logo-image

Dev Uthani Ekadashi 2020: जानें देवउठनी एकादशी की तारीख, पूजा मुहूर्त और महत्व

इस साल 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी. देवउठनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.

Updated on: 24 Nov 2020, 07:50 AM

नई दिल्ली:

इस साल 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी. देवउठनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चार माह के लिए सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगते हैं. चार माह की इस अवधि को चतुर्मास कहते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन ही चतुर्मास का अंत हो जाता है और शुभ काम शुरू किए जाते हैं.

और पढ़ें: बिहार : मुस्लिम युवक ने अपने घर के आंगन में छठव्रतियों के लिए बनवाया जलकुंड

देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त-

  • देवउठनी एकादशी की तारीख- 25 नवंबर
  • एकादशी तिथि प्रारम्भ- नवंबर 25, 2020 को 02:42 बजे से
  • एकादशी तिथि समाप्त- नवंबर 26, 2020 को 05:10 बजे तक

स्कंदपुराण के कार्तिक माहात्मय में भगवान शालिग्राम (भगवान विष्‍णु) के बारे में विस्‍तार से जिक्र है. हर साल कार्तिक मास की द्वादशी को महिलाएं प्रतीकात्‍मक रूप से तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह  करवाती हैं. इसके बाद ही हिंदू धर्म के अनुयायी विवाह आदि शुभ कार्य प्रारंभ कर सकते हैं. 

तुलसी विवाह की कथा-

भगवान शालिग्राम ओर माता तुलसी के विवाह के पीछे की एक प्रचलित कहानी है. दरअसल, शंखचूड़ नामक दैत्य की पत्नी वृंदा अत्यंत सती थी. शंखचूड़ को परास्त करने के लिए वृंदा के सतीत्‍व को भंग करना जरूरी था. माना जाता है कि भगवान विष्‍णु ने छल से रूप बदलकर वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और उसके बाद भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध कर दिया. इस छल के लिए वृंदा ने भगवान विष्‍णु को शिला रूप में परिवर्तित होने का शाप दे दिया. उसके बाद भगवान विष्‍णु शिला रूप में तब्‍दील हो गए और उन्‍हें शालिग्राम कहा जाने लगा.

अगले जन्‍म में वृंदा ने तुलसी के रूप में जन्म लिया था. भगवान विष्‍णु ने वृंदा को आशीर्वाद दिया कि बिना तुलसी दल के उनकी पूजा कभी संपूर्ण नहीं होगी. भगवान शिव के विग्रह के रूप में शिवलिंग की पूजा होती है, उसी तरह भगवान विष्णु के विग्रह के रूप में शालिग्राम की पूजा की जाती है. नेपाल के गण्डकी नदी के तल में पाया जाने वाला गोल काले रंग के पत्‍थर को शालिग्राम कहते हैं. शालिग्राम में एक छिद्र होता है और उस पर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं.

श्रीमद देवी भागवत के अनुसार, कार्तिक महीने में भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पण करने से 10,000 गायों के दान का फल प्राप्त होता है. वहीं शालिग्राम का नित्य पूजन करने से भाग्य बदल जाता है. तुलसीदल, शंख और शिवलिंग के साथ जिस घर में शालिग्राम होता है, वहां पर माता लक्ष्मी का निवास होता है यानी वह घर सुखी-संपन्‍न होता है.

पूजा विधि-

देवउठनी के दिन प्रातकाल: उठकर स्नान कर के भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने दीया जलाएं.  इसके बाद व्रत का संकल्प लें. एकादशी के दिन घर के आंगन में विष्णु जी के चरणों की रंगोली बनाएं और अगर उसपर धूप पड़े तो कपड़े से ढक दें. इस दिन ओखली में गेरू से चित्र भी बनाया जाता है और फल, मिठाई, ऋतुफल और गन्ना रखकर डलिया को ढक दिया जाता है. शाम या अंधेरा होने पर घर के बाहर और जहां पूजा की जाती है वहां दिए जलाएं. इसके अलावा रात के समय विष्णु जी और अन्य देवी-देवताओं की पूजा करें भजन गाएं. . चाहे तो भगवत कथा और पुराणादि का पाठ भी कर सकते हैं. 

एकादशी के दिन न करें ये काम-

1. एकादशी के दिन चावल का सेवन करने से परहेज करना चाहिए.

2. एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए.

3. एकादशी वाले दिन पर बाल और नाखून नहीं कटवाने चाहिए.

4. एकादशी के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व है.

5. देवउठनी एकादशी के दिन किसी को भी बुरा नहीं बोलना चाहिए.