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Janmashtami: मुस्लिम संत भी हुए हैं कृष्ण भक्ति में सराबोर, लिखे हैं भक्ति गीत

भगवान कृष्ण की भक्ति सिर्फ हिंदू ही नहीं करते बल्कि उनके कई प्रसिद्ध भजन मुस्लिम संतों ने लिखे हैं. 

Updated on: 29 Aug 2021, 04:06 PM

highlights

  • अनेक धर्मों में हैं भगवान कृष्ण को मानने वाले लोग
  • 30 अगस्त को है इस बार जन्माष्टमी का पर्व
  • भगवान कृष्ण के प्रसिद्ध भजन लिखे हैं गैर हिंदुओं ने 

 

 

 

नई दिल्ली :

जन्माष्टमी के अवसर पर तमाम स्थानों पर वातावरण श्रद्धा-भक्ति से सराबोर है. तमाम श्रद्धालु 30 अगस्त को जन्माष्टमी पर्व मनाने की तैयारी में हैं. भगवान कृष्ण को हिंदू धर्म के लोग भगवान 
मानते हैं लेकिन दूसरे धर्मों में भी इन्हें मानने वालों की अच्छी खासी तादाद है. खासतौर से मुस्लिम धर्म में तो श्रीकृष्ण के कई ऐसे भक्त हुए हैं, जो आज पूरे देश में प्रसिद्ध हैं. भगवान कृष्ण के लिए लिखे उनके पद और भक्ति गीत तमाम स्थानों पर गाए जाते हैं.  तो इस जन्माष्टमी के अवसर पर आइए कुछ ऐसे ही प्रसिद्ध मुस्लिम कृष्ण भक्तों के बारे में आपको बताते हैं. 

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रसखान का नाम हिंदी साहित्य पढ़ने वाले हर व्यक्ति ने सुना होगा. इनका पूरा नाम सैयद इब्राहिम था. इन्होंने भगवान कृष्ण की भक्ति में सराबोर होकर इतनी रसपूर्ण पंक्तियां लिखीं कि इनका नाम रसखान पड़ गया. दावा किया जाता है कि रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी में किया था. इनका जन्म 1548 ईस्वी माना जाता है, हालांकि कुछ विद्वानों में इस पर मतभेद है. इनके गीतों में भक्ति औऱ श्रृंगार की प्रधानता है. यह विट्ठलनाथ के शिष्य और वल्लभ संप्रदाय के सदस्य थे. इसके अलावा कृष्ण भक्तों में एक बड़ा नाम 11वीं सदी के प्रसिद्ध कवि और सूफी संत अमीर खुसरों का है. ऐसा कहा जाता है कि सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के सपने में एक बार भगवान कृष्ण आए. इसके बाद उन्होंने खुसरो से कृष्ण स्तुति लिखने को कहा. तब खुसरो ने कृष्ण भक्ति के पद लिखने शुरू किए. 

सूफी संत सालबेग के नाम तो तमाम कृष्णभक्त भलीभांति जानते हैं. जो लोग जगन्नाथपुरी की रथयात्रा में शामिल हुए हैं, वह इससे अछूते नहीं रह सकते. सालबेग इतने बड़े कृष्ण भक्त थे कि भगवान ने सपने में आकर उन्हें भभूत दी थी, जिससे उनका घाव सही हो गया था. उनके मरने के बाद उनकी मजार बन गई और हर वर्ष वहां भगवान जगन्नाथ का रथ रुकता है. कहते हैं कि एक बार रथयात्रा बिना मजार पर रुके बढ़ने लगी तो भगवान जगन्नाथ के रथ आगे ही नहीं बढ़ा. इसके अलावा 18वीं सदी के लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को बड़ा कृष्ण भक्त माना जाता है. कहते हैं कि 1843 में वाजिद अली ने राधा-कृष्ण पर एक नाटक करवाया था, जिसका निर्देशन भी खुद किया था. इसके अलावा रीतिकाल के कवियों में आलम शेख का भी नाम आता है, जिन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति से परिपूर्ण माधवानल काम कंदला और आलमकेलि, स्याम स्नेही जैसे ग्रंथ रचे. इसके अलावा बंगाल में उमर अली नाम के कवि हुए हैं, जिन्होंने कृष्ण भक्ति  से पूर्ण रचनाएं लिखीं.