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बरसाने की लठमार होली (फाइल फोटो)
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बरसाने की लठमार होली की शुरुआत शुक्ल पक्ष की नवमी को होती है.
बरसाने की लठमार होली (फाइल फोटो)
आज बरसाना में लठमार होली खेली जा रही है, लठमार होली विश्व में प्रसिद्ध है दुनियाभर से लोग आज बरसाने पहुंचते हैं. सबसे पहले तैयारी शुरू होती है भांग की कूट और पिसाई के साथ जहां नंदगांव वासी रसिया गीत गाते हुए आनंदमय मौहौल में नज़र आते हैं. 'लठमार' का अनुवाद 'लाठी से मारना' है. यह होली उत्सव का एक रूप है. लठमार होली डंडों और ढाल से खेली जाती है, जिसमें महिलाएं पुरुषों को डंडे से मारती हैं, वहीं पुरुष स्त्रियों के इस लठ के वार से बचने का प्रयास करते हैं. बरसाने की लठमार होली की शुरुआत शुक्ल पक्ष की नवमी को होती है.
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क्यों मनाते हैं लठमार होली (Lathmar Holi)
यह परंपरा तब से है जब श्री कृष्ण होली के समय बरसाने आए थे. तब कृष्ण राधा और उनकी सहेलियों को छेड़ने लगे. उसके बाद राधा अपनी सखियों के साथ लाठी लेकर कृष्ण के पीछे दोड़ने लगीं. तब से बरसाने में लठमार होली शुरू हो गई इसके बाद सब रंगों के साथ होली मनाते हैं. लठमार होली की कई किंवदंतियां हैं और इनमें से ये दो बहुत प्रसिद्ध हैं. दूसरी ये कि एक बार राधा गुस्सा हो गईं कि कृष्ण और उनके साथी ने स्नान घाटों से कपड़े चुरा ले गए.
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इसलिए, राधा अपने साथियों के साथ नंदगांव गई, ताकि उन्हें एक सबक सिखाया जाए. इस दिन भगवान कृष्ण के जीवन के पलों का स्मरण रखने के लिए, पुरुष नंदगांव से बरसाने जाते हैं जहां महिलाएं उन्हें लाठी से मारतीं हैं. यह दिन लठमार होली के रूप में मनाया जाता है.
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Source : News Nation Bureau