दशहरा स्पेशल: शबरी ने खिलाए थे भगवान राम को जूठे बेर, आज भी दी जाती है मिसाल
धैर्य, भक्ति और प्रेम की पूरक शबरी के चरित्र का परिचय रामायण के अरण्यकाण्ड में आता है।
नई दिल्ली:
धैर्य, भक्ति और प्रेम की पूरक शबरी के चरित्र का परिचय रामायण के अरण्यकाण्ड में आता है। जब उन्होंने भगवान राम को प्रेमवश जूठे बेर खिलाए थे। माता सीता की तलाश में भटकते हुए भगवान राम और लक्ष्मण शबरी की कुटिया में पहुंचते हैं। उन्हें देखकर वर्षों से अपने कल्याण की उम्मीद में भगवान की प्रतीक्षा कर रही शबरी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता है।
भगवान राम और लक्ष्मण के स्वागत में शबरी उन्हें बेर का खिलाती है। कोई बेर खट्टा या कसैला ना हो इसलिए माता शबरी उन्हें पहले खुद चखती थी। लक्ष्मण उन्हें अगाह भी किया मगर भक्तों के प्रेम के भूखें भगवान राम उन बेरों को स्वाद से खाते रहे। हालांकि लक्ष्मण उन बेरों को नहीं खाते हैं।
भगवान राम के पेट भर बेर का रसास्वादन करने के बाद शबरी उनके पैरों में पड़ गई। आंखों में आंसू भरे माता शबरी भगवान राम का आभार देती है। शबरी कहती है कि मुझ निम्न जाति में जन्म लेने वाली स्त्री को धन्य करने के लिए भगवान ख़ुद चलकर आए और झूठे फल खाए।
शबरी ने ही भगवान राम को माता सीता की खोज में वानरराज सुग्रीव से मिलने की बात बताई थी। और उनका पता ऋषिमुख पर्वत पर होना बताती है।
कौन थी शबरी
माता शबरी भील जाति की राजा की बेटी थी। शबरी की शादी के भोज के लिए सैकड़ों जानवरों की बलि चढ़ाई जाने वाली थी। जिसके विरोध मे शबरी ने शादी करने से इंकार कर दिया। वह ऋषि मंतग के आश्रम में आकर रहने लगी थी। ऋषि मंतग ने भारी विरोध के बावजूद अपनी शिष्या स्वीकार कर लिया था।
जब उन्होंने अपना शरीर छोड़ा तो शबरी व्याकुल हो उठी थी। तब मंतग उन्हें अपने पास बुलाकर समझाया था कि बेटी, धैर्य रखना! भगवान राम की नजर में सभी एक हैं। वह एक दिन तुम्हारी कुटिया में जरूर आएंगे। तुम बस उनकी साधना करते रहना। ऋषि मंतग के शरीर शांत हो जाने के बाद से माता शबरी रोज भगवान का इंतजार करती और उनके खिलाने के लिए जगंल से फल तोड़ती थी।
भगवान राम के दर्शन पाने के बाद माता शबरी का कल्याण हो गया था। और उन्होंने अपना जीवन त्याग दिया।
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