Geeta's Most Effective Shlokas For Success and Money: गीता के इन 4 श्लोकों का पालन पहुंचा देगा आपको सफलता के साथ धन संपत्ति के शिखर तक
Geeta Gyan: गीता के 700 श्लोकों में से ये 4 श्लोक बहुत ही चमत्कारी हैं. ये श्लोक व्यक्ति का मार्गदर्शन करते हैं. साथ ही, अगर इन श्लोकों को जीवन में अपना लिया जाए, तो व्यक्ति को तरक्की करने और अपार धन का स्वामी बनने से कोई नहीं रोक सकता.
नई दिल्ली :
Geeta's Most Effective Shlokas For Success and Money: हिंदूओं का धार्मिक ग्रंथ भागवत गीता में 700 श्लोक और 18 अध्याय हैं. गीता एक ऐसा महापुराण कहा जाता है, जो व्यक्ति को उसके कर्मों के महत्व के बारे में बताता है. महर्षि वेदव्यास द्वारा श्रीमद्भहवत गीता में उन्हीं उपदेशों के बारे में लिखा है, जिन्हें कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने दिए थे. ज्योतिषीयों का कहना है कि भगवत गीता की कुछ बातों को समझने और उनका पालन करने मात्र से ही व्यक्ति का जीवन सफल हो जाता है. बता दें कि गीता में कर्म, ज्ञानयोग, राज और भक्तियोग का बहुत ही सुंदर उल्लेख किया गया है. जीवन को सुखी और सरल बनाने का राज गीता के इन 4 श्लोकों में छिपा है. इनके अर्थ को समझ कर अगर इनका अनुसरण कर लिया जाए, तो व्यक्ति अपने जीवन को सुखमय बना सकता है.
गीता के इन श्लोकों का करें अनुसरण
1. यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
गीता में वर्णित इस श्लोक का अर्थ है कि एक उत्तम पुरुष श्रेष्ठ कार्य करता है, उसकी तरह ही अन्य लोग आचरण करते हैं. कहते हैं कि श्रेष्ठ पुरुष के कार्यों को देखकर सम्पूर्ण मानव समाज भी उन्हीं की तरह बातों का पालन करने लगते हैं.
2. चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी।
तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः।।
गीता के इस श्लोक का अर्थ है कि व्यक्ति के जीवन में दुख का जन्म चिंता से होता है. इ्गर आप किसी चीज की चिंता करते हैं, तो आप खुद को दुख दे रहे हैं. चिंता का कोई दूसर कारण नहीं है. इसलिए जीवन में चिंता को छोड़ देने मात्र से ही व्यक्ति सुखी और शांत रहता है. साथ ही अवगुणों से मुक्त हो जाता है.
3. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।
इसका तात्पर्य है कि मनुष्या का केवल अपने कर्मों पर ही अधिकार होता है. कर्म के फल के बारे में आप नहीं जानते और न ही जान सकते. इसलिए श्री कृष्ण ने कहा कि कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो. वहीं, अकर्मण्य नहीं बनें.
4. यत्साङ्ख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्यौगैरपि गम्यते।
एकं साङ्ख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति।।
इस श्लोक का तात्पर्य है कि सांख्ययोगियों द्वारा जिस ज्ञान की प्राप्ति की जाती है, वही ज्ञान कर्मयोगियों के द्वारा भी प्राप्त किया जाता है. श्री कृष्ण के अनुसार जो व्यक्ति सांख्य और कर्म योग को एक समान देखता है, वही यथार्थ है.
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