प्रदोष व्रत के बिना अधूरा है श्रावण माह, इस व्रत के कारण मिली थी चंद्रदेव को श्राप से मुक्ति
सावन में प्रदोष व्रत अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. प्रदोष व्रत के कारण ही चन्द्र देव श्राप मुक्त हुए थे और उन्हें भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था.
highlights
- शाम 7 बजकर 9 मिनट से रात 9 बजकर 16 मिनट तक है व्रत का मुहूर्त
- प्रदोष व्रत रखने से होती हैं सभी मनोकामनाएं पूरी
नई दिल्ली :
आज बृहस्पतिवार यानी कि 5 अगस्त के दिन सावन का पहला प्रदोष व्रत है. भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु ये व्रत रखते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार, महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष व्रत भी कहा जाता है. श्रावण मास में प्रदोष व्रत का बहुत महत्व होता है. ग्रंथों और पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रदोष व्रत की शुरुआत चन्द्र देव ने की थी. इसी व्रत के कारण उन्हें एक भयंकर श्राप से मुक्ति भी मिली थी और साथ ही, उन्हें महादेव की असीम कृपा भी प्राप्त हुई थी. धार्मिक मान्यताओं की मानें तो, श्रावण मास में भगवान शिव शंभू की की जाने वाली पूजा बिना प्रदोष व्रत के अपूर्ण है. सावन में निरंतर भोलेनाथ की पूजा के साथ साथ ये व्रत रखने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
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प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत के दिन शिव पुराण और भगवान शिव के मंत्रों का जाप किया जाता है. भक्त पर हमेशा भगवान शिव की कृपा बनी रहती है. साथ ही, सभी दुख और दरिद्रता दूर होती है. प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है. शिवपुराण में लिखित रचना के अनुसार, प्रदोष का व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने ही किया था. इस व्रत को करने के पीछे वो श्राप है जिसके कारण चंद्र देव को क्षय रोग का भोगी बनना पड़ा था. माना जाता है कि, इस श्राप से मुक्त होने के लिए तब चंद्रदेव ने हर माह की त्रयोदशी तिथि पर शिवजी को समर्पित प्रदोष व्रत रखना आरंभ किया था, जिसके शुभ फल से उन्हें क्षय रोग से मुक्ति मिली थी.
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ऐसे करें पूजन
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें.
- इसके बाद मंदिर या घर के पूजागृह में जल और पुष्प लेकर प्रदोष व्रत व पूजन का संकल्प लें.
- भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना करें.
- दिनभर व्रत रखते हुए मन ही मन भगवान शिव के मंत्र का जाप करते रहें.
- शाम को प्रदोष काल मुहूर्त में पुन: स्नान करें.
- स्नान के बाद पूजा स्थल पर भगवान शिव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें.
- भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करें.
- फिर उनको धूप, अक्षत, पुष्प, धतूरा, फल, चंदन, गाय का दूध, भांग, बेलपत्र आदि अर्पित करें.
- इसके बाद भगवान को भोग लगाएं.
- इस दौरान ओम नम: शिवाय: मंत्र का निरंतर जाप करते रहें.
- शिव चालीसा का पाठ भी करें. पाठ के बाद भगवान शिव की आरती करें.
- रात्रि जागरण के बाद अगले दिन सुबह स्नान आदि करके भगवान शिव की पूजा करें.
- फिर ब्राह्मण को दान देने के बाद पारण कर व्रत को पूरा करें.
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पूजा का शुभ मुहूर्त
शाम 7 बजकर 9 मिनट से रात 9 बजकर 16 मिनट तक पूजा का मुहूर्त रहेगा.
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