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Kashi Vishwanath Temple History: विध्वंस और निर्माण का दिलचस्प रहस्य समेटे हुए आज भी खड़ा है हजारों साल पुराना 'काशी विश्वनाथ मंदिर'

Kashi Vishwanath Temple History: पौराणिक मान्यताओं की मानें तो काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास युगो-युगांतर से है. ऐसे में आज हम आपको इस मंदिर से जुड़े कई रोचक तथ्य और रहस्यमयी बातें बताने जा रहे हैं जो आज भी इतिहास के पन्नों से बाहर नहीं आ पाई हैं.

Updated on: 19 May 2022, 04:24 PM

नई दिल्ली :

Kashi Vishwanath Temple History: वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद मामला काफी तूल पकड़ चुका है. ज्ञानवापी मस्जिद में हुए सर्वे और वीडियोग्राफी के विवाद ने काफी सालों पुराने विध्वंस गाथाओं को पुनः जन्म दे दिया है. इस मामले के कारण उन सभी अवधारणाओं के आधार पर दावे किए जा रहे हैं कि यहां विश्वनाथ मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण हुआ. पौराणिक मान्यताओं की माने तो काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास युगो-युगांतर से है. विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. भगवान शिव का यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में गंगा नदी के किनारे स्थित है. काशी विश्वनाथ मंदिर को विश्वेश्वर नाम से भी जाना है. विश्वेश्वर शब्द का अर्थ होता है 'ब्रह्मांड का शासक'. यह मंदिर पिछले कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है. मुगल शासकों द्वारा कई बार ध्वस्त किये गए काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदू धर्म का प्रतीक और पावन मंदिरो में से एक माना जाता है. आइए जानते हैं विध्वंस और निर्माण से जुड़े काशी विश्वनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में.

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काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण 
- विश्वनाथ मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना माना जाता है. ये मंदिर गंगा नदी के पश्चिमी तट पर है. 
- कहा जाता है कि इस मंदिर का दोबारा निर्माण 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था। 1194 ईसवी में मुहम्मद गौरी ने इसे ध्वस्त कर दिया था.
- परंतु मंदिर का पुन निर्माण करवाया गया लेकिन 1447 ईसवी में इसे एक बार फिर जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया.
- इतिहास के पन्नों में झांकने पर यह ज्ञात होता है कि काशी मंदिर के निर्माण और तोड़ने की घटनाएं 11वीं सदी से लेकर 15वीं सदी तक चलती रही.

औरंगजेब ने कराया मंदिर ध्वस्त
- 1585 में राजा टोडरमल की मदद से पंडित नारायण भट्ट ने विश्वनाथ मंदिर का एक बार फिर से निर्माण करवाया. 
- लेकिन एक बार फिर 1632 में शाहजंहा ने मंदिर का विध्वंस करने के लिए अपनी सेना भेजी लेकिन सेना अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाई.
-  इसके बाद औरंगजेब ने 18 अप्रैल 1669 में इस मंदिर को ध्वस्त करा दिया.

1780 में करवाया था मौजूदा मंदिर का पुनः निर्माण 
- इसके बाद करीब 125 साल तक वहां कोई मंदिर नहीं था. वर्तमान में जो बाबा विश्वनाथ मंदिर स्थित है उसका निर्माण महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में करवाया था. 
- बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 1000 किलोग्राम सोना दान दिया था. 
- इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास भी आए थे.

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मंदिर के पास ही विवादित ज्ञानवापी मस्जिद
- मंदिर के साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद है. कहा जाता है कि मस्जिद मंदिर की ही मूल जगह पर बनाई गई है. 
- ज्ञानवापी मस्जिद को मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर बनवाया था. 
- इसके पीछे भी एक दिलचस्प कथा है जिसका उल्लेख मशहूर इतिहासकार डॉक्टर विश्वंभर नाथ पांडेय की पुस्तक 'भारतीय संस्कृति, मुगल विरासत: औरंगजेब के फ़रमान'' में मिलता है.

