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Govardhan Puja 2020: आज है गोवर्धन पूजा, जानें पूजा विधि, मुहूर्त और कथा

दिवाली के दूसरे दिन हर घर में गोवर्धन पूजा की जाती है. इस त्योहार का हिंदू धर्म में खासा महत्व है क्योंकि कृष्ण भगवान ने आज ही के दिन गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली पर उठाकर इंद्रदेव के घमंड को तोड़ा था.

Updated on: 15 Nov 2020, 09:26 AM

नई दिल्ली:

दिवाली के दूसरे दिन हर घर में गोवर्धन पूजा की जाती है. इस त्योहार का हिंदू धर्म में खासा महत्व है क्योंकि कृष्ण भगवान ने आज ही के दिन गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली पर उठाकर इंद्रदेव के घमंड को तोड़ा था. गोवर्धन पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है.  गोवर्धन पूजा को कई जगह पर अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है.  आज के दिन गाय के गोबर से गोबर्धन बनाया जाता है. इसके अलावा गाय की भी पूजा की जाती है.

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गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त-

  • प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 15 नवंबर 2020 को सुबह 10 बजकर 36 मिनट से
  • प्रतिपदा तिथि समाप्‍त- 16 नवंबर 2020 को सुबह 07 बजकर 06 मिनट तक
  • गोवर्द्धन पूजा सांयकाल मुहूर्त- 15 नवंबर 2020 को दोपहर 03 बजकर 19 मिनट से शाम 05 बजकर 27 मिनट तक 

गोवर्धन पूजा विधि-

गोवर्धन पूजा करने के लिए आप सबसे पहले घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन का चित्र बनाएं. इसके बाद रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करें. मान्यता है कि विधि विधान से गोवर्धन पूजा करने से भगवान श्री कृष्ण की कृपा हमेशा बनी रहती है.

गोवर्धन पूजा कथा

देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था. इन्द्र का अभिमान चूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची. प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा कि सभी बृजवासी अच्छे पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे हैं.  श्री कृष्ण ने जब यशोदा मां से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि ये तैयारियां देवराज इन्द्र की पूजा के लिए हो रही हैं क्योंकि वो वर्षा करते हैं तभी अन्न की पैदावार होती है और उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है. इस पर श्रीकृष्ण ने सब को समझाया कि फिर इस लिहाज से तो सबको गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं. और देवराज इंद्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते और पूजा न करने से क्रोधित भी हो जाते हैं. इसलिए हमें ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए. लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्धन पर्वत की पूजा की. देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी. प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है. तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया. इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए जिसके बाद उन्होंने वर्षा और तेज कर दी. इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें.

इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता. आखिरकार वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया. ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं।.ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा. आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें. इसके बाद देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया. इस घटना के बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी. बृजवासी इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा करते हैं. गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है और उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है. गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है.