Eid Milad un nabi 2022: मुसलमान क्यों मनाते हैं ईद मिलाद-उन-नबी, क्या है महत्व और क्या करते हैं इस दिन
इस्लामी संवत का तीसरा महीना यानी रबी-उल-अव्वल का महीना मुस्लिम समाज के लिए विशेष महत्व का महीना है, क्योंकि इसी महीने में इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर (शांति उस पर हो) का जन्म हुआ था.
नई दिल्ली:
Eid Milad-un-nabi 2022: इस्लामी संवत का तीसरा महीना यानी रबी-उल-अव्वल (Rabi-ul-Awwal) का महीना मुस्लिम समाज के लिए विशेष महत्व का महीना है, क्योंकि इसी महीने में इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर (शांति उस पर हो) (Prophet Muhhammad) का जन्म हुआ था. जो मानव इतिहास में सबसे आदर्श इंसान माने जाते हैं. गौरतलब है कि अमेरिकी इतिहास कार डॉ माइकल एच हार्ट 1978 में प्रकाशित अपनी किताब 'दुनिया के इतिहास में 100 सबसे प्रभावशाली लोग' में लिखा कि पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.अ.व.) से ज्यादा प्रभावशाली व्यक्ति इस संसार में कोई हुआ ही नहीं. गौरतलब है कि इस किताब की 50 लाख प्रतियां बिकी थीं और इसका कम से कम 15 भाषाओं में अनुवाद किया गया था. इस किताब में डॉ माइकल एच हार्ट ने इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.अ.व.) को प्रथम स्थान पर रखा है.
दुनिया के मार्गदर्शक हैं पैगंबर मुहम्मद
पैगंबर मुहम्मद (स) इस्लामी दुनिया में दुनिया के मार्गदर्शक और ब्रह्मांड के निर्माण की वजह माना जाता है. अल्लाह ने इसी मुबारक महीने में हज़रत मुहम्मद (pbuh) को दुनिया से जाहिलियत के अंधेरे से बाहर निकालने के लिए भेजा था. पवित्र नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श बनकर आए, हर क्षेत्र में उनके पास ऐसी पूर्णता थी कि उनके जैसा कोई नहीं था और भविष्य में उनके जैसा कोई नहीं होगा.
मुसलमानों के लिए है खास दिन
ईद मिलाद-उल-नबी दुनियाभर के मुसलमानों द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार या खुशी का दिन है. यह दिन पवित्र पैगंबर (PBUH) के जन्म के अवसर पर मनाया जाता है. यह रबी अल-अव्वल के महीने में आता है, जो इस्लामी कैलेंडर के अनुसार तीसरा महीना है. वैसे तो मिलाद-उल-नबी और महफिल-ए-नात साल भर मनाए जाते हैं, लेकिन खासतौर पर रबी-उल-अव्वल के महीने में ईद मिलाद-उल-नबी का त्योहार पूरी धार्मिक भक्ति और सम्मान के साथ मनाया जाता है.
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ईद मिलाद-उन-नबी पर होते हैं ऐसे कार्यक्रम
गौरतलब है कि रबी-उल-अव्वल महीने की पहली तारीख से ही मिलाद-उल-नबी और नात ख्वानी यानी पैगंबर मोहम्मद ( शांति और आशीर्वाद उस पर हो) की प्रशंसा के कलेमात पढ़े जाते हैं और मस्जिदों और अन्य स्थानों में धार्मिक सभाएं शुरू हो जाती है. इस दौरान पैगंबर मुहम्मद (शांति और आशीर्वाद हो उन पर) की शख्सियत और उनकी शिक्षाओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है. रबीउल अव्वल की 12वीं तारीख को सभी इस्लामिक देशों में आधिकारिक रूप से सार्वजनिक अवकाश होता है. इसके अलावा, मुसलमान अक्सर अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, कनाडा, कोरिया, जापान और अन्य गैर-इस्लामिक देशों में मिलाद-उल-नबी और नात-ख्वानी सभाओं का आयोजन करते हैं.
इसलिए मनाते हैं मुसलमान बनाते हैं ईद-ए-मिलाद-उन-नबी
गौरतलब है कि खुद पैगंबर मुहम्मद (भगवान उन्हें आशीर्वाद दें और उन्हें शांति प्रदान करें) अपने जन्मदिन का सम्मान करते थे. पैगम्बर मुहम्मद ( (भगवान उन्हें आशीर्वाद दें और उन्हें शांति प्रदान करें) अपने जन्म वाले दिन ईश्वर का आभार व्यक्त करने के लिए आभारी रहते हुए हर सोमवार को उपवास करते थे. लिहाजा, मुसलमान भी पैगंबर (PBUH) के जन्मदिन का सम्मान करते हुए इस दिन खुशी मनाते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं. इस दौरान पैगम्बर मुहम्मद (स) के चरित्र के महत्व को उजागर करने और पैगंबर (अल्लाह की शांति और आशीर्वाद) के प्रति मुसलमानों के प्यार को बढ़ावा देने के लिए महफिल-ए-मिलाद का खास इंतजाम किया जाता है. यही कारण है कि मिलाद-उल-नबी (उस पर शांति हो) के उत्सव के मौके पर पैगम्बर मुहम्मद के गुणों, समानतावादी विचारों, विशेषताओं और चमत्कारों का उल्लेख करते हुए उनके गुणों का वर्णन किया जाता है. मुसलमान एक तरफ इस महीने में पवित्र पैगंबर के जन्म का जश्न मनाते हैं. वहीं, दूसरी ओर पवित्र पैगंबर की शिक्षाओं का पालन करने की सीख भी दी जाती है.
