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Karwa Chauth 2020: इस विधि से करें करवा चौथ की पूजा, जानें मुहूर्त, कथा और चांद निकलने का समय

आज यानि 4 नवंबर को देशभर में शादीशुदा औरतें करवा चौथ का त्यौहार मना रही है. हर साल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ मनाया जाता है. इस दिन सभी महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं.

Updated on: 04 Nov 2020, 08:09 AM

नई दिल्ली:

आज यानि 4 नवंबर को देशभर में शादीशुदा औरतें करवा चौथ का त्यौहार मना रही है. हर साल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ मनाया जाता है. इस दिन सभी महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं. इसके बाद रात में चांद देखने के बाद ही अपने पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती है. करवा चौथ में शिव-पार्वती, कार्तिक और करवा चौथ माता की पूजा की जाती है. महिलाएं करवा माता और शिव-पार्वती से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं.

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हिंदू रीति-रिवाज में करवा चौथ का खास महत्व है. इस दिन सभी महिलाएं 16 श्रृंगार भी करती हैं. इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति को छलनी में दीपक रख कर देखती है. इसके बाद पति के हाथ पानी पीकर वो अपना व्रत खोलती है. 

मान्यता ये भी है कि श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य और धन-धान्य की प्राप्ति होने लगती है. श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा था. इस व्रत के प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की.

करवा चौथ मुहूर्त-

4 नवंबर को सुबह 03:24 बजे से 5 नवंबर को सुबह 05:14 बजे तक चतुर्थी तिथि पड़ रही है. करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त 4 नवंबर की शाम 5:29 बजे से शाम 6:48 बजे तक है, जबकि रात रात 8:16 बजे चंद्रोदय होगा. 

ऐसे सजाएं करवा चौथ की थाली- 

करवा चौथ की पूजा के लिए जो थाली सजाएं, उसमें छलनी, मिट्टी का टोंटीदार करवा और ढक्कन (मिट्टी या पीतल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं), रूई की बत्ती, धूप या अगरबत्ती, फल, फूल, मिठाइयां, कांस की तीलियां, रोली, अक्षत (साबुत चावल), पीली मिट्टी के 5 डेले, आटे का दीया, दीपक, सिंदूर, चंदन, कुमकुम, शहद, चीनी, लकड़ी का आसन, गंगाजल, कच्चा दूध, दही, देसी घी, आठ पूरियों की अठावरी, हलवा और दक्षिणा जरूर होना चाहिए. 

करवा चौथ पूजा विधि-

करवा चौथ के मौके पर पूरे दिन मन में शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय का ध्यान करती रहें. दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा बनाएं. अब आठ पूरियों की अठारवीं बनाएं. 

करवा चौथ पूजन के लिए बालू या सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर शिव-पार्वती, गणेश-कार्तिकेय और चंद्रमा , करवा माता को स्थापित करें. मां गौरी को लकड़ी के सिंहासन पर विराजमान कर लाल रंग की चुनरी पहनाएं और श्रृंगार की चीजें अर्पित करें. करवा माता की तस्वीर पर भी सुहाग कि चीजें लगाएं, जैसै बिंदी, आलता, सिंदूर. इसके बाद  फिर उनके सामने जल से भरा कलश रखें. इसके ऊपर रखे ढक्कन में चीनी का बूरा (चूरा) भर दें. फिर इस पर दक्षिणा (पैसे) रखें. गौरी गणेश के स्‍वरूपों की पूजा करें. पूजा के वक्त पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें. करवा चौथ व्रत कथा जरूर पढ़ें. अब चंद्रमा के पूजन के बाद पति को छलनी में से देखें. इसके बाद पति पानी पिलाकर पत्नी के व्रत को खोलता है.

करवा चौथ पर करें 16 श्रृंगार-

करवा चौथ पर महिलाओं के लिए 16 शृंगार करने का नियम है. करवा चौथ पर लाल रंग की  साड़ी या लहंगा पहनें. साड़ी या लहंगा के अलावा 16 शृंगार में सिंदूर, मंगलसूत्र, बिंदी, नथनी, काजल, गजरा, मेहंदी, अंगूठी, चूड़ियां, ईयररिंग्स (कर्णफूल), मांग टीका, कमरबंद, बाजूबंद, बिछिया और पायल पहनें. इस तरह सुहाग की निशानी वाली हर चीज से आज खुद को सजाएं.

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करवा चौथ की कथा-

एक ब्राह्मण के सात पुत्र थे और वीरावती नाम की इकलौती पुत्री थी. सात भाइयों की अकेली बहन होने के कारण वीरावती सभी भाइयों की लाडली थी और उसे सभी भाई जान से बढ़कर प्रेम करते थे. कुछ समय बाद वीरावती का विवाह किसी ब्राह्मण युवक से हो गया. विवाह के बाद वीरावती मायके आई और फिर उसने अपनी भाभियों के साथ करवाचौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वह भूख से व्याकुल हो उठी.

सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है. लेकिन चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है.

वीरावती की ये हालत उसके भाइयों से देखी नहीं गई और फिर एक भाई ने पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है. दूर से देखने पर वह ऐसा लगा की चांद निकल आया है. फिर एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो. बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखा और उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ गई.

उसने जैसे ही पहला टुकड़ा मुंह में डाला है तो उसे छींक आ गई. दूसरा टुकड़ा डाला तो उसमें बाल निकल आया. इसके बाद उसने जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश की तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिल गया.

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ. करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं. एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी करवाचौथ के दिन धरती पर आईं और वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की. देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत करने के लिए कहा. इस बार वीरावती पूरी श्रद्धा से करवाचौथ का व्रत रखा. उसकी श्रद्धा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंनें वीरावती सदासुहागन का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को जीवित कर दिया. इसके बाद से महिलाओं का करवाचौथ व्रत पर अटूट विश्वास होने लगा.