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Holi 2020: जानिए इस साल कब मनाई जाएगी होली और क्या है शुभ मुहूर्त

वैसे तो होली का त्योहार इतना लोकप्रिय है कि विदेशों में भी इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन भारत में यह जिस अंदाज में मनाया जाता है वो देखनवे लायक है

Updated on: 05 Mar 2020, 12:19 PM

नई दिल्ली:

होली (Holi 2020) यानी रंगों का त्योहार हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इस त्योहार को देशभर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाते हैं और खूब मस्ती करते हैं. ये उन चुनिंदा त्योहारों में से एक हैं जिसमें लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक दूसरे को रंग लगाते हैं. होली तो वैसे देशभर में मनाई जाती है लेकिन मथुरा की होली सबसे खास होती है जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग मथुरा पहुंचते हैं. ये होली एक हफ्ते पहले से शुरू हो जाती है. इसके अलावा बरसाना की लठमार होली भी काफी लोकप्रिय है. इस साल होली 10 मार्च यानी मंगलवार को पड़ रही है. इससे एक दिन पहले होलिका दहन का त्योहार मनाया जाएगा. आइए जानते हैं क्या है इसका शुभ मुहूर्त

होली का शुभ मुहूर्त (Holi Shubh Muhurat)

इस साल होलिका दहन 9 मार्च को मनाई जाएगी.

शुभ मुहूर्त मुहूर्त- 18:22 से 20:49

भद्रा पूंछ- 09:37 से 10:38

भद्रा मुख- 10:38 से 12:19

रंगवाली होली- 10 मार्च

पूर्णिमा तिथि आरंभ- 03:03 (9 मार्च)

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ऐसे मनाई जाती है होली

वैसे तो होली का त्योहार इतना लोकप्रिय है कि विदेशों में भी इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन भारत में यह जिस अंदाज में मनाया जाता है वो देखनवे लायक है. होली के दिन सुबह घर के लोग अपने बड़ों के पैरों पर गुलाल लगाते हुए उनका आशीर्वाद लेते हैं और होली की शुभकामनाएं देते है वहीं घर के बड़े भी बच्चों को गुलाल का टीका लगाते हैं. होली के दिन घरों में कई तरह के पकवान भी बनाए जाते हैं जिनमें गुजिया सबसे महत्वपूर्ण होती है. इसके बोद लोग घरों से बाहर निकलकर दिनभर होली खेलते हैं और एक दूसरे को रंग लगाते हैं. इसके अलावा जमकर नाच गाना भी करते हैं.

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कथा

वैसे तो होली से जुड़ी कई कथा हैं लेकिन इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की. माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक असुर था. अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था. उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी. हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था. प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा. हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती. हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे. आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया.  ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है. प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है. वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका जलती है.

प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है. कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था. इसी खुशी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था.