logo-image

Kartik Purnima 2020: क्‍यों धूमधाम से मनाई जाती है कार्तिक पूर्णिमा? क्‍या है इसके पीछे की पौराणिक कथा

Kartik Purnima 2020: कार्तिक पूर्णिमा इस बार 30 नवंबर को पड़ रही है. इसी दिन देव दीपावली भी मनाई जाएगी. हिंदू धर्म में कार्तिक मास की पूर्णिमा का खास महत्‍व होता है.

Updated on: 29 Nov 2020, 03:39 PM

नई दिल्ली:

Kartik Purnima 2020: कार्तिक पूर्णिमा इस बार 30 नवंबर को पड़ रही है. इसी दिन देव दीपावली भी मनाई जाएगी. हिंदू धर्म में कार्तिक मास की पूर्णिमा का खास महत्‍व होता है. शास्त्रों में कार्तिक महीने को आध्यात्मिक एवं शारीरिक ऊर्जा संचय के लिहाज से सर्वश्रेष्ठ माना गया है. हिन्‍दू कैलेंडर वर्ष के आठवें महीने को कार्तिक महीना कहते हैं और इस माह की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहते हैं. आज हम आपको कार्तिक पूर्णिमा की कथा के बारे में बताएंगे.

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार, तारकासुर नाम के एक राक्षस के तीन पुत्र थे - तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली. भगवान भोलेशंकर के बड़े पुत्र भगवान कार्तिक ने तारकासुर का वध कर दिया. इस पर तीनों बेटे बहुत दुखी हुए और ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए तपस्या करने लगे. तीनों की तपस्या से प्रसन्न ब्रह्मजी प्रकट हुए तो तीनों ने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने कहा कि यह वरदान वे नहीं दे सकते. कोई दूसरा वर मांगो.

तीनों ने ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने का वर मांगा, जिसमें तीनों बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूम सकें और एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें तो हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट कर दे, वहीं हमारी मौत का कारण हो. ब्रह्माजी ने तीनों को यह वरदान दे दिया.

मयदानव ने ब्रह्माजी के कहने पर तीनों के लिए तीन नगर, तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया. तीनों भाइयों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया, जिससे भयभीत इंद्रदेव भगवान शंकर की शरण में गए. भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया, जिसकी हर एक चीज देवताओं से बनीं. पहिए चंद्रमा और सूर्य से बने. इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बनें. हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें. भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोक बने अग्निदेव. खुद भगवान शिव इस दिव्य रथ पर सवार हुए.

तीनों भाइयों से भगवान शिव के इस रथ के बीच भयंकर लड़ाई हुई. तीनों जैसे ही एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया. इसी के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा. माना जाता है कि भगवान शिव को यह नाम भगवान विष्‍णु ने दिया. कार्तिक मास की पूर्णिमा को तीनों का वध हुआ. इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है.