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Dhanteras Yam Deep Daan : धनतेरस के दिन क्‍यों करते हैं यमराज को दीपदान, जानें यहां

कार्तिक मास के कृष्‍ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाया जाता है. इस बार धनतेरस 13 नवंबर को है. धनतेरस को खरीदारी का मुहूर्त माना जाता है. धनतेरस के दिन यमराज को दीपदान करने की भी परंपरा निभाई जाती है.

Updated on: 09 Nov 2020, 04:10 PM

नई दिल्ली:

कार्तिक मास के कृष्‍ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाया जाता है. इस बार धनतेरस 13 नवंबर को है. धनतेरस को खरीदारी का मुहूर्त माना जाता है. धनतेरस के दिन यमराज को दीपदान करने की भी परंपरा निभाई जाती है. पुराणों में कहा गया है कि धनतेरस के द‍िन यमराज को दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है. पूरे साल में यही मौका होता है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है और उन्‍हें दीपों का दान किया जाता है. कई जगहों पर धनतेरस के बदले नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली के दिन दीपदान किया जाता है. 

स्कंदपुराण में कहा गया है कि कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन शाम को घर के बाहर यमदेव के उद्देश्य से दीप रखने से अकाल मृत्‍यु के खतरे को दूर किया जा सकता है. पद्मपुराण में कहा गया है, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को घर से बाहर यमराज को दीप दान करना चाहिए. इससे मृत्यु का नाश होता है. 

पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि एक समय यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राण हरण करते समय किसी पर दया आई है? तो उन्‍होंने संकोचवश ना कहा. यमराज के दोबारा पूछने पर दूतों ने कहा, एक बार ऐसी घटना घटी थी, जिससे हमारा हृदय कांप उठा था. राजा हेम की पत्‍नी ने पुत्र को जन्म दिया था तो ज्योतिषियों ने बताया कि बालक की शादी के चार दिन बाद मृत्‍यु हो जाएगी. इस पर राजा ने बेटे को ब्रह्मचारी के रूप में रखकर बड़ा किया. एक दिन महाराजा हंस की बेटी भ्रमण कर रही थी तो ब्रह्मचारी युवक उस पर मोह‍ित हो गया और गंधर्व विवाह कर लिया. उसके ठीक चौथे दिन बाद राजकुमार की मौत हो गई. पति की मौत पर पत्नी बिलखने लगी. उसके करुण विलाप से दूतों का हृदय भी कांप उठा. 

दूतों ने यमराज को आगे बताया, राजकुमार के प्राण हरते समय हमारे आंसू भी नहीं रुक रहे थे. इस बीच एक यमदूत ने यमराज से पूछा, क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है? तो यमराज ने कहा, अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को धनतेरस के दिन पूजन और विधिपूर्वक दीपदान करना चाहिए. जिस जगह यह पूजा होती है, वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता. बताया जाता है कि उसी के बाद से धनतेरस के दिन यमराज को दीपदान की परंपरा शुरू हुई. 

धनतेरस के दिन सूरज डूबने के बाद शाम को घर के मुख्य द्वार पर 13 और घर के अंदर 13 दीप जलाएं. परिवार के सभी सदस्यों के खाने-पीने के बाद सोते समय यम का दीया जलाएं. यम का दीया नए दीप में न जलाएं. ध्‍यान रहे दीये का मुख दक्षिण की ओर हो. दीया नाली या कूड़े के पास रखें. पूजा के बाद जल भी अर्पित करें और फिर बिना दीये को देखे घर में घुस जाएं.