रावण दहन के पीछे का अधूरा सत्य आ गया सामने, हर साल जलने के पीछे ये है पौराणिक महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हर साल दशहरा मनाया जाता है. त्रेता युग में इस दिन भगवान राम ने लंकापति रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई की जीत दर्ज की थी
नई दिल्ली:
Dussehra 2022 Puaranik Mahatva: हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हर साल दशहरा मनाया जाता है. त्रेता युग में इस दिन भगवान राम ने लंकापति रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई की जीत दर्ज की थी, इसलिए इसे विजयादशमी भी कहते हैं. इस साल दशहरा बेहद खास और दुर्लभ योग का संयोग लेकर आ रहा है, इसमें खरीदारी और पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि का वास होगा और नकारात्मक ऊर्जा का विनाश होगा. ऐसे में चलिए जानते हैं दशहरा मनाने के पौराणिक महत्व के बारे में.
दशहरा 2022 पौराणिक महत्व (Dussehra 2022 Mahatva)
- त्रेता युग में दशहरा के दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति दसानन रावण का वध किया था. भगवान राम और रावण के बीच लगातार 10 दिनों तक भीषण युद्ध चला. 10वें दिन जाकर रावण भगवान श्रीराम के हाथों मारा गया. इस युद्ध का कारण था प्रभु श्रीराम की पत्नी सीता का अपहरण.
- रावण की बहन शूर्पणखा ने प्रभु राम और लक्ष्मण के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा था, लेकिन दोनों ने मना कर दिया. फिर भी वह विवाह के लिए कहती रही, तब लक्ष्मण जी ने उसका नाक और कान काट लिया. तब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया और लंका के अशोक वाटिका में उनको रखा था.
- हनुमान जी, सुग्रीव, जामवंत और वानर सेना की मदद से माता सीता का पता चला और फिर प्रभु राम ने लंका पर चढ़ाई कर दी, जिसके फलस्वरूप पूरे राक्षस जाति का अंत हो गया.
- भगवान राम के हाथों रावण का वध असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है. यह बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव है. इस वजह से हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा मनाया जाता है. हर साल दशहरा मनाने का उद्देश्य लोगों को सत्य, धर्म और अच्छाई का संदेश देना है.
- सत्य की राह पर चलने में कठिनाइयां आएंगी, लेकिन अंत में जीत उसकी ही होगी, इसलिए कभी भी सत्य के मार्ग से हटना नहीं चाहिए. अपने अंदर की बुराइयों को दूर करके स्वयं को अच्छा बनाने का भी संदेश दशहरा में छिपा है.
दशहरा 2022 मनाने की विधि (Dussehra 2022 How To Celebrate Dussehra)
- दशहरा के दिन रावण, कुंभकर्ण और इंद्रजीत के बड़े-बड़े पुतले बनाए जाते हैं. उनमें पटाखे भरे जाते हैं. ये पुतले दिखने में काफी बड़े होते हैं. ऐसे ही बुराई भी बड़ी होती है. शाम के समय में इन पुतलों में आग लगाया जाता है. पटाखों के जलने से पुतले जलकर राख हो जाते हैं.
- वैसे ही जब अच्छाई बढ़ती है तो बड़ी बुराई का भी अंत इन पुतलों के जैसे हो जाता है. रावण दहन के साथ दशहरा का उत्सव संपन्न होता है. नवरात्रि में 10 दिनों तक जो राम लीलाओं का मंचन होता है, उनका समापन दशहरा को होता है.
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