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नवरात्रि के पहले दिन करिए इन देवी मां की पूजा आराधना, पूरी होगी हर मनोकामना

मां शैलपुत्री के नाम का एक अनोखा मतलब होता है. शैल का मतलब होता है पर्वत और पुत्री का मतलब बेटी होता है. जिसका अर्थ है पर्वत की बेटी. तो चलिए आपको इस दिन पर कुछ खास बाते बताते हैं.

Updated on: 07 Oct 2021, 10:43 AM

नई दिल्ली:

आज से शारदीय नवरात्रि शुरू हो चुके हैं. नवरात्रों के नौ दिनों तक अलग-अलग माताओं की पूजा की जाती है. साथ ही लोग नौ दिन तक व्रत भी रखते हैं. नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री के नाम पर मनाया जाता है. पार्वती का एक रूप और सती के पुनर्जन्म से जानी जाने वाली देवी मां शैलपुत्री बैल की सवारी करती है. वहीं मां के एक हाथ में कमल का फूल तो दूसरे में त्रिशूल होता है. मां शैलपुत्री के नाम का एक अनोखा मतलब होता है. शैल का मतलब होता है पर्वत और पुत्री का मतलब बेटी होता है. जिसका अर्थ है पर्वत की बेटी. तो चलिए आपको इस दिन पर कुछ खास बाते बताते हैं.

                                   

चलिए पहले आपको मां शैलपुत्री की छोटी-सी कहानी बता देते हैं. मां शैलपुत्री को मूलधार चक्र या रूट चक्र की देवी कहा जाता है. शैल पुत्री को सती भवानी, पार्वती या हेमवती के नाम से जाना जाता है. वो हिमावत की बेटी थी. जो हिमालय के राजा थे. वो अपने पूर्व जन्म में सती थी. भगवान शिव की उत्साही भक्त होने के कारण, उनकी पत्नी बनने की इच्छा पूरी हो गई थी. उनके पिता दक्ष प्रजापति ने उनकी शादी भगवान शिव से कराने के लिए मंजूरी भी नहीं दी थी. यहां तक कि एक बार शैलपुत्री के पिता ने यज्ञ करवाया था. लेकिन, भगवान शिव और सती को नहीं बुलाया था. वह अकेले ही उस समारोह में गई थी. हालांकि अपने पिता के व्यवहार से नाराज भी थी. इस यज्ञ के दौरान उन्होंने खुद को अग्नि में भस्म भी कर लिया था. जिसके चलते वे अगले जन्म में हिमावत की बेटी बनीं और उनका नाम पार्वती रखा गया. उस जन्म में भी उन्होंने भगवान शिव से विवाह किया. 

                                     

ये तो सब जानते हैं कि शारदीय नवरात्रों की शुरुआत, पहले दिन मां शैलपुत्री के पूजन के साथ होती है. इससे पहले विधि विधान के साथ कलश स्थापना की जाती है. कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहते है. इसके मुहूर्त की बात की जाए तो घट स्थापना का मुहूर्त आज सुबह 6 बजकर 17 मिनट से 7 बजकर 7 मिनट तक था. अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 51 मिनट से दोपहर 12 बजकर 38 मिनट के बीच था. अगर लोग इस शुभ योग में कलश स्थापना नहीं कर पाते. तो वे दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से दोपहर 1 बजकर 42 मिनट तक लाभ का चौघड़िया में और 1 बजकर 42 मिनट से शाम 3 बजकर 9 मिनट तक अमृत के चौघड़िया में कलश-पूजन कर सकते हैं. 

                                         

वहीं अगर कलश स्थापना की सामग्री की बात करें तो उसके लिए बस 7 तरह के अनाज, चौड़े मुंह वाला मिट्टी का एक बर्तन, पवित्र स्थान से लाई गई मिट्टी, कलश, गंगाजल, आम या अशोक के पत्ते, सुपारी इलायची, कपूर, लौंग वगैराह की जरूरत होती है. घटस्थापना पूजा के दौरान, घरों में एक पवित्र स्थान पर एक बर्तन स्थापित किया जाता है. नौ दिनों तक बर्तन में दीपक जलाकर रखा जाता है. जहां एक बर्तन ब्रह्मांड का साइन माना जाता है. वहीं दीपक की जलते रहने वाली जोत, दुर्गा का साइन होती है. 

                                         

अब, चलिए कुछ चीजें बता देते है. जिन्हें इस दिन पर बहुत पवित्र माना जाता है. उनका इस्तेमाल केवल घटस्थापना के दौरान किया जाता है. ज्यादा कुछ नहीं करना होता बस एक बर्तन में मिट्टी और नवदंह के बीज रखे जाते है. उसके बाद उसमें पानी डाला जाता है. एक कलश में गंगा जल और कुछ सिक्के, सुपारी, अक्षत (कच्चे चावल और हल्दी पाउडर) को पानी में रखा जाता है. उसके बाद कलश के चारों ओर आम के पेड़ की पांच पत्तियां रखी जाती है और फिर उसे नारियल से ढक दिया जाता है.