Mata Parvati Ki Pariksha: मगरमच्छ ने कैसे ली माता पार्वती के कठोर तप की परीक्षा, जानें ये पौराणिक कथा
Mythological Story: माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह साधारण विवाह नहीं था. शिव जी को पति स्वरुप में पाने के लिए उन्होंने कई जन्म कठोर तप किया.
नई दिल्ली:
Mata Parvati Ki Pariksha: माता पार्वती ने कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव को पति स्वरूप में पाया था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनकी कठोर तपस्या के बावजूद भी भगवान शिव ने स्वयं उनकी कड़ी परीक्षा ली. माता पार्वती और मगरमच्छ की पौराणिक कथा काफी प्रचलित है, जिसमें शिव जी उनकी परीक्षा ले रहे हैं. भगवान शिव को प्रसन्न करना माता पार्वती के लिए बेहद मुश्किल रहा. लेकिन उनके संकल्प और दृढ़ निश्चय ने उन्हें भगवान शिव को साक्षात पति रुप में दिला दिया. भगवान शिव ने लाख कोशिश की सप्तऋषियों को भी माता को समझाने की लिए भेजा की वो भगवान शिव से विवाह के बारे में ना सोचें लेकिन माता पार्वती अपने संकल्प पर अडिग रही और एक दिन भगवान शिव ने भी माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और पूछा की आप क्या वरदान मांगना चाहती हैं.
भगवान शिव को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद देखकर अंतर्ध्यान में चले गए. अब माता पार्वती के पास वरदान था जिससे वो बेहद खुश थी. 108 जन्मों की कठोर तपस्या के बाद उन्हें ये वरदान मिला था. अचानक ही कुछ देर में एक बच्चे के रोने और चिल्लाने की आवाज़ें आने लगी. लड़का मदद की गुहार लगा रहा था. उसकी आवाज़ सुनते ही माता पार्वती नदी के किनारे जा पहुंची और देखा कि उस लड़के को एक मगरमच्छ ने जकड़ रखा है.
लड़के ने माता पार्वती से कहा कि आप मुझे बचा लें. मेरा कोई नहीं है, ना मां है ना पिता हैं ना ही कोई मित्र है अब आप ही मेरी रक्षा कर सकती हैं. इस पर माता पार्वती ने मगरमच्छ से आग्रह किया कि हे ग्राह आप इस लड़के को छोड़ दें.
मगरमच्छ ने माता पार्वती से कहा कि जो भी उन्हें दिन के छठे प्रहर में मिलता है वो उसका भोजन करते हैं और ये उनका नियम है. पार्वती माता के कई बार समझाने पर भी जब मगरमच्छ नहीं माना तो माता पार्वती ने मगरमच्छ से पूछा कि आप इसे छोड़ दें और इसके बदले में आपको क्या चाहिए आप वो बताएं मैं आपको वो दूंगी. मगरमच्छ ने लड़के को छोड़ने के बदले में पार्वती जी के तप से प्राप्त वरदान का पुण्य फल मांग लिया.
ये पुण्य फल माता पार्वती को 108 वर्ष संघर्ष के बाद प्राप्त हुआ था. लेकिन पार्वती जी फिर भी तैयार हो गईं. मगरमच्छ ने बालक को छोड़ दिया और वरदान से तेजस्वी बन गया.
माता पार्वती ने उस लड़के को तो बचा लिया लेकिन एक बार फिर वो उस घोर तपस्या में बैठ गईं. भगवान शिव फिर प्रकट हुए और माता से पूछा कि आपको जो चाहिए था मैने आपको वो दे दिया तो अब आप दोबारा ये तप क्यों कर रही हैं. मैने आपको पहले ही मनमांगा वरदान दे दिया है.
इस पर पार्वती जी ने शिव जी को बताया कि उन्होंने एक बालक की रक्षा के लिए वो वरदान एक मगरमच्छ को दे दिया है. इस पर शिवजी प्रसन्न होकर बोले मगरमच्छ और लड़के दोनों के स्वरूप में मैं ही था. तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए ही मैंने ये लीला रचाई थी. मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था कि तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में अपने सुख-दुख का अनुभव करता है या नहीं.
भगवान शिव ने कहा अनेको रूप में दिखने वाला मैं ही एक सत्य हूं. अनेक शरीरों में नजर आने वाला मैं निर्विकार हूं. इस तरह पार्वती जी शिव जी की परीक्षा में उत्तीर्ण हुई और उनकी अर्धांगिनी बनी.
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