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Saas Bahu Temple: कहां है सास-बहू का मंदिर, जानिए इसका इतिहास और मान्यता

Saas Bahu Temple: भगवान के नाम से भारत में कई मंदिरों के बारे में आपने सुना और देखा होगा लेकिन क्या आपने कभी सास-बहू के मंदिर के बारे में सुना है. आइए बताते हैं इस मंदिर की रोचक कहानी.

Updated on: 20 Sep 2023, 10:16 AM

नई दिल्ली:

Saas Bahu Temple: सास बहू के रिश्ते के बारे में तो हम सब जानते हैं लेकिन बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि भारत में सास बहू का मंदिर भी है. इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. राजस्थान के उदयपुर में ये मंदिर बना हुआ है जिसे सहस्त्रबाहु के नाम से जाना जाता है. लेकिन प्रचलित नाम सास बहू का मंदिर ही है. इस मंदिर को सास बहू का मंदिर क्यों कहते हैं इसके पीछे की कहानी भी बेहद रोचक है. जानकारों की मानें तो कच्छवाहा राजवंश के राजा महिपाल ने इसे 10 वीं या 11 वीं शताब्दी ईस्वी में बनवाया था. ये मंदिर उदयपुर शहर से लगभग 23 किमी दूर नागदा गांव में है.

इतिहास द्वारा मिली जानकारी के अनुसार राजस्थान के उदयपुर से 25 किलोमीटर की दूर पर बना ये सास बहू मंदिर लगभग 1100 साल पुराना है. कहते हैं ये मंदिर  कच्‍छपघात राजवंश के राजा महिपाल और रत्नपाल ने अपनी पत्नी और बहू के लिए बनवाए थे. राजा की रानी भगवान विष्णु की भक्त थी. वो उनकी पूजा अर्चना नियम से किया करती थी. इष्ट देवता के प्रति अपनी रानी का लगाव देखते हुए राजा ने सबसे पहले भगवान विष्णु का मंदिर यहां बनवाया. भगवान विष्णु की कृपा से विवाह के कुछ समय बाद ही रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया. जिसका नाम इन्होने रत्नपाल रखा.

रानी ने बड़े लाड प्यार से अपने पुत्र की परवरिश की, उसे हर तरह की शिक्षा दी. कुछ सालों बाद जब उनका बेटा विवाह योग्य हुआ तो बेहद धूमधाम से राजा ने अपने पुत्र का विवाह भी करवा दिया. जिस कन्या से उनका विवाह हुआ वो भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थी. अपनी बहू का भक्तिभाव देखते हुए राजा ने अपनी बहू के लिए भगवान शिव का एक भव्य मंदिर बनवाया ताकि वो आराम से यहां पूजा अर्चना कर सके. 

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ये दोनों सास और बहू के मंदिर आसपास ही बनाए गए थे. क्योंकि रानी का मंदिर पहले बना था इसलिए इसका नाम सहस्‍त्रबाहू कहा जाने लगा. जिसका अर्थ है 'हजारों भुजाओं वाला', भगवान विष्णु का पर्यायवाची. जिसे बाद में भी इसी नाम से लोगों ने जाना. लेकिन समय के बदलाव और मंदिर निर्माण की कहानी को जो सुनता वो इसे सास बहू मंदिर कहने लगता और फिर ये नाम प्रचलन में आ गया और लोग इसे सास बहू मंदिर के नाम से ही पुकारने लगे. 

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