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Dattatreya Jayanti 2019: ऐसे करें भगवान दत्तात्रेय की पूजा, पूरी होगी ये मनोकामनाएं

11 दिसंबर 2019 यानि की बुधवार को भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाएगी. हर साल मार्गशीर्ष मास की पुर्णिमा के दिन ये जयंती मनाई जाती है.

Updated on: 10 Dec 2019, 12:08 PM

नई दिल्ली:

11 दिसंबर 2019 यानि की बुधवार को भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाएगी. हर साल मार्गशीर्ष मास की पुर्णिमा के दिन ये जयंती मनाई जाती है.  धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म प्रदोषकाल में हुआ था. भगवान दत्तात्रेय तीनों देवों के स्वरूप माने जाते हैं, इनके तीन मुख, छह हाथ और छह हाथ है. इन्हें गुरुदेवदत्त भी कहा जाता है और मान्यता की माने तो भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी. 

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भगवान दत्तात्रेय ने अपने 24 गुरु माने हैं, जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, समुद्र , चंद्रमा व सूर्य जैसे आठ प्रकृति तत्व हैं. वहीं झींगुर, सर्प, मकड़ी, पतंग, भौंरा, मधुमक्खी, मछली, कौआ, कबूतर, हिरण, अजगर व हाथी सहित 12 जंतु शामिल हैं. इनके चार मानवीय गुरुओं में बालक, लोहार, कन्या और पिंगला नामक वेश्या भी शामिल हैं. इसके जरीए उन्होंने मानव को यह संदेश दिया है कि हमें जिससे भी किसी न किसी रूप में कोई भी शिक्षा मिली, वे हमारे गुरु हुए. दूसरे शब्दों में कहें, तो हर किसी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है.

ऐसे करें भगवान दत्तात्रेय की पूजा-

  • साफ-सुथरे जगह पर भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करें.
  • अब उनपर पीले फूल और पीली चीजें अर्पित करें.
  • भगवान दत्तात्रेय के मंत्रों का जाप करें.
  • अपनी मनोकामनाओं की प्रार्थना करें

इन मंत्रों का जाप करें-

  1.  ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा
  2.  ॐ महानाथाय नमः

मिलता है ये लाभ

  • संतान और ज्ञान की प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है.
  • नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं पड़ता है.
  • मार्गदर्शक की प्राप्ति होती है.
  •  व्यक्ति गलत संगति और गलत रास्ते पर चलने से बच जाता है.
  • व्यक्तियों को किसी भी प्रकार के कष्ट से जल्द मुक्ति मिल जाती है.

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भगवान दत्तात्रेय के जन्म की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार देवी अनसूईया ने त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का कठोर तप किया. देवी अनुसूईया अपनी तपस्या में इतनी ज्यादा लीन हो गई की उनको किसी भी बात की सुध नहीं रही. उनके कठोर तप के कारण तीनों देवों की पत्नियां देवी पार्वती, देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती को ईर्ष्या होने लगी. अब तीनों देवियों ने निश्चय किया कि वो अपने पतियों को पृथ्वीलोक में देवी अनसूईया की परीक्षा लेने के लिए भेजेंगी.

तीनों देवियों ने अपने पतियों, ब्रह्मा, विष्णु और महेश से धरती पर जाकर देवी अनुसूईया की परीक्षा लेने की बात कही. तीनों देव अपनी पत्नियों के कहने पर संन्यासियों का वेश धारण कर धरती पर देवी अनुसूईया की परीक्षा लेने के लिए गए.

तीनों देव देवी अनुसूईया की कुटिया पर भिक्षाटन के लिए पहुंचे और सती अनुसूइया से भिक्षा की मांगी, लेकिन भिक्षु का रूप धारण किए त्रिदेव हकीकत में देवी अनुसूईया की परिक्षा लेना चाहते थे, इसलिए उन्होंने देवी के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए उनके सामने एक विचित्र शर्त रखी. त्रिदेव ने देवी अनुसूईया से कहा कि वह उनकी भिक्षा तभी स्वीकार करेंगे जब वह नग्न अवस्था में उनको भिक्षा देने आएंगी.

देवी अनुसूईया पहले तो भिक्षुओं की विचित्र मांग पर हड़बड़ा गई उसके बाद उन्होंने विचार किया और मंत्रजाप करते हुए अभिमंत्रित जल उन तीनों संन्यासियों पर छिड़क दिया. अभिमंत्रित जल की बूंदे त्रिदेव पर पड़ते ही तीनों शिशु रूप में बदल गए. त्रिदेव के शिशु रूप में बदलते ही देवी अनुसूईया ने उनको गोद में लेकर स्तनपान करवाया.

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देवी अनुसूईया के पति ऋषि अत्रि जब घर लौटे तो उन्होंने तीनो भिक्षुओं के बारे में उनको बताया. महर्षि अत्रि तो पहले ही अपनी दिव्य दृष्टि से सारा घटनाक्रम देख चुके थे. उन्होंने तीनो शिशुओं को गले से लगा लिया और उनको तीनों की शक्ति एक में समहित कर एक शिशु में बदल दिया. इस तरह से जन्मे शिशु के तीन सिर और छह हाथ थे.

इधर ब्रह्मा, विष्णु, महेश के स्वर्ग वापस ना लौटने पर तीनों देवियां चिंतित हो गई और तीनों देवी अनुसूईया के पास गई और तीनों ने उनसे अपने पतियों को सौंपने का आग्रह किया. देवी अनुसूईया ने तीनों देवियों की बात मानते हुए त्रिदेवों को वापस लौटा दिया. इसके साथ ही त्रिदेव अपने वास्तविक रूप में आ गए. सती अनुसुया और महर्षि अत्रि से प्रसन्न होकर त्रिदेव ने उनको वरदान के रूप में दत्तात्रेय रूपी पुत्र प्रदान किया.