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शत्रुओं का करना चाहते हैं अगर सर्वनाश तो इस नवरात्रि करें यह जाप

कुंजिका स्रोत में अनेक बीजों अर्थात बीज मंत्रों का समावेश है, जो अत्यंत ही शक्तिशाली हैं. देवी की कृपा से आपके शत्रुओं का नाश होगा और आपको समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होगी.

नई दिल्‍ली:

अगर आपके शत्रु बढ़ गए हैं या किसी शत्रु से अत्यंत ही भयभीत हैं तो उसे मुक्ति पाने के लिए इस नवरात्रि (Navratri 2019)सिर्फ एक मंत्र का जाप करें और आप जीवन में आने वाली सभी समस्याओं से मुक्ति पा लें. हम बात कर रहे हैं सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha kunjika stotram) की. कुंजिका स्रोत में अनेक बीजों अर्थात बीज मंत्रों का समावेश है, जो अत्यंत ही शक्तिशाली हैं. देवी की कृपा से आपके शत्रुओं का नाश होगा और आपको समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होगी.

कुंजिका स्तोत्र (Siddha kunjika stotram) के लाभ

कुंजिका स्त्रोत का पाठ करना एक पूरी दुर्गा सप्तशती के पाठ करने के बराबर माना जाता है. क्योंकि स्वयं भगवान शिव द्वारा माता पार्वती को रुद्रयामल के गौरी तंत्र के अंतर्गत बताया गया है. इस स्त्रोत के जो मूल मंत्र हैं, वे सभी नवाक्षरी मंत्र अर्थात ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे के साथ ही आरंभ होते हैं.

ऐसे करें सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha kunjika stotram) का पाठ

नवरात्रि (Navratri 2019)और गुप्त नवरात्रि (Navratri 2019)के दौरान संधि काल में सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha kunjika stotram) का नियमित पाठ करना चाहिए. संधि काल वह समय होता है जब एक तिथि समाप्त हो रही हो और दूसरी तिथि आने वाली हो. विशेष रूप से जब अष्टमी तिथि और नवमी तिथि की संधि हो तो अष्टमी तिथि के समाप्त होने से 24 मिनट पहले और नवमी तिथि के शुरू होने के 24 मिनट बाद तक का जो कुल 48 मिनट का समय होता है उस दौरान की माता ने देवी चामुंडा का रूप धारण किया था और चंद तथा मुंड नाम के राक्षसों को मृत्यु के घाट उतार दिया था.

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यही वजह है कि इस दौरान कुंजिका स्तोत्र (Siddha kunjika stotram) का पाठ करना सर्वोत्तम फलदायी माना जाता है. ध्‍यान रहे, चाहें आप कितने भी थक जाएं लेकिन आपको पाठ करना बंद नहीं करना चाहिए और पूरे 48 मिनट तक लगातार सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha kunjika stotram) का पाठ करना चाहिए.

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ब्रह्म मुहूर्त के दौरान भी इसका पाठ करना सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता है. आप प्रातः 4:25 बजे से लेकर 5:13 बजे के बीच इस पाठ को कर सकते हैं. यदि आप लाल आसन पर बैठकर और लाल रंग के कपड़े पहन कर यह स्रोत पढ़ते हैं तो आपको इसका और भी अधिक फल प्राप्त होता है क्योंकि लाल रंग देवी दुर्गा को अत्यंत प्रिय है.आपके पास संपूर्ण दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ करने का समय ना हो तो केवल सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha kunjika stotram) का पाठ करके भी आप पूरी दुर्गा सप्तशती के पाठ का फल प्राप्त कर सकते हैं.

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha kunjika stotram) इस प्रकार है

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्र (Siddha kunjika stotram) मुत्तमम्.

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥

न कवचं नार्गलास्तोत्र (Siddha kunjika stotram) कीलकं न रहस्यकम्.

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥

कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्.

अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥

गोपनीयं प्रयत्‍‌नेन स्वयोनिरिव पार्वति.

मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्.

पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्र मुत्तमम्॥४॥

॥अथ मन्त्रः॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥

॥इति मन्त्रः॥

नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि.

नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे.

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते.

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्‍‌नी वां वीं वूं वागधीश्‍वरी.

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी.

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥

इदं तु कुञ्जिकास्तोत्र मन्त्रजागर्तिहेतवे.

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥

यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्.

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्र सम्पूर्णम्.

॥ॐ तत्सत्॥