Chanakya Sutra: चाणक्य से जाने क्या है राष्ट्र धर्म और इसके कर्तव्य

Chanakya Sutra: चाणक्य का मानना ​​था कि राष्ट्र धर्म प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है. उन्होंने कहा कि राष्ट्र के प्रति निष्ठावान रहकर और राष्ट्र धर्म का पालन करके ही एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है।.

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Inna Khosla
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Know from Chanakya what is national religion

Know from Chanakya what is national religion( Photo Credit : what is national religion)

Chanakya Sutra: चाणक्य, जिन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है, मौर्य साम्राज्य के प्रमुख राजनीतिक सलाहकार और अर्थशास्त्र  ग्रंथ के लेखक थे. राष्ट्र धर्म की अवधारणा चाणक्य के राजनीतिक दर्शन का केंद्रीय स्तंभ है. उनके अनुसार, राष्ट्र धर्म राजा, प्रजा और राज्य के बीच संबंधों को परिभाषित करता है. उन्होंने राजनीति, अर्थशास्त्र, समाज और धर्म जैसे विषयों पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे. उनके ग्रंथों में राष्ट्र धर्म की अलग-अलग अवधारणाएं भी शामिल हैं. चाणक्य के अनुसार, राष्ट्र धर्म राजा और प्रजा दोनों के लिए नैतिक कर्तव्यों का एक समुच्चय है. राजा का कर्तव्य है कि वह प्रजा की रक्षा करे, न्याय प्रदान करे और राज्य को समृद्ध बनाए.  प्रजा का कर्तव्य है कि वह राजा का आज्ञापालन करे, कर का भुगतान करे और राज्य की रक्षा में योगदान दे.

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राष्ट्र धर्म के मुख्य तत्व

राजा का कर्तव्य राजा का प्रथम कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना है. उसे न्यायपूर्ण और धर्मनिष्ठ शासन करना चाहिए. उसे प्रजा के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए.

प्रजा का कर्तव्य प्रजा का कर्तव्य है कि वे राजा का आज्ञापालन करें और राज्य के प्रति निष्ठावान रहें. उन्हें कर का भुगतान करना चाहिए और राज्य की सुरक्षा में योगदान देना चाहिए.

राज्य का कर्तव्य राज्य का कर्तव्य है कि वह प्रजा को सुरक्षा, न्याय और सुख-समृद्धि प्रदान करे. राज्य को कमजोर और वंचितों की रक्षा करनी चाहिए.

राष्ट्र धर्म के 5 कर्तव्य

राष्ट्र धर्म का प्रथम कर्तव्य है राष्ट्र की रक्षा करना. इसमें बाहरी आक्रमणकारियों से राष्ट्र की रक्षा करना और आंतरिक अशांति को दूर करना शामिल है. राष्ट्र धर्म का दूसरा कर्तव्य है राष्ट्र की समृद्धि को बढ़ावा देना. इसमें अर्थव्यवस्था को मजबूत करना, कृषि और व्यापार को प्रोत्साहित करना और जनता के जीवन स्तर को उच्च करना शामिल है. तीसरा कर्तव्य है न्याय और कानून का शासन स्थापित करना. इसमें सभी नागरिकों के लिए समानता और न्याय सुनिश्चित करना और कानूनों का पालन करना शामिल है. और राष्ट्र धर्म का चौथा कर्तव्य है राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना. इसमें विभिन्न जातियों, धर्मों और संप्रदायों के लोगों के बीच सद्भाव और सहिष्णुता को बढ़ावा देना शामिल है. राष्ट्र धर्म का पांचवां कर्तव्य है धर्म और संस्कृति की रक्षा करना. इसमें राष्ट्रीय धरोहर और परंपराओं को संरक्षित करना और आध्यात्मिक मूल्यों को बढ़ावा देना शामिल है.

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चाणक्य के अनुसार, राष्ट्र धर्म केवल राजा और प्रजा तक ही सीमित नहीं है.  यह सभी नागरिकों पर लागू होता है.  सभी नागरिकों का कर्तव्य है कि वे राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखने में योगदान दें. राष्ट्र धर्म राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखने में मदद करता है. यह सभी नागरिकों को एकजुट करता है और उन्हें राष्ट्र के प्रति समर्पित बनाता है. राष्ट्र धर्म समाजिक न्याय सुनिश्चित करने में मदद करता है. यह सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर प्रदान करता है. ये राष्ट्र को सुरक्षित और समृद्ध बनाता है. यह राष्ट्र को आंतरिक और बाहरी खतरों से बचाता है. चाणक्य के अनुसार, राष्ट्र धर्म एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो राष्ट्र, राजा और प्रजा के बीच संबंधों को परिभाषित करती है.  यह राष्ट्र की एकता, समाजिक न्याय, सुरक्षा और समृद्धि के लिए आवश्यक है.  आज भी चाणक्य के विचार प्रासंगिक हैं और हमारे राष्ट्र को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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