क्या है कहानी? 
- पट्टाभि सीतारमैया की पुस्तक 'फेदर्स एंड स्टोन्स' के हवाले से विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने संबंधी औरंगजेब के आदेश और उसकी वजह के बारे में में डॉक्टर विश्वंभर नाथ पांडेय अपनी पुस्तक के 119 और 120 पृष्ठ में इसका जिक्र करते हैं. इसके अनुसार एक बार औरंगजेब बनारस के निकट के प्रदेश से गुज़र रहे थे. सभी हिन्दू दरबारी अपने परिवार के साथ गंगा स्नान और विश्वनाथ दर्शन के लिए काशी आए. 
- विश्वनाथ दर्शन कर जब लोग बाहर आए तो पता चला कि कच्छ के राजा की एक रानी गायब हैं. जब उनकी खोज की गई तो मंदिर के नीचे तहखाने में वस्त्राभूषण विहीन, भय से त्रस्त रानी दिखाई पड़ीं. जब औरंगजेब को पंडों की यह काली करतूत पता चली तो वह बहुत क्रुद्ध हुआ और बोला कि जहां मंदिर के गर्भ गृह के नीचे इस प्रकार की डकैती और बलात्कार हो, वो निस्संदेह ईश्वर का घर नहीं हो सकता. 
- उसने मंदिर को तुरंत ध्वस्त करने का आदेश जारी कर दिया. औरंगजेब के आदेश का तत्काल पालन हुआ लेकिन जब यह बात कच्छ की रानी ने सुनी तो उन्होंने उसके पास संदेश भिजवाया कि इसमें मंदिर का क्या दोष है, दोषी तो वहां के पंडे हैं. रानी ने इच्छा प्रकट की कि मंदिर का पुनः निर्माण करवाया जाए. 
- लेकिन औरंगजेब के लिए अपने धार्मिक विश्वास के कारण, फिर से नया मंदिर बनवाना असंभव था , इसलिए उसने मंदिर की जगह मस्जिद खड़ी करके रानी की इच्छा पूरी की. 
- इस बात की पुष्टि कई अन्य इतिहासकार ने करते हुए कहा है कि औरंगजेब का यह फ़रमान हिन्दू विरोध या फिर हिन्दुओं के प्रति किसी घृणा की वजह से नहीं बल्कि उन पंडों के खिलाफ गुस्सा था जिन्होंने कच्छ की रानी के साथ दुर्व्यवहार किया था.

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ज्ञानवापी नाम कैसे पड़ा?
- कुछ मान्यताओं के अनुसार अकबर ने 1585 में नए मजहब दीन-ए-इलाही के तहत विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी. मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है. इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम पड़ा. 
- स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था. शिवजी ने यहीं अपनी पत्नी पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इस जगह का नाम ज्ञानवापी या ज्ञान का कुआं पड़ा. किंवदंतियों, आम जनमानस की मान्यताओं में यह कुआं सीधे पौराणिक काल से जुड़ता है.

विश्वनाथ मंदिर का आकार 
- विश्वनाथ मंदिर का प्रमुख शिवलिंग 60 सेंटीमीटर लंबा और 90 सेंटीमीटर की परिधि में है. मुख्य मंदिर के आसपास काल-भैरव, कार्तिकेय, विष्णु, गणेश, पार्वती और शनि के छोटे-छोटे मंदिर हैं. 
- मंदिर में 3 सोने के गुंबद हैं, जिन्हें 1839 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने लगवाया था. मंदिर-मस्जिद के बीच एक कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कुआं कहा जाता है. 
- ज्ञानवापी कुएं का जिक्र स्कंद पुराण में भी मिलता है. कहा जाता है कि मुगलों के आक्रमण के दौरान शिवलिंग को ज्ञानवापी कुएं में छिपा दिया गया था.