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Karwa Chauth 2020: 4 नवंबर को है करवाचौथ, जानें पूजा विधि, मुहूर्त और कथा

सुहागिनों का सबसे बड़ा पर्व माने जाने वाला करवाचौथ (KarwaChauth 2020) का त्योहार इस साल 4 नवंबर को मनाया जाएगा.

Updated on: 27 Oct 2020, 02:51 PM

नई दिल्ली:

सुहागिनों का सबसे बड़ा पर्व माने जाने वाला करवा चौथ (KarwaChauth 2020) का त्योहार इस साल 4 नवंबर को मनाया जाएगा.  ये त्योहार शादीशुदा महिलाओं के लिए काफी खास और महत्वपूर्ण माना जाता है. हर साल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ मनाया जाता है. इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं पूरा दिन निर्जला व्रत रखती और रात में चांद दिखने के बाद ही पानी या अन्न ग्रहण करती हैं.  करवाचौथ में शिव-पार्वती, कार्तिक और करवा चौथ माता की पूजा की जाती है. महिलाएं करवा माता और शिव-पार्वती से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. 

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हिंदू रीति-रिवाज में करवा चौथ का खास महत्व है. इस दिन सभी महिलाएं 16 श्रृंगार भी करती हैं. इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति को छलनी में दीपक रख कर देखती है. इसके बाद पति के हाथ पानी पीकर वो अपना व्रत खोलता है. 

मान्यता ये भी है कि श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य और धन-धान्य की प्राप्ति होने लगती है. श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा था. इस व्रत के प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की.

पूजा विधि-

सूरज उगने से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भोर में ही सास की भेजी हुई सरगी खाएं. इसमें मिठाई, फल, सेंवई, पूड़ी और 16 श्रृंगार का सामान होता है. यह ध्यान रखें कि सरगी में प्याज और लहसुन से बना खाना न हो. सरगी खाने के बाद से ही करवा चौथ का निर्जल व्रत शुरू होता है. पूरे दिन मन में शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय का ध्यान करती रहें. दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा बनाएं. अब आठ पूरियों की अठारवीं बनाएं. 

करवा चौथ पूजन के लिए बालू या सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर शिव-पार्वती, गणेश-कार्तिकेय और चंद्रमा को स्थापित करें. मां गौरी को लकड़ी के सिंहासन पर विराजमान कर लाल रंग की चुनरी पहनाएं और श्रृंगार की चीजें अर्पित करें. फिर उनके सामने जल से भरा कलश रखें. इसके ऊपर रखे ढक्कन में चीनी का बूरा (चूरा) भर दें. फिर इस पर दक्षिणा (पैसे) रखें. गौरी गणेश के स्‍वरूपों की पूजा करें. पूजा के वक्त पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें. चंद्रमा के पूजन के बाद पति को छलनी में से देखें। इसके बाद पति पानी पिलाकर पत्नी के व्रत को खोलती है.

करवा चौथ मुहूर्त-

  • करवा चौथ पूजा मुहूर्त- 17:29 से 18:48 बजे तक
  • चंद्रोदय का समय- 20:16 बजे
  • चतुर्थी तिथि आरंभ (4 नवंबर)- 03:24
  • चतुर्थी तिथि समाप्त (5 नवंबर)- 05:14

करवा चौथ की कथा-

एक ब्राह्मण के सात पुत्र थे और वीरावती नाम की इकलौती पुत्री थी. सात भाइयों की अकेली बहन होने के कारण वीरावती सभी भाइयों की लाडली थी और उसे सभी भाई जान से बढ़कर प्रेम करते थे. कुछ समय बाद वीरावती का विवाह किसी ब्राह्मण युवक से हो गया. विवाह के बाद वीरावती मायके आई और फिर उसने अपनी भाभियों के साथ करवाचौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वह भूख से व्याकुल हो उठी.

सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है. लेकिन चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है.

वीरावती की ये हालत उसके भाइयों से देखी नहीं गई और फिर एक भाई ने पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है. दूर से देखने पर वह ऐसा लगा की चांद निकल आया है. फिर एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो. बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखा और उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ गई.

उसने जैसे ही पहला टुकड़ा मुंह में डाला है तो उसे छींक आ गई. दूसरा टुकड़ा डाला तो उसमें बाल निकल आया. इसके बाद उसने जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश की तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिल गया.

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ. करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं. एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी करवाचौथ के दिन धरती पर आईं और वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की. देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत करने के लिए कहा. इस बार वीरावती पूरी श्रद्धा से करवाचौथ का व्रत रखा. उसकी श्रद्धा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंनें वीरावती सदासुहागन का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को जीवित कर दिया. इसके बाद से महिलाओं का करवाचौथ व्रत पर अटूट विश्वास होने लगा.