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Chhath Pooja 2019: छठ महापर्व की कब हुई शुरुआत, इन 4 कथाओं में है इसका जवाब

स साल छठ पूजा (Chhath Pooja 2019) की शुरुआत 31 अक्टूबर, नहाय-खाय से होगी और इसकी समाप्ति 3 नवंबर को सुबह सूर्य के अर्घ्य के साथ होगी.

नई दिल्‍ली:

छठ पूजा (Chhath Pooja 2019) को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं उनमें से एक महाभारत काल से जुड़ी हुई है. यह दुनिया का एक मात्र ऐसा पर्व है, जिसमें उगते और डूबते सूरज की पूजा की जाती है. इस साल छठ पूजा (Chhath Pooja 2019) की शुरुआत 31 अक्टूबर, नहाय-खाय से होगी और इसकी समाप्ति 3 नवंबर को सुबह सूर्य के अर्घ्य के साथ होगी. चार दिनों तक मनाया जाने वाला का यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश सहित संपूर्ण भारत वर्ष में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. छठ पूजा (Chhath Pooja 2019) को स्त्री और पुरुष दोनों ही समान रूप से मनाते हैं. इस पूजा के दौरान व्रतधारी लगातार निराजल 36 घंटे का व्रत रखते हैं.

पहली कथा

लोक मान्यता के मुताबिक छठ की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. इस पूजा की शुरुआत सूर्यपुत्र कर्ण के सूर्य देव की पूजा के साथ शुरू हुई थी. कर्ण हर दिन घंटों तक कमर तक पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे. उनके महान योद्धा बनने के पीछे सूर्य की कृपा थी. आज भी छठ में अर्घ्य देने की यही पद्धति प्रचलित है.

दूसरी कथा

एक अन्‍य लोक कथा के अनुसार जब भगवान श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त कर लौटे तो राम राज्य की स्थापना की जा रही थी. कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन ही राम राज्य की स्थापना हुई थी. इसी दिन राम-सीता ने उपवास किया और सूर्य देव की आराधना की थी. सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर उन्होंने सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था. ऐसा माना जाता है तब से लेकर आज तक यही परंपरा चली आ रही है.

तीसरी कथा

पांडवों की पत्नी द्रौपदी अपने परिवार के उत्तम स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए नियमित तौर पर सूर्य पूजा किया करतीं थीं. कहा जाता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने सूर्य भगवान की आराधना की और छठ का व्रत रखा. सूर्य देव के आशीर्वाद से उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हुई .

चौथी कथा

राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया . राजा ने रानी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी. इसके प्रभाव से उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति तो हुई लेकिन वह बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ. प्रियंवद अपने मृत्य पुत्र के शरीर को लेकर श्मशान गया और पुत्र वियोग में अपने भी प्राण त्यागने लगा. तभी भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई.

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उन्होंने प्रियंवद से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं. हे राजन तुम मेरा पूजन करो और दूसरों को भी प्रेरित करो. राजा ने पुत्र इच्छा से सच्चे मन से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी. तब से लोग संतान प्राप्ति के लिए छठ पूजा (Chhath Pooja 2019) का व्रत करते हैं.