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Hajj 2020: अब इस तारीख तक कर सकते हैं आवेदन, जानें हज यात्रा से जुड़ी हर बात

केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने गुरुवार को बताया कि हज-2021 के लिए आवेदन की अंतिम तिथि को आज 10 दिसंबर से बढ़ा कर 10 जनवरी तक कर दिया गया है और साथ ही हज यात्रियों के अनुमानित खर्च में भी कमी की गई है.

Updated on: 11 Dec 2020, 01:46 PM

नई दिल्ली:

केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने गुरुवार को बताया कि हज-2021 के लिए आवेदन की अंतिम तिथि को आज 10 दिसंबर से बढ़ा कर 10 जनवरी तक कर दिया गया है और साथ ही हज यात्रियों के अनुमानित खर्च में भी कमी की गई है. मंत्री के कार्यालय की ओर से जारी बयान के अनुसार, प्रति तीर्थयात्री अनुमानित खर्च को रवानगी केन्द्रों के अनुसार कम कर दिया गया है. नकवी ने यह भी कहा कि हज जून-जुलाई 2021 में होना निर्धारित है. कोविड-19 महामारी के मद्देनजर सऊदी अरब और भारत सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार पूरी प्रक्रिया चल रही है.

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बता दें कि हज यात्रा दुनियाभर के मुसलमानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसे लगभग सभी मुसलमान अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार जरूर करना चाहते हैं. धार्मिक रूप से सभी मुसलमानों के लिए यह अनिवार्य है कि आर्थिक स्थिति सही होने की स्थिति में उन्हें हज करना होगा.

वहीं भारत से औसतन हर साल लगभग दो लाख लोग हज के लिए सऊदी अरब जाते हैं. दुनिया के सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया ने अपने नागरिकों के हज यात्रा पर जाने पर रोक लगा दी है. इंडोनेशिया से हर साल करीब 2,20,000 लोग हज के लिए सऊदी अरब जाते हैं.

हज का महत्व-

कुरान इस्लाम के पांच स्तंभ का उल्लेख करता है शहादा सलाद जकात हंस और हज मक्का और मदीना को इस्लाम में बहुत पवित्र माना जाता है. यह इस्लाम का जन्म स्थान भी कहा जाता है. मक्का एक ऐसा शहर है जहां पहले अल्लाह के लिए नमाज अदा करने के लिए स्थान बनाया गया था.  हज इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने यानी जिलहिज्जा की आठवीं से 12वीं तारीख तक किया जाता है. 

हज यात्रियों को सफा और मरवा नामक दो पहाड़ियों के बीच सात चक्कर लगाने होते हैं. सफा और मरवा के बीच पैगम्बर इब्राहिम की पत्नी ने अपने बेटे इस्माइल के लिए पानी तलाश किया था.  इसके बाद मक्का से करीब 5 किलोमीटर दूर मिना में सारे हाजी इकट्ठा होते हैं और शाम तक नमाज पढ़ते हैं. अगले दिन अरफात नामी जगह पहुंच कर मैदान में दुआ का खास  महत्व होता है.

अरफात से मिना लौटने के बाद हज यात्रियों को  शैतान के बने प्रतीक तीन खंभों पर कंकरियां मारनी पड़ती हैं. ये रस्म इस बात का प्रतीक होता है कि मुसलमान अल्लाह के आदेश के आगे शैतान को बाधा नहीं बनने देंगे.

पहननी होती है खास पोशाक-

हज यात्रा हर मुस्लिम के लिए खास होता है. यहीं वजह है कि हर मुसलमान अपने जीवन में एक बार हज यात्रा पर जरूर जाना चाहता है.  हज पर जाने के लिए खास नियमों का पालन करना पड़ता है. इसमें हज यात्रियों के लिए खास पोशाक पहनना भी शामिल है. ये पोशाक चादर की तरह होती है, जिसे शरीरे के चारों तरफ लपेट लिया जाता है. एहराम बांधने के साथ ही दाढ़ी, बाल काटना मना हो जाता है. मुसलमानों को खुशबू लगाने से भी रोका जाता है. इसी कारण एहराम बांधने से पहले ही शरीर की साफ-सफाई कर लेने की सलाह दी जाती है.

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कुर्बानी का महत्व

हज यात्रा के दौरान मुस्लिम श्रद्धालुओं को कुर्बानी भी देनी पड़ती है. कुर्बानी के लिए आम तौर पर भेड़, ऊंट या बकरे की व्यवस्था की जाती है.  मान्यताओं के मुताबिक,  हजारों साल पहले  पैगंबर इब्राहिम अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने को तैयार हुए थे. यही वजह है कि इस रिवाज का खास महत्व है. कुर्बानी के तीन हिस्से में एक हिस्सा मुसलमान अपने लिए रख सकता है जबकि दो हिस्सों में दोस्तों और गरीबों को देना पड़ता है. 

करवाना पड़ता है मुंडन

अल्लाह की राह में कुर्बानी देने के बाद हज पर गए पुरुष श्रद्धालुओं को बाल मुंडवाने होते हैं. वहीं महिलाओं को अपने थोड़े से बाल कटवाने होते हैं. मुंडन की रस्म के बिना हज पूरा नहीं माना जाता है. बाल मुंडवाने के बाद तमाम हाजी काबा में इकट्ठा होकर इमारत की परिक्रमा करते हैं. इसके बाद ही मुसलमानों की हज यात्रा पूर्ण हो जाती हैं.