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Hindu Religion: मां क्यों नहीं देखती बेटे के फेरे? जानिए मुगलकाल से चली आ रही परंपरा

Hindu Religion: किसी भी मां के लिए अपने बेटे की शादी देखना बेहद खास होता है. लेकिन कुछ पुरानी परंपराओं के चलते मां अपने बेटे की शादी के फेरे नहीं देखती, ऐसा क्यों होता है और कैसे इस परंपरा की शुरुआत हुई आइए जानते हैं.

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Inna Khosla
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Why Mothers Dont Attend Sons Weddings

Why Mothers Dont Attend Sons Weddings( Photo Credit : News Nation)

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Hindu Religion: हिंदू धर्म में चार महत्वपूर्ण संस्कार होते हैं जिसमें से एक शादी है. शादी हिंदू धर्म के सबसे पवित्र संस्कारों में से एक है. हिंदू धर्म में शादियों का बेहद खास महत्त्व होता है. शादी के दौरान कई रिवाज़ निभाए जाते हैं जैसे कन्यादान, सात फेरी और गृह प्रवेश आदि. इन सभी रस्मों का बेहद खास महत्त्व होता है. शादियां केवल दो लोगों का ही नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है. इसलिए सात जन्म के इस खास रिश्ते से कई प्रथाएं जुड़ी होती हैं. शादी में घर के सभी सदस्य शामिल होते हैं लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि बेटे की शादी में मां शामिल नहीं होती है अर्थात मां अपने बेटे के फेरे नहीं देखती. क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है, ऐसा करने के पीछे क्या कारण है, क्यों एक मां ही अपने बेटे की शादी में नहीं जाती है. एक मां के लिए अपने बेटे की शादी बेहद खास होती है लेकिन फिर भी वह इस खास दिन का हिस्सा नहीं बन पाती है. तो आइए जानते हैं इसका क्या कारण है? 

बेटे की शादी के फेरे मां क्यों नहीं देखती ? 

यह परंपरा सदियों से नहीं बल्कि मुगल शासन के दौरान शुरू हुई थी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल से ही कई क्षेत्रों में यह परंपरा चली आ रही है कि मां अपने बेटे की शादी में शामिल नहीं होती. कहते हैं कि यह परंपरा मुगल से चली आ रही है क्योंकि इससे पहले ऐसी कोई परंपरा नहीं थी. पहले औरतें अपने बेटे की शादी में शामिल होती थी. मुगलकाल में महिलाएं अपने बेटे की बारात में जाती थी, लेकिन पीछे से घर में चोरी डकैती हो जाती थी. ऐसे में घर की देखभाल और रखरखाव के कारण महिलाओं को बारात में ले जाना बंद कर दिया गया. महिलाएं अपने बेटे की शादी से जुड़े सभी रिवाजों में शामिल होती थी, लेकिन शादी वाले दिन बारात में नहीं जाती थी और इस कारण बेटे के फेरे नहीं देख पाती थी. तभी से यह परंपरा चली आ रही है और आज भी कई जगहों पर इसका पालन किया जाता है. बता दें कि यह परंपरा बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान में कई जगह देखने को मिलती है. 

बेटे की शादी में मां का शामिल न होने का कारण घर की देखभाल करना होता था क्योंकि घर के सभी लोग शादी में चले जाते थे. पीछे से घर की देखभाल और मेहमानों की जरूरतों का ध्यान रखने के लिए मां घर पर ही रुक जाती थी. शादी संपन्न होने के बाद जब दुल्हन सुबह अपने ससुराल पहुंचती है तो गृह प्रवेश किया जाता है. इस दौरान दुल्हन की पूजा की जाती है और कलश में द्वार पर चावल रखे जाते हैं. इस कलश को दुल्हन सीधे पैर से गिराती है. इसके बाद, दुल्हनों के हाथ पर हल्दी लगायी जाती है जिसके बाद दीवार पर हाथ के थापे लगाए जाते हैं. इसी रस्म को ग्रह प्रवेश कहा जाता है. इसी रस्म की तैयारी करने के लिए मां घर पर ही रुक जाती है. 

हिंदू धर्म में पहले दिन के समय में शादियां  होती थी. उदाहरण के लिए माता सीता और श्रीराम जी का विवाह दिन के दौरान ही हुआ था, लेकिन मुगलों के आने के बाद सिर्फ रात में शादी करने का चलन शुरू हुआ. भारत में उत्तराखंड, बिहार और राजस्थान साइड की महिलाएं अपनी बेटे के फेरे नहीं देखती है. हालांकि समय के साथ साथ लोगों की सोच में बदलाव आया है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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