पूरी इंसानियत के मार्गदर्शक हैं पैगम्बर मुहम्मद
मनुष्य की पवित्र प्रकृति इस ब्रह्मांड के लिए दया का स्रोत है, लेकिन पैगम्बर मुहम्मद के पास हर क्षेत्र में वह खूबियां पाई जाती थी, जो अद्वितीय है. जीवन के सभी क्षेत्रों में उन्हें आम आदमी के लिए सबसे अच्छा व्यावहारिक उदाहरण के रूप में देखा जाता था. पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने ज्ञान और प्रकाश की ऐसी लॉ जलाईं, जिन्होंने अरबों जैसे ज्ञान और सभ्यता से रहित समाज में अज्ञानता के अंधेरे को मिटा दिया और इसे दुनिया का सभ्यतम समाज बना दिया और एक दूसरे को सहनशीलता बना दिया. उनकी शिक्षा से अरब में इतना बदलाव आया कि एक कबीले के मेहमान का ऊंट दूसरे कबीले की चरागाह में गलती से चले जाने की छोटी-सी घटना से उत्तेजित होकर जो अरब चालीस वर्ष तक भयानक रूप से लड़ते रहे और इस दौरान दोनों पक्षों के लगभग 70 हजार आदमी मारे गए. इस युद्ध की विभीषिका से दोनों कबीलों के पूर्ण विनाश का भय पैदा हो गया था. उस उग्र-क्रोधातुर और लड़ाकू कौम को इस्लाम के पैगम्बर ने आत्मसंयम एवं अनुशासन की ऐसी शिक्षा दी और ऐसे प्रशिक्षित किया कि वे युद्ध के मैदान में भी नमाज अदा करते थे.
प्रतिरक्षात्मक युद्ध लड़ीं, लोगों को विनाश से बचाया
आम तौर पर इस्लाम धर्म का नाम जबरन धर्मांतरण और जिहाद के नाम से बदनाम किया जाता है, लेकिन सच्चा बिल्कुल ही इससे अलग है. पैगम्बर मुहम्मद ने जब लोगों को इस्लाम धर्म की शिक्षा देनी शुरू की तो अरब के लोग उनके दुश्मन बन गए. पहले तरह-तरह के प्रलोभन देकर धर्म प्रचार से रोकने की कोशिश की, लेकिन जब वे नहीं मानें तो विरोधियों ने उनका घेराव शुरू कर दिया. इससे तंग आकर मक्के मदीना चले गए. लेकिन, विरोधियों ने वहां भी चैन से नहीं रहने दिया. इस दौरान पैगम्बर ने विरोधियों से समझौते और मेल-मिलाप के लिए बार-बार प्रयास किए, लेकिन जब सभी प्रयास बिल्कुल विफल हो गए और अपने बचाव के लिए लड़ाई के मैदान में आना पड़ा तो आपने रणनीति को बिल्कुल ही एक नया रूप दिया. जसिका परिणाम ये हुआ कि आपके जीवन-काल में जितनी भी लड़ाइयां हुईं. उन लड़ाइयों में मरने वाले इंसानों की संख्या चन्द सौ से अधिक नहीं है. हालांकि, इस दौरान पूरा अरब आपके अधिकार-क्षेत्र में आ गया. आपने बर्बर अरबों को सर्वशक्तिमान अल्लाह की उपासना यानी नमाज की शिक्षा दी. अकेले-अकेले अदा करने की नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से अदा करने की ताकीद की. यहा तक कि युद्ध-विभीषिका के दौरान भी नमाज का निश्चित समय आने पर दिन में पांच बार सामूहिक नमाज (नमाज जमात के साथ) अदा करने का हुक्म दिया. इस दौरान एक समूह अपने खुदा के आगे सिर झुकाने में मशगूल रहता, जबकि दूसरा शत्रु से जूझने में व्यस्त रहता था. तब पहला समूह नमाज अदा कर चुकता तो वह दूसरे का स्थान ले लेता और दूसरा समूह खुदा के सामने झुक जाता.
कट्टर शत्रुओं को भी क्षमादान
दरअसल, पैगम्बर मुहम्मद (Paighambar Muhammad) की ओर से आत्मरक्षा में युद्ध की अनुमति देने के मुख्य लक्ष्यों में से एक था कि मानव को एकता के सूत्र में पिरोया जाए. लिहाजा, जब यह लक्ष्य पूरा हो गया तो बदतरीन दुश्मनों को भी माफ कर दिया. यहां तक कि उन लोगों को भी माफ कर दिया गया, जिन्होंने आपके चहेते चाचा हजरत हमजा को कत्ल करके उनके शव को विकृत किया (नाक, कान काट लिया) और पेट चीरकर कलेजा निकालकर चबाया था.
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