Raksha Bandhan Story: कैसे शुरु हुआ था रक्षाबंधन, जानें भगवान कृष्ण और द्रोपदी की कहानी

Raksha Bandhan Story: अगर आप हर साल राखी का ये पावन त्योहार मनाते हैं. अपने भाई की कलाई पर राखी बांधते हैं तो आपके लिए ये कहानी जानना जरुरी है कि ये कब और कैसे शुरु हुआ.

Raksha Bandhan Story: अगर आप हर साल राखी का ये पावन त्योहार मनाते हैं. अपने भाई की कलाई पर राखी बांधते हैं तो आपके लिए ये कहानी जानना जरुरी है कि ये कब और कैसे शुरु हुआ.

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Inna Khosla
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How Raksha bandhan started know the story of Lord Krishna and Draupadi

Raksha Bandhan Story( Photo Credit : Social Media)

Raksha Bandhan Story: पौराणिक काल से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा रहा है. इस दिन से जुड़ी हालांकि कई कथा कहानियां हैं लेकिन सबसे प्रचलिक कहानी है भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी की. कैसे भगवान कृष्ण द्रौपदी के भाई बनें, उन्होंने द्रौपदी को ऐसा क्या वचन दिया कि तब से अब तक हर भाई अपनी बहन को इस दिन तोहफे के साथ वचन भी देता है. बहनें भाई कलाई पर राखी क्यों बांधती हैं इस सवाल का जवाब भी आपको इसी कहानी में मिलेगा. तो आइए जानते हैं कृष्ण और द्रौपदी की रक्षाबंधन से जुड़ी ये रोचक कहानी

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महाभारत का ग्रंथ जिन्होंने पढ़ा है उन्हें ये कहानी जरुर पता होगी. लेकिन आज हम आपको बताते हैं उसमें क्या लिखा है. महाभारत के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने जब शिशुपाल का वध अपने सुदर्शन चक्र से किया तो उंगली पर वापस सुदर्शन चक्र बैठने से पहले उनकी कलाई उससे कट गयी. जिससे उनका हाथ खून में लतपट हो गया. द्रौपदी ने जैसे ही ये देखा तब उन्होंने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान श्रीकृष्ण की कलाई पर इसे बांध दिया. तब भगवान ने द्रौपदी को हमेशा उसकी रक्षा करने का वचन दिया 

भगवान श्रीकृष्ण ने अपना वचन भी निभाया. कथाओं के अनुसार जब पांडव जुए में कौरवों के हाथों जब द्रौपदी को हार गए तो वो भरी सभा में उनका चीर हरण करने लगे. तब द्रौपदी ने दोनों हाथ जोड़कर भगवान कृष्ण को याद किया. अपनी बहन के सम्मान की रक्षा करने के लिए कृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने अपना वचन निभाया. कौरव उनकी साड़ी खींचते रहे लेकिन द्रौपदी का तन ढका ही रहा. तब से इस परंपरा को हर साल सावन के महीने में आने वाली पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. 

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तो आप अगर कृष्ण भक्त हैं तो उनकी ये कहानी जानने के बाद आप और भी उन्हें करीब से समझने लगेंगे. भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का अंत नहीं हैं. जब-जब उनके चाहने वालों ने उन्हें सच्चे दिल से याद किया है तब-तब वो उनके दुख-दर्द दूर करने स्वयं आए हैं. जन्माष्टमी भी जल्द आने वाली है ऐसे में आप अब रक्षाबंधन के बाद उसकी तैयारियों में लग जाएं. 

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