रंगों के त्योहार होली से होलिका दहन किया जाता है। शास्त्रों में होलिका दहन की रात को सिद्धि की रात कहा गया है क्योंकि इस रात को महाशिवरात्रि, दीपावली, नवरात्रि की तरह महारात्रि माना गया है।
होलिका दहन से जुड़ी हिरणकश्यप के अलावा मुगल काल, शिव-पार्वती और राधा-कृष्ण की भी कहानियां प्रचलित हैं। होलिका दहन की पवित्र अग्नि जलाकर अच्छी फसल के लिए भगवान से प्रार्थना की जाती है।
मुहूर्त
मान्यता के अनुसार इस साल होलिका दहन का समय 2 घंटे 31 मिनट रहेगा। जो शाम 6 बजकर 18 मिनट से रात 8 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। लेकिन भद्र काल शाम 6:58 होने की वजह से होलिका दहन का शुभ समय 1 घंटा 49 मिनट तक ही रहेगा।
होलिका से जुड़ी प्रह्लाद की कहानी
होलिका दहन को हिरण्यकश्यप के वध के साथ जोड़कर देखा जाता है। वही होलिका दहन में उपलों के साथ छोटे उपले धागे मे पिरोकर जलाया जाता है, इसके पीछे धार्मिक मान्यता है कि हिरण्यकश्यप का वध भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार में किया था।
उपले को गोल बनाकर सुदर्शन का रूप दिया जाता है, साथ ही धागा प्रह्लाद की रक्षा के बांधा जाता है, छोटे उपलों की माला जलाई जाती है, होलिका दहन का पर्व मनाया जाएगा।
अच्छी फसल की प्रार्थना
इस पर्व में एरंड या गूलर की टहनी को जमीन में गाड़कर उस पर लकड़ियां सूखे उपले, चारा डालकर इसे जलाया जाता है। इस दिन सभी लोग होली दहन के दौरान चारों ओर एकत्रित होकर इसकी परिक्रमा करते हैं। होली में जौ की बालियां भूनकर खाने की परंपरा है। अच्छी फसल के लिए भगवान से प्रार्थना करते है।
वातारण के लिए उत्तम
होली के अलाव की राख में औषधि गुण पाए जाते हैं, इसलिए लोग होली के कंडे घर ले जाकर उसी से घर में गोबर की घुघली जलाते हैं। वही होलिका दहन में छोटे उपले जलाने के पीछे पर्यावरण सरक्षण और प्राणवायु बचाने का भी मकसद है, उपलों का धुंआ प्रदूषण नही फैलाता है, हल्का होने के कारण प्राणवायु यानी ऑक्सीजन को भी बचाता है,साथ ही होलिका दहन में लकड़ी के उपयोग से पर्यवारण को नुकसान होता है उससे बचा जाता है।
होलिका दहन के साथ ही देश की तमाम जगहों पर होली की शुरुआत हो जाएगी।
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Source : News Nation Bureau