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Dussehra 2019: साल की तीन शुभ तिथियों में से एक है दशहरा, जानें क्या है इसका महत्व

विजयदशमी यानि दशहरे के दिन देश के अलग-अलग हिस्सों में रावण दहन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन रावण के पुतले को जलाने से समाज से बुराइयों का भी सफाया हो जाता है.

Updated on: 06 Oct 2019, 12:03 PM

नई दिल्ली:

हिंदु धर्म में दशहरे का विशेष महत्व है. बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाए जाने वाले इस त्योहार को देशभर में बड़े धमधाम से मनाया जाता है. इस दिन को विजयदशम के नाम से भी जाना जाता है जो 9 दिनों के नवरात्र के बाद आता है. दरअसल धर्मग्रंथों की मानें तो अश्विन मास की शुक्लपक्ष की दशमी को दो अलग-अलग घटनाओं के लिए भी मनाया जाता है पहला महिषासुर के वध के लिए और दूसरा रावण पर राम की विजय के लिए. इस साल दशहरा 8 अक्टूबर को मनाया जाएगा.

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दशहरे को तीन सबसे शुभ तिथियों में से एक माना जाता है. अन्य दो शुभ तिथि चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा और कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा है. विजयदशमी यानि दशहरे के दिन देश के अलग-अलग हिस्सों में रावण दहन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन रावण के पुतले को जलाने से समाज से बुराइयों का भी सफाया हो जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था. इस खुशी में इस दिन को विविजयादशमी यानी दशहरा के पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन रावण के पुतले को जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है.

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क्या है मान्यता?

बताया जाता है कि रावण के वध और लंका विजय के प्रमाण स्वरूप श्रीराम सेना लंका की राख अपने साथ ले आई थी, इसी के चलते रावण के पुतले की अस्थियों को घर ले जाने का चलन शुरू हुआ. इसके अलावा मान्यता यह भी है कि धनपति कुबेर के द्वारा बनाई गई स्वर्णलंका की राख तिजोरियों में रखने से घर में स्वयं कुबेर का वास होता है और घर में सुख समृधि बनी रहती है.

यही कारण है कि आज भी रावण के पुतले के जलने के बाद उसके अस्थि-अवशेष को घर लाना शुभ माना जाता है और इससे नकारात्मक शक्तियां घर में प्रवेश नहीं करती हैं.

रावण के दहन से पहले उसके पूजन की परंपरा

कुंवार माह में शुक्लपक्ष की दशमी को तारों के उदयकाल में मृत्यु पर भी विजयफल दिलाने वाला काल माना जाता है. सनातन संस्कृति में दशहरा विजय और अत्यंत शुभता का प्रतीक है, बुराई पर अच्छाई और सत्य पर असत्य की विजय का पर्व, इसीलिए इस पर्व को विजयादशमी भी कहा गया है. दक्षिण भारत के द्रविड़ ब्राह्मणों में रावण के पुतले के दहन से पहले उसका पूजन करने की परंपरा है.