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Kanwar Yatra 2022: सावन में किस चीज से खुश होते हैं भोलेनाथ

पारस परिवार (Paras Parivaar) के मुखिया पारस भाई जी (Paras Bhai Ji) ने कहा कि हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति में सावन (श्रवण मास) का बहुत महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार सावन पांचवां महीना होता है.

Updated on: 16 Jul 2022, 07:50 PM

नई दिल्ली:

पारस परिवार (Paras Parivaar) के मुखिया पारस भाई जी (Paras Bhai Ji) ने कहा कि हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति में सावन (श्रवण मास) का बहुत महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार सावन पांचवां महीना होता है. हिंदू धर्म ग्रंथों में सावन मास की बहुत महिमा है. सावन मास घोर वर्षा का महीना होता है. पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण भारत में सावन में बादल उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं. लेकिन इसी दौरान भगवान शंकर के भक्त उन्हें जलाभिषेक करने के लिए पैदल ही टोली बनाकर गाते-झूमते निकलते हैं. कांवड़ यात्रा साधना और समर्पण की पवित्र यात्रा है. इस बार सावन माह 14 जुलाई से आरंभ हो रहा है, जो 12 अगस्त तक चलेगा. इस बार सावन में कुल 4 सोमवार पड़ रहे हैं.      

पारस भाई जी ने कहा कि सावन भगवान शंकर का प्रिय माह है. कहा जाता है कि श्रावण मास में महादेव स्वर्ग से उतर धरती यानि अपने ससुराल आए थे. इस दौरान उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था. हिंदू पौराणिक कथाओं में ऐसी मान्यता है कि हर सावन में भगवान शिव धरती पर आते हैं. उनके भक्तों के लिए उनके अभिषेक का यह उत्तम समय है.

उन्होंने कहा कि पुराण और लोककथाओं में ही नहीं ज्योतिष शास्त्र में भी सावन के पावन महीने में भगवान भोलेनाथ की विधिविधान से पूजा को बहुत फलदायी माना गया है. जो भक्त सावन में विधि-विधान से भोले-शंकर की पूजा करता है उनकी सारी मनोकामना पूर्ण होती हैं. सावन महीने के सोमवार को भगवान शिव को जल चढ़ाने की बहुत ज्यादा धार्मिक मान्यता है. जल के साथ बेल पत्र, चंदन, धतूर और पीला फूल अर्पित किया जाता है.

सावन महीना शुरू होते ही देश भर में कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) भी शुरू हो जाती है. सड़क मार्ग से लाखों शिव भक्त कावड़ लेकर गंगा जल लेने हरिद्वार जाते हैं और वहां से जल लाकर महादेव का जलाभिषेक करते हैं. हरिद्वार ही नहीं पूरब में झारखंड के देवघर में स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम भी लोग कांवड़ लेकर जाते हैं. देश में जहां भी प्राचीन शिव मंदिर है पूरे सावन भर भक्त जलाभिषेक करते हैं. कोरोना महामारी की वजह से पिछले 2 साल से कांवड़ यात्रा नहीं हुई जिस कारण से इस बार कावड़ियों की भारी भीड़ उमड़ने की उम्मीद है.

गुरुदेव पारस भाई ने कहा कि ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर काफी जल्दी अपने भक्तों से प्रसन्न होते हैं, लेकिन भूल हो जाने पर उतनी ही जल्दी गुस्सा भी हो जाते हैं. इस यात्रा के कुछ कठिन नियम भी है.

कांवड़ यात्रा के नियम

सावन के पवित्र माह में होने वाली कावड़ यात्रा एक पवित्र यात्रा होती है, इसलिए इस यात्रा में शुद्धता का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है. बिना स्नान किए भक्त कांवड़ को हाथ नहीं लगाते. कांवड़ यात्रा के दौरान यदि किसी कारण से रुकना पड़ता है, तो गंगा जल से भरी हुई कावड़ को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाता. इस स्थिति में कांवड़ को किसी ऊंचे स्थान या पेड़ में टांग दिया जाता है. कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से पूरे श्रावण मास दूर रहना होता है.

कांवड़ यात्रा के प्रकार

खड़ी कांवड़ यात्रा
खड़ी कांवड़ यात्रा को सबसे कठिन कावड़ यात्रा माना जाता है, क्योंकि इसमें न तो कांवड़ जमीन पर रखी जाती है और ना ही कहीं पर टांगी जाती है.

श्रृंगार कांवड़
इसमें भक्त भगवान शिव की काफी सुंदर प्रतिमा और झांकी बनाकर कांवड़ यात्रा निकलते हैं. इस यात्रा के दौरान भगवान शिव का श्रृंगार भी होता है और भक्त भजन पर झूमते नाचते हुए गंगाजल लेने पहुंचते हैं.

डाक कांवड़
डाक कावड़ में जब मंदिर की दूरी 36 से 24 घंटे के बीच रह जाती है तो कांवड़ यात्री गंगाजल लेकर दौड़ते हुए जाते हैं. एक थक जाता है तो वह दूसरे को पास कर देता है.