कान्हा की बांसुरी राधा तो दीवानी थीं ही, फ्रांस-इटली और अमेरिका भी हुए मुरीद
कान्हा की बांसुरी. इसकी धुन सिर्फ राधा, गोकुल के ग्वाल-बालों और गायों को ही नहीं पूरे देश और दुनिया को पसंद है. फिलहाल खास तरह की ये बांसुरी उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में बनती है.
लखनऊ:
कान्हा की बांसुरी. इसकी धुन सिर्फ राधा, गोकुल के ग्वाल-बालों और गायों को ही नहीं पूरे देश और दुनिया को पसंद है. फिलहाल खास तरह की ये बांसुरी उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में बनती है. वहां बनी बांसुरी के मुरीद देश में ही नहीं सात समुंदर पार फ्रांस, इटली और अमेरिका सहित कई देश हैं. योगी सरकार ने बांसुरी को पीलीभीत का 'एक जिला, एक उत्पाद' (ओडीओपी) घोषित कर रखा है.
अवध शिल्प ग्राम के हुनर हाट में ओडीओपी की दीर्घा में एक दुकान बांसुरी की भी है. यह दुकान पीलीभीत के बशीर खां मोहल्ले में रहने वाले, बांसुरी बनाने वाले इकरार नवी की है. नवी अपने नायाब किस्म की बांसुरियों के लिए कई पुरस्कार भी पा चुके हैं. उनके स्टॉल में दस रुपये से लेकर पांच हजार रुपये तक की बांसुरी मौजूद है. बांसुरी बनाना और बेचना उनका पुस्तैनी काम है. इकरार नवी कहते हैं कि बांसुरी तो कन्हैया जी (भगवान कृष्ण) की देन है जो लोगों की रोजी रोटी चला रही है. बांसुरी कारोबार पर आए संकट को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओडीओपी के जरिये दूर किया है.
इकरार बताते हैं कि पीलीभीत में आजादी के पहले से बांसुरी बनाने का कारोबार चलता आ रहा है. पीलीभीत की बनी बांसुरी दुनिया के कोने-कोने जाती है. पीलीभीत की हर गली- मोहल्ले में पहले बांसुरी बनती थी, लेकिन अब बहुत लोगों ने यह काम छोड़ दिया है.
इकरार कई साइज की बांसुरी बना लेते हैं. इसमें छोटी साइज से लेकर बड़ी साइज की बांसुरी शामिल है. बांसुरी 24 तरह की होती है. उनमें छह इंच से लेकर 36 इंच तक की बांसुरी आती है. इकरार बताते हैं कि वह एक दिन में करीब ढ़ाई सौ बांसुरी बना लेते हैं.
इकरार बांसुरी कारोबार के संकट का भी जिक्र करते हैं. वह बताते हैं कि बांसुरी जिस बांस से बनती है, उसे निब्बा बांस कहते हैं. वर्ष 1950 से पहले नेपाल से यह बांस यहां आता था, लेकिन बाद के दिनों में नेपाल से आयात बंद हो गया. इसके बाद असम के सिलचर से निब्बा बांस पीलीभीत आने लगा. पीलीभीत से छोटी रेल लाइन पर गुहाटी एक्सप्रेस चला करती थी, इससे सिलचर से सीधे कच्चा माल (निब्बा बांस) पीलीभीत आ जाता था. इससे बहुत सुविधा थी, लेकिन 1998 में यह लाइन बंद हो गई. यहीं से दिक्कत की शुरूआत हो गई. और हजारों लोगों ने बांसुरी बनाने से तौबा कर ली.
इकरार के अनुसार बांसुरी को ओडीओपी से जोड़े जाने से इस कारोबार को नया जीवन मिला है. बांसुरी हर कोई बजा सकता है, खरीद सकता है. बच्चों को बांसुरी बहुत पसंद है. हर मां बाप अपने बच्चे को बांसुरी खरीद कर देता ही देता है. इकरार को लगता है कि हर व्यक्ति ने एक बार तो बांसुरी बजाई ही होगी. इकरार बताते हैं बीते साल उन्होंने यूपी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में दो लाख रुपये बांसुरी बेच कर हासिल किये थे. इस बार भी उनको अच्छे कारोबार की उम्मीद है.
इकरार ने बताया कि ओडीओपी योजना के जरिये उन्हें बांसुरी बेचने का नया मंच भी मिला है. प्रदेश सरकार की ओडीओपी मार्जिन मनी स्कीम, मार्केटिंग डेवलेप असिस्टेंट स्कीम और ई-कॉमर्स अनुदान योजनाओं से भी बांसुरी कारोबार को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद मिली. जिसके चलते बांसुरी कारोबार में रौनक आ गई है. और सात समुंदर पार पीलीभीत की बांसुरी की स्वरलहरी गूंजेगी रही है. लखनऊ के लोगों को भी पीलीभीत की बांसुरी भा रही है.
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