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उगते सूर्य को अर्घ्‍य के साथ संपन्‍न हुआ बिहार और पूर्वी उत्‍तर प्रदेश का सबसे बड़ा पर्व छठ

शुक्रवार शाम को खरना के बाद निर्जला व्रत शुरू प्रारंभ हुआ था, जिसका परायण आज उगले सूरज को अर्घ्‍य देने के बाद हुआ. छठ पूजा के श्रद्धालुओं ने 36 घंटे का कठिन व्रत रखा.

Updated on: 03 Nov 2019, 10:39 AM

नई दिल्‍ली:

बिहार और पूर्वी उत्‍तर प्रदेश का सबसे बड़ा पर्व रविवार को उगते सूरज को अर्घ्‍य देने के साथ समाप्‍त हो गया. शनिवार शाम को श्रद्धालुओं ने डूबते सूरज को अर्घ्‍य दिया था. शुक्रवार शाम को खरना के बाद निर्जला व्रत शुरू प्रारंभ हुआ था, जिसका परायण आज उगले सूरज को अर्घ्‍य देने के बाद हुआ. छठ पूजा के श्रद्धालुओं ने 36 घंटे का कठिन व्रत रखा. कई बार धुंध और कोहरे के कारण सूरज के दर्शन नहीं होते तो श्रद्धालु सूर्योदय का समय देखकर अर्घ्‍य देते हैं.

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ऐसा माना जाता है कि छठी मइया का पवित्र व्रत रखने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है. नि:संतान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है. यश, पुण्य और कीर्ति भी होती है और दुर्भाग्‍य का नाश हो जाता है.

सूर्यदेव की पूजा वैदिक काल से भी पहले से होती चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि सूर्यदेव साक्षात भगवान हैं, जो हमें दिखाई देते हैं. वे प्रकृति के सभी जीवों पर बराबर कृपा करते हैं और किसी तरह का भेदभाव नहीं करते. भगवान सूर्य की उपासना से सभी तरह के रोगों से मुक्ति मिल जाती है.

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छठ पर्व में सूर्यदेव के साथ छठ मैय्या की पूजा भी की जाती है. सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा जाता है और प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का प्रचलित नाम षष्ठी है. षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है. पुराणों में देवी का नाम कात्यायनी भी है. स्थानीय बोली में षष्ठी देवी को ही छठ मैय्या कहा जाता है.