवटी में पहुंच गए. पंचवटी में ही उनकी गिद्धराज जटायु से भेंट हुई और उनके साथ प्रेम बढ़ाकर प्रभु श्री राम ने गोदावरी नदी के तट पर पर्णकुटी तैयारी की और वहीं पर रहने लगे. श्री राम के वहां पर निवास करते ही वहां के मुनि आदि सब सुखी हो गए. जिसके बाद राक्षसों (laxman asked shri ram) को लेकर उनका डर जाता रहा.