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Death penalty for insulting the Quran?
Kya Kehta Hai Islam: पाकिस्तान के एक प्रमुख इस्लामिक स्कॉलर ने मुस्लिम धार्मिक समूहों पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे इस्लामिक कानून को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं. उन्होंने मौत के फतवे जारी करने की आलोचना करते हुए इसे शरिया और देश के कानून के खिलाफ बताया. काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी (CII) के चेयरमैन डॉक्टर रागिब हुसैन नईमी ने 29 अगस्त, 2024 को कहा कि इस्लामिक कानून में कुरान के अपमान पर मौत की सजा का कहीं कोई जिक्र नहीं है, लेकिन धार्मिक तत्व ईशनिंदा के नाम पर भीड़ का सहारा लेकर संदिग्धों को मौत की सजा दे देते हैं.
डॉ. रागिब हुसैन नईमी ने कहा कि धार्मिक समूह इस्लामिक कानून को मनमाने तरीके से पेश कर रहे हैं. "द डॉन" की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने बताया कि ईशनिंदा कानून में चार अलग-अलग सजाओं का प्रावधान है, जिनका संबंध कुरान, पैगंबर के परिवार और उनके सहयोगियों के अपमान से है.
कुरान के अपमान पर सजा का प्रावधान
इस्लामिक कानून के अनुसार, कुरान के अपमान पर क्या सजा दी जाए इस बारे में क्या लिखा गया है उस बारे में डॉ. नईमी ने बताया कि आजीवन कारावास की सजा दी जाती है. वहीं, पैगंबर के परिवार और सहयोगियों के अपमान पर सात साल तक की सजा का प्रावधान है.
किस जुर्म पर दी जाती है मौत की सजा?
इस्लामिक कानून के अनुसार, पैगंबर का अपमान करने पर मौत की सजा दी जाती है. लेकिन धार्मिक समूह चारों अपराधों के लिए एक ही सजा, यानी मौत का प्रावधान मानते हैं. डॉ. नईमी ने स्पष्ट किया कि किसी को भी सिर्फ शक के आधार पर मौत का फतवा जारी करना पूरी तरह असंवैधानिक और गैर-इस्लामिक है.
उन्होंने यह भी बताया कि राजनीतिक लाभ के लिए भावनाओं से खेला जा रहा है. जब उन्होंने पाकिस्तान के चीफ जस्टिस के खिलाफ जारी किए गए मौत के फतवे को हराम बताया था, तब उन्हें 500 से अधिक धमकियां मिली थीं. इन धमकियों में कई बार अभद्र भाषा का प्रयोग भी किया गया. उन्होंने कहा कि किसी की हत्या का फतवा जारी करना न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि शरिया के भी विपरीत है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)