Dattatreya Jayanti 2020: ऐसे करें भगवान दत्तात्रेय की पूजा, जानें कथा और महत्व
आज यानि कि 29 दिसंबर को दत्तत्रेय जयंती मनाई जा रही है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था. भगवान दत्तात्रेय तीनों देवों के स्वरूप माने जाते हैं, इनके तीन मुख, छह हाथ और छह हाथ है. इ
नई दिल्ली:
आज यानि कि 29 दिसंबर को दत्तत्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti 2020) मनाई जा रही है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था. भगवान दत्तात्रेय तीनों देवों के स्वरूप माने जाते हैं, इनके तीन मुख, छह हाथ और छह हाथ है. इन्हें गुरु देवदत्त भी कहा जाता है और मान्यता की माने तो भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी. दत्तत्रेय जयंती कि विधिपूर्वक पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. वहीं भगवान विष्णु और भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है.
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भगवान दत्तात्रेय ने अपने 24 गुरु माने हैं, जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, समुद्र , चंद्रमा व सूर्य जैसे आठ प्रकृति तत्व हैं. वहीं झींगुर, सर्प, मकड़ी, पतंग, भौंरा, मधुमक्खी, मछली, कौआ, कबूतर, हिरण, अजगर व हाथी सहित 12 जंतु शामिल हैं. इनके चार मानवीय गुरुओं में बालक, लोहार, कन्या और पिंगला नामक वेश्या भी शामिल हैं. इसके जरीए उन्होंने मानव को यह संदेश दिया है कि हमें जिससे भी किसी न किसी रूप में कोई भी शिक्षा मिली, वे हमारे गुरु हुए. दूसरे शब्दों में कहें, तो हर किसी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है.
शुभ मुहूर्त
- पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: 29 दिसम्बर, सुबह 07 बजकर 54 मिनट से ( 2020)
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 30 दिसम्बर, सुबह 8 बजकर 57 मिनट तक
पूजा विधि
- साफ-सुथरे जगह पर भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करें.
- अब उनपर पीले फूल और पीली चीजें अर्पित करें.
- भगवान दत्तात्रेय के मंत्रों का जाप करें.
- अपनी मनोकामनाओं की प्रार्थना करें
दत्तत्रेय जयंती की कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार तीनों देवियों (सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती जी) को अपने पतिव्रता धर्म पर अभिमान हो गया. तब भगवान विष्णु ने एक लीला रची. इसके बाद नारद मुनी तीनों लोगों का भ्रमण करते हुए देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती जी के पास पहुंचे और अनुसूया के पतिव्रता धर्म की प्रशंसा करने लगे. इस पर तीनों देवियों ने अपने पतियों से अनुसूया के पतिव्रता धर्म की परीक्षा लेने की हठ की. इसके बाद त्रिदेव, ब्राह्मण का वेश धारण कर के महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे, उस वक्त महर्षि अत्रि अपने घर पर नहीं थे. तीनों ब्राह्मणों को देखर अनुसूया उनके पास आईं और उनका आदर-सत्कार करने के लिए आगे बढ़ी लेकिन तब ब्राह्मणों ने कहा कि जब तक वो उनको अपनी गोद में बैठाकर भोजन नहीं कराएंगी, तक तक वो उनका आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे.
ब्राह्मणों की इस शर्त को सुन कर अनसूया काफी चिंतित हो गईं और फिर वह अपने तपोबल से ब्राह्मणों की सत्यता जान गईं. भगवान विष्णु और अपने पति अत्रि को याद करने के बाद अनुसूया ने कहा कि यदि उनका पतिव्रता धर्म सत्य है तो तीनों ब्राह्मण 6 महीने के शिशु बन जाएं. अनुसूया ने अपने तपोबल से त्रिदेवों को शिशु बना दिया और फिर अपनी गोद में लेकर दुग्धपान कराया और तीनों को पालने में रख दिया.
उधर तीनों देवियां अपने पतियों के वापस न आने से चिंतित हो गईं. तब नारद जी उनके पास पहुंचे और सारा घटनाक्रम बताया. इसके पश्चात तीनों देवियों को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ. इसके बाद तीनों देवियों ने अनुसूया से माफी मांगी और अपने पतियों को मूल स्वरूप में लाने का आग्रह किया.
तब अनुसूया, अपने तपोबल से त्रिदेवों को उनके पूर्व स्वरूप में ले आईं. इसके बाद त्रिदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा और तब अनुसूया ने उन तीनों देवों को पुत्र स्वरूप में पाने के की मांग रखी. इसके बाद माता अनुसूया के गर्भ से दत्तात्रेय ने जन्म लिया और इसलिए कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से तीनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